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Lok Sabha Elections: चाय, चौपाल और चौकीदार की चर्चा में एक ही मुख्य किरदार

लोकसभा चुनाव की चर्चा छेड़ने की जरूरत है। विचारों का प्रवाह हिलोरें लेना शुरू कर देता है। मतदाता मौके के हिसाब से हर शब्द के मायने उभरने लगते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 05:38 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 05:27 PM (IST)
Lok Sabha Elections: चाय, चौपाल और चौकीदार की चर्चा में एक ही मुख्य किरदार
Lok Sabha Elections: चाय, चौपाल और चौकीदार की चर्चा में एक ही मुख्य किरदार

पानीपत [सतीश चंद्र श्रीवास्तव]। अगली सरकार किसकी? चर्चा छेड़ने की जरूरत है। विचारों का प्रवाह हिलोरें लेना शुरू कर देता है। मौके के हिसाब से हर शब्द के मायने उभरने लगते हैं। आम लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है? समझने के प्राथमिक प्रयास को निष्कर्ष नहीं माना जा सकता। करनाल संसदीय क्षेत्र में अभी तो पार्टी उम्मीदवारों के नामों की भी घोषणा नहीं हुई है। बागी भी मैदान में उतरने हैं।

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पड़ोसी राज्यों की प्रभावकारी चैती (चैत्र) हवाएं जरूर फिजाओं में हैं। टिकट की टिकटिक के बीच राजनीतिक माहौल गर्म होने लगा है। जहां जहां चर्चा हुई, ऐसा लगा कि जीटी बेल्ट के आम मतदाता के मंथन की केंद्रीय भूमिका में पार्टी है, किरदार है। यह अलग बात है कि फिलवक्त राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारों में जातीय समीकरणों पर गुणाभाग चल रहा है।

सरकारी दस्तावेज छापने वाले गवर्नमेंट प्रेस के साथ-साथ मांसाहार के शौकीनों के लिए मुर्गा (चिकन) उत्पादन व आपूर्ति केंद्र के लिए प्रसिद्ध नीलोखेड़ी में शनिवार दोपहर चर्चा छिड़ गई। प्रदेश की सबसे बड़ी सहकारी संस्था, हेफेड (हरियाणा स्टेट कोऑपरेटिव सप्लाई एंड मार्केटिंग फेडरेशन) भी यहीं है। पोल्ट्री एरिया स्थित सनातम धर्म मंदिर में आयोजन शुरू होने के पहले सड़क किनारे चौपाल बैठ गई। करनाल में किसके-किसके बीच मुकाबला? बात तो शुरू हुई पार्टी उम्मीदवारों के नामों से, कुछ ही मिनट में राष्ट्रीय व्यापकता ले बैठी।

सरकार तो वापस आएगी। क्यों? - तो और कौन पीएम (प्रधानमंत्री) बनने लायक है? सफेद दाढ़ी और हाफ कुर्ता वाले एक धुर विरोधी ने अपनी विचारधारा से यू-टर्न लेते हुए कहा, इस बार तो सरकार किसी भी हालत में नहीं बदलनी चाहिए। तभी तो लोगों को पता चलेगा कि सिर्फ वादे करने वाले काम नहीं कर सके। अगर इसबार सरकार बदल गई तो जब पांच साल बाद आएगी तो 15- 20 साल नहीं जाएगी।

मंदिर के अंदर से सभी के लिए स्थान लेने का निर्देश प्रसारित हुआ। पंडित नवीन शर्मा ने कथावाचन शुरू किया। प्रसंग संक्षेप में। महिला के रोने की आवाज आई। राजा ने अपने मुख्य सेवक को सहायता के लिए भेजा। वहां देखा कि कमल दल पर विराजमान देवी लक्ष्मी दुखी हैं। बोलीं, राजा की एक माह बाद मृत्यु हो जाएगी। उपाय था कि काली मंदिर में मानव बलि दी जाए। सेवक ने अपने सात साल के बेटे की बलि दी। बेटी और पत्नी सदमा नहीं बर्दाश्त कर सकीं।

अंतत: सेवक ने भी तलवार से अपना सिर अलग कर लिया। सबकुछ देख रहा राजा भी विचलित हो उठा तो काली प्रगट हुईं। सबको नया जीवन दिया। ... कुछ और कथाओं के साथ श्रद्धांजलि सभा संपन्न हुई। चर्चाएं भी फिर चुनावी मोड की तरफ लौट गईं। पता नहीं क्यों युवा भी सिर्फ एक ही नाम रट रहे हैं। और किसी पर चर्चा ही नहीं बढ़ रही। दूसरों का तो सिर्फ मजाक उड़ रहा है।

पानीपत वापसी के क्रम में चाय की चुस्की के लिए महाभारत में कर्ण द्वारा बसाई गई नगरी करनाल में थे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल यहीं से विधायक हैं। यह वही करनाल है जहां मध्यकाल में नादिरशाह ने मुगल बादशाह मुहम्मदशाह को हराया था। 1805 में अंग्रेजों की हुकुमत कायम होने के पहले जींद के राजाओं, मराठों और लाडवा के सिख राजा के अधिकार में रहा। यहां सवाल उछला, सरकार ने किया क्या?

करनाल में मिनी सेक्रेट्रिएट के सामने सुपर मॉल के फुटपाथ पर चाय का प्याला बढ़ाते हुए दुकानदार सोनू ने उलट पूछ लिया, क्या करना चाहिए था? महंगाई बढ़ी नहीं। सरकारी काम के लिए दफ्तरों के चक्कर कम हो गए। सही काम में रिश्वत की जरूरत नहीं रही। काफी सरकारी काम ऑनलाइन ही हो जा रहे हैं। नोटबंदी से पहले जैसी दुकानदारी थी, वैसी ही अब भी है। फिर क्यों बदलें सरकार?

मोबाइल और इंटरनेट की सस्ती व्यवस्था में सत्ता वापसी की साजिश की तलाश करते हुए साथ खड़े ठाकुर सिंह ने कहा, देखो उन गार्डों (चौकीदारों) को। सभी वीडियो देखने में जुटे हैं। पप्पू किरदार को बार-बार दिखाने के लिए ही यह सब हुआ है। फिर चलते हैं, चौकीदारों से ही बात कर लेते हैं। करनाल सेक्टर 12 मार्केट में बैंक के सामने साथी रामफल के साथ ड्यूटी दे रहे छह फीट लंबे अधेड़ सरदार सुलक्खड़ सिंह ने मोदी और राहुल पर हरियाणा के देसज अंदाज में कुछ तुकबंदियां सुनाते हुए बात आगे बढ़ाई। देश को मेजर-कर्नल जैसे जिगरा वाले प्रधानमंत्री की जरूरत है। -वोट किसे देंगे? - इस बार वोट के लायक तो सिर्फ एक ही चेहरा है। बताओ किसे प्रधानमंत्री बना दूं? -नहीं, नहीं, सांसद के लिए कौन पसंद है? -उसे ही चुनेंगे जो पीएम बनाएगा। फिलहाल चर्चा में जाति की जगह सिर्फ पार्टी है। उम्मीदवारों के नामों की घोषणा से पहले हालत तो कुछ ऐसे ही हैं।

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