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Lok Sabha Elections 2019: राजस्थान की इन सीटों पर सबकी नजर, गहलोत और वसुंधरा की प्रतिष्ठा दांव पर

Lok Sabha Elections 2019. राजस्थान की 25 में से पांच हाई प्रोफाइल सीटों पर सबकी नजर है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 04:46 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 04:46 PM (IST)
Lok Sabha Elections 2019: राजस्थान की इन सीटों पर सबकी नजर, गहलोत और वसुंधरा की प्रतिष्ठा दांव पर
Lok Sabha Elections 2019: राजस्थान की इन सीटों पर सबकी नजर, गहलोत और वसुंधरा की प्रतिष्ठा दांव पर

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद है। राजस्थान की 25 में से पांच हाई प्रोफाइल सीटों पर सबकी नजर है। दोनों ही पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही आम मतदाताओं की भी इन सीटों को लेकर दिलचस्पी है। इन हाई प्रोफाइल सीटों में जोधपुर, झालावाड़, बीकानेर, अलवर और नागौर प्रमुख हैं।

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1. जोधपुर : वैभव गहलोत और गजेंद्र शेखावत में टक्कर

कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सीएम अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत का मुकाबला भाजपा के सांसद व केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से है। दो लोकसभा चुनाव में यहां एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा जीती। 2009 में जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह की बहन चंद्रेश कुमारी ने भाजपा के जसवंत बिश्नोई को हराया था। 2014 में गजेंद्र सिंह शेखावत ने चंद्रेश कुमारी को हराया। वैभव चुनावी राजनीति में पहली बार उतर रहे है। वैभव के चुनाव की कमान उनके पिता अशोक गहलोत ने संभाल रखी है, जो खुद यहां से पांच बार सांसद रहे हैं। आजादी के बाद हुए 16 आम चुनाव में यहां आठ बार कांग्रेस, चार बार भाजपा और चार बार निर्दलीय जीते।

2. अलवर : ‌भंवर जितेंद्र सिंह वर्सेज बालकनाथ

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खास और अलवर पूर्व राजपरिवार के सदस्य भंवर जितेन्द्र सिंह का मुकाबला भाजपा के बाबा बालकनाथ से है। बालकनाथ यादव समाज से हैं, जो अलवर का सबसे बड़ा वोट बैंक है। वहीं, भंवर जितेंद्र पूर्व राजघराने से हैं और इनकी छवि को लेकर भी कोई विवाद नहीं है। बाबा रामेदव की सिफारिश पर पिछले चुनाव में महंत चांदनाथ को टिकट मिला था तो उन्होंने जितेन्द्र सिंह को हराया था। चांदनाथ की मौत के बाद उनके शिष्य बालकनाथ को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। पिछले कुछ साल से मॉब लिंचिंग और गोरक्षा को लेकर पूरे देश में चर्चित रहे अलवर में आजादी के बाद अब तक 16 चुनाव हुए इनमें 10 बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा, एक बार जनता दल, एक बार लोकदल और एक बार निर्दलीय ने जीत हासिल की।

3. बीकानेर: अर्जुन राम मेघवाल और मदन गोपाल में मुकाबला

रिश्ते में मौसेरे भाई भाजपा प्रत्याशी अर्जुन राम मेघवाल और कांग्रेस के मदन गोपाल के बीच काफी दिलचस्प मुकाबला नजर आ रहा है। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री मेघवाल को फिर से टिकट दिए जाने के विरोध में भाजपा के दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी के पार्टी छोड़ने के कारण यह क्षेत्र आम लोगों में चर्चित हो गया है। मेघवाल लगातार दो बार सांसद बन चुके हैं। कांग्रेस प्रत्याशी रिटायर्ड आइपीएस मदनगोपाल मेघवाल समाज से ही हैं। ऐसे में वोट बंटेंगे। आजादी के बाद अब तक हुए 16 लोकसभा चुनाव में छह बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, एक बार लोकदल, एक बार सीपीएम और चार बार निर्दलीय ने जीत हासिल की है।

4. झालावाड़: दुष्यंत सिंह और प्रमोद शर्मा के बीच टक्कर

राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वे यहां से पहले तीन बार सांसद रह चुके हैं। वसुंधरा राजे भी यहां से पांच बार सांसद रही हैं। झालावाड़ को वसुंधरा राजे की राजनीतिक कर्मस्थली माना जाता है। जनसंघ और भाजपा के गढ़ माने जाने वाले झालावाड़ में कांग्रेस ने कई बार प्रत्याशी बदलकर जीत हासिल करने का प्रयास किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इस बार कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर पार्टी में शामिल हुए प्रमोद शर्मा को टिकट दिया है। अब हुए तक 16 आम चुनाव में आठ बार भाजपा, चार बार कांग्रेस, दो बार जनसंघ, एक बार लोकदल और एक बार जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत हासिल की।

5. नागौर: हनुमान वर्सेज ज्योति मिर्धा

जाट राजनीति के गढ़ माने जाने वाले नागौर में कांग्रेस की ज्योति मिर्धा का मुकाबला एनडीए प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल से है। भाजपा ने इस सीट पर अपना कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं कर के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के लिए छोड़ दी है। जाट युवाओं में मजबूत पकड़ के चलते फिलहाल बेनीवाल चुनाव अभियान में ज्योति से आगे नजर आ रहे हैं। वैसे आजादी के बाद से ही नागौर में मिर्धा परिवार का बड़ा वर्चस्व रहा है। पहले बलदेवराम मिर्धा, फिर रामनिवास मिर्धा और नाथूराम मिर्धा नागौर ही नहीं बल्कि राजस्थान के जाट नेता माने जाते थे। इन्हीं के परिवार के रिछपाल मिर्धा, हरेंद्र मिर्धा और भानुप्रकाश मिर्धा भी राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं। 


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