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छत्तीसगढ़ में सज गई चौसर, कहीं राजनीतिक विरासत बचाने की जंग, तो कहीं दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर

राज्य बनने के बाद से अब तक हुए तीन आम चुनाव में भाजपा 10 सीटें जीतती रही है। वहीं कांग्रेस को हर बार केवल एक सीट से संतोष करना पड़ता था।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 10:41 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 10:43 PM (IST)
छत्तीसगढ़ में सज गई चौसर, कहीं राजनीतिक विरासत बचाने की जंग, तो कहीं दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर
छत्तीसगढ़ में सज गई चौसर, कहीं राजनीतिक विरासत बचाने की जंग, तो कहीं दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर

नईदुनिया, राज्य ब्यूरो, रायपुर। छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है। छत्तीगढ़ में मुख्य चुनावी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहने की संभावना है। हाल में ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई है जिसके बाद उसके हौसले काफी बुलंद हैं। वहीं, भाजपा भी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी।

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छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटों के लिए चौसर सज चुकी है। गुस्र्वार को राज्य की तीसरे चरण की सभी सातों सीटों पर भी नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो गई। इसके साथ ही सभी सीटों पर तस्वीर साफ हो गई है।

राज्य बनने के बाद से अब तक हुए तीन आम चुनाव में भाजपा 10 सीटें जीतती रही है। वहीं, कांग्रेस को हर बार केवल एक सीट से संतोष करना पड़ता था। चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बंपर जीत के साथ राज्य की सत्ता में आई है। ऐसे में यहां कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि राज्य सरकार की भी हर सीट पर प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

सरगुजा-

आदिवासी आरक्षित इस सीट पर राज्य बनने के बाद से भाजपा का कब्जा है। इस बार यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस के खेलसाय सिंह और भाजपा की रेणका सिंह के बीच है। खेलसाय प्रेमनगर विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार के विधायक हैं। वे पहले दो बार सांसद भी रह चुके हैं। वहीं, भाजपा की रेणुका दो बार प्रेमनगर सीट से विधायक रहीं। इस दौरान वे राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं। दो बार सरगुजा विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष रहीं। बसपा ने यहां से माया प्रजापति को टिकट दिया है। गांेगपा ने आशा देवी पोयाम को मैदान में उतारा है।

रायगढ़-
आदिवासियों के लिए आरक्षित इस सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है। यहां से कांग्रेस ने धरमजयगढ़ से अपने दो बार के विधायक लालजीत सिंह राठिया को प्रत्याशी बनाया है। राठिया को राज्य की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने हाल ही में गठित मध्य क्षेत्र विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया है। वे कांग्रेस के दिग्गज नेता चनेशराम राठिया के पुत्र हैं। भाजपा ने उनके मुकाबले गोमती साय को टिकट दिया है। गोमती जशपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं। बसपा ने यहां से इनोसेंट कुजूर व गोगंपा ने जयसिंह सिदार को प्रत्याशी बनाया है।

जांजगीर-चांपा-
छत्तीसगढ़ की इस एकमात्र अनुसूचित जाति आरक्षित यह सीट भाजपा लगातार जीत रही है। कांग्रेस ने यहां से अपने पूर्व दिग्गज नेता परसराम भारद्वाज के पुत्र रवि भारद्वाज को मैदान में उतारा है। भारद्वाज सतनामी समाज में भी अच्छी दखल रखते हैं। वहीं, भाजपा ने इस सीट पर सारंगढ़ सीट से सांसद रहे गुहराम अजगल्ले को टिकट दिया है। अजगल्ले भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं। बसपा ने इस सीट से अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दाऊराम रत्नाकर पर दांव लगाया है।

कोरबा-
परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई इस सीट पर 2014 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने 2009 में यहां से सांसद चुने गए डॉ. चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत को टिकट दिया है। डॉ. महंत अभी सक्ती से विधायक और विधानसभा के अध्यक्ष हैं। डॉ. महंत केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। डॉ. महंत के पिता बिसाहूदास महंत बड़े समाज सुधारक और अविभाजित मध्यप्रदेश में कई बार विधायक रहे। भाजपा ने यहां से नए चेहरे ज्योतिनंद दुबे पर दांव लगाया है। मजदूरों संगठन से सियासत में आए दुबे लंबे समय से सक्रिय राजनीति में हैं। बसपा से प्रीतम सिंह ने पर्चा दाखिल किया है।

बिलासपुर-
राज्य की हॉट सीटों में शामिल बिलासपुर संसदीय क्षेत्र पर भी पिछले कई चुनावों से भाजपा का कब्जा रहा है। पार्टी ने यहां से अपने सिटिंग एमपी का टिकट काट कर संघ परिवार से जुड़े अस्र्ण साव को मैदान में उतारा है। साव के पिता स्व. अभयराम साव ने तो कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उनके दादा ने जनसंघ के प्रत्याशी के स्र्प में जरहागांव सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था। साव का मुकाबला कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव से हैं। छात्रनेता और अब रियल स्टेट कारोबार से जुड़े श्रीवास्तव विधानसभा टिकट के भी दावेदार थे। यह उनका पहला चुनाव है। इस सीट से बसपा ने उत्तमदास को प्रत्याशी बनाया है।

राजनांदगांव-
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र होने की वजह से इस सीट पर सबकी निगाहें रहेंगी। कांग्रेस ने यहां से अपने पूर्व विधायक भोलाराम साहू को टिकट दिया। साहू 2013 में खुज्जी सीट से विधायक चुने गए थे। 2018 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। वहीं भाजपा ने साहू के मुकाबले संतोष पाण्डेय के स्र्प में नए चेहरे पर दांव लगाया है। पाण्डेय पंडरिया से एक बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। बसपा से यहां रविता लकड़ा मैदान में हैं।

दुर्ग-
पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के खाते में जाने वाली इस एकमात्र सीट पर मुख्यमंत्री समेत राज्य के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। सीएम भूपेश बघेल, मंत्री रविंद्र चौबे, इस सीट के निर्वतमान सांसद व राज्य में मंत्री ताम्रध्वज साहू व मंत्री स्र्द्र गुस्र् का निर्वाचन क्षेत्र इसी संसदीय सीट में है। पार्टी ने यहां से प्रतिमा चंद्राकर को टिकट दिया है। विधानसभा चुनाव में प्रतिमा को दुर्ग ग्रामीण से प्रत्याशी घोषित करने के बाद पार्टी ने ऐन वक्त पर उनके स्थान पर ताम्रध्वज को चुनाव लड़वा दिया था। चंद्राकर पूर्व कांग्रेस नेता वासुदेव चंद्राकर की पुत्री हैं। इनके मुकाबले भाजपा ने मुख्यमंत्री भूपेश के रिश्तेदार विजय बघेल को टिकट दिया है। विजय ने 2009 में पाटन सीट से भूपेश को हराया था। बघेल नगर पालिका अध्यक्ष भी रह चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। बसपा ने यहां से गीतांजलि सिंह को मैदान में उतारा है।

रायपुर-
इस सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पार्टी ने यहां से लगातार छह बार सांसद रहे रमेश बैस का टिकट काटकर सुनील सोनी को मैदान में उतारा है। सोनी रायपुर के महापौर रह चुके हैं। पार्टी में उन्हें संगठन का नेता माना जाता है। कांग्रेस ने सोनी के टक्कर में महापौर प्रमोद दुबे को टिकट दिया है। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले दुबे दो बार पार्षद चुने जा चुके हैं। बसपा ने यहां से खिलेश साहू को टिकट दिया है।

महासमुंद-
कांग्रेस ने इस सीट से अपने वरिष्ठ नेता और लगातार दूसरी बार अभनपुर से विधायक चुने गए धनेंद्र साहू को टिकट दिया है। साहू पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य की पहली सरकार तक में मंत्री रह चुके हैं। इस बार मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज थे। उधर, भाजपा ने यहां से चुन्न्ीलाल साहू को टिकट दिया है। साहू पार्टी के पूर्व विधायक हैं। बसपा के टिकट पर यहां से धानसिंह कोसरिया भाग्य आजमा रहे हैं।

बस्तर-
आदिवासी आरक्षित इस सीट पर भी राज्य बनने के बाद से भाजपा का ही कब्जा है। पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता स्व. बलिराम कश्यप और उनके बाद पुत्र दिनेश कश्यप इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इस बार पार्टी ने दिनेश का टिकट काटकर बैदूराम कश्यप को टिकट दिया है। बैदूराम दो बार विधायक रहे हैं। उनके मुकाबले कांग्रेस ने दीपक बैज के स्र्प में युवा चेहरे पर दांव लगाया है। दीपक 2008 के विधानसभा चुनाव में बैदूराम को हरा चुके हैं और लगातार दूसरी बार के विधायक हैं। इस संसदीय क्षेत्र में शामिल आठ में से सात सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है, ऐसे में इस बार यह सीट पार्टी के लिए प्रतिष्ठा की मानी जा रही है। सीपीआइ ने यहां से रामूराम और बसपा ने आयतु राम को टिकट दिया है।

कांकेर-
बस्तर संभाग की यह दूसरी आदिवासी आरक्षित सीट है। इस सीट में धमतरी और बलोद जिले की भी कुछ विधानसभा की सीटें शामिल हैं। बीते तीन आम चुनाव से कांग्रेस यहां जीत के लिए तरस रही है। पार्टी ने इस बार बीरेश ठाकुर को मैदान में उतारा है। ठाकुर भानुप्रतापपुर के पूर्व जनपद अध्यक्ष हैं। आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं। भाजपा ने मोहन मंडावी को टिकट दिया है। मंडावी शिक्षक संघ शाखा के उपाध्यक्ष, तुलसी मानस प्रतिष्ठान के प्रांताध्यक्ष और लोक सेवा आयोग के सदस्य रहे हैं। बसपा ने यहां से सुबे सिंह को टिकट दिया है।


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