Lok Sabha Election Results 2019: इन चर्चित गुरुओं को अपने राजदार चेलों से मिली शिकस्त
Lok Sabha Election Results 2019 शिबू सोरेन कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य हरीश रावत और मलिकार्जुन खड़गे को अपने चेलों से जोरदार शिकस्त खानी पड़ी है।
By TaniskEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 06:31 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 06:31 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। Lok Sabha Election Results 2019, 17वीं लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के पक्ष में चली सुनामी के बीच से कई दिलचस्प कहानियां सामने आ रही हैं। इनमें सबसे अधिक चर्चा उन चेलों की हो रही है, जिनके कारण उनके गुरुओं को जोरदार शिकस्त खानी पड़ी है। खास बात यह है कि पहले के चुनावों में इन गुरुओं की जीत के सारथी ये चेले ही हुआ करते। चूंकि ये चेले अपने गुरुओं के राजदार और रणनीतिकार दोनों रह चुके थे, ऐसे में उनके लिए गुरुओं को पीछे छोड़ना आसान हो गया। इन चर्चित गुरुओं में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन, कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य, हरीश रावत और मलिकार्जुन खड़गे प्रमुख हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया
चंद महीने पहले तक ज्योतिरादित्य के परम चेले रहे के पी सिंह यादव ने 1.20 लाख से अधिक मतों से गुना लोकसभा सीट पर उन्हें शिकस्त दी है। सिंधिया के हालिया संसदीय चुनावों में यादव ही उनके लेफ्टिनेंट रहे थे। सिंधिया को मिली अपने चेले से हार के बाद गुरु-चेले दोनों की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इन तस्वीरों में किसी आम आदमी की तरह यादव सिंधिया के साथ सेल्फी ले रहे हैं और सिंधिया लगातार उन्हें इग्नोर कर रहे हैं।
खास बात यह है कि गुना लोकसभा क्षेत्र सिंधिया राजघराने का पर्याय रहा है। यानी सिंधिया परिवार का कोई भी और किसी भी पार्टी से खड़ा हो जाए, जीत तय मानी जाती थी। इससे पहले ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया के साथ ही दादी राजमाता सिंधिया भी कई दफा इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी थीं।
अब हम यह जानते हैं कि आखिर चेले ने क्यों छोड़ा गुरु का साथ। जैसा कि अक्सर होता है, सिंधिया की जीत का आधार बनते-बनते यादव के जेहन में भी जीत हासिल करने की ख्वाहिश जग गई। उन्होंने साल 2018 के आखिर में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा, लेकिन सिंधिया ने कमतर आंकते हुए उनकी सिफारिश पर ध्यान नहीं दिया। लगे हाथों यादव ने भी कांग्रेस छोड़ने का फैसला ले लिया, और भाजपा ज्वाइन कर ली। चूंकि यादव अपने गुरु की रणनीति के राजदार थे, ऐसे में भाजपा ने भी गुना से उन्हें खड़ा कर सिंधिया को घेरने के लिए सही समय पर जाल बिछा दिया।
शिबू सोरेन
सिंधिया की तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी उनके चेले ने इस बार के चुनाव में जोरदार झटका दिया है। इस तरह सोरेन दुमका लोकसभा सीट से नौ बार जीत का रिकॉर्ड बनाने से चूक गए. अपनी बिरादरी के उनके चेले सुनील सोरेन ने उन्हें 32 हजार से अधिक मतों से हरा दिया. पिछले लोकसभा चुनाव में सुनील अपने इस गुरु से हार गये थे. सुनील ने भी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण ही अपने गुरु से अलग राह पकड़ी। शिबू सोरेन 11 वीं बार दुमका से अपनी किस्मत आजमा रहे थे. गौरतलब है कि 1952 से अभी तक यहां हुए संसदीय चुनावों में सर्वाधिक बार झामुमो के प्रत्याशी ही विजयी होते रहे हैं।
हरीश रावत
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी अपने चेले के हाथों की शिकस्त खानी पड़ी है। नैनीताल लोकसभा सीट से प्रत्याशी रावत को भाजपा के प्रत्याशी और उनके पुराने चेले अजय भट्ट ने 339096 वोटों से मात दी। बता दें कि 2017 में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हरीश रावत ने हरिद्वार और किच्छा विधानसभा से चुनाव लड़ा था, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
मल्लिकार्जुन खड़गे
लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत पर उनकी पार्टी को वायनाड में राहुल गांधी की जीत से भी अधिक यकीन था, लेकिन परिणाम चौंकाने वाला रहा है। दिलचस्प यह है कि इस बार उन्हें भी हार का सामना अपने चेले के हाथों ही करना पड़ा है। गुलबर्गा सीट से हारने वाले खड़गे 9 बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं। लेकिन मोदी की सुनामी में उनकी एक न चली। भाजपा नेता और कभी खड़गे से राजनीति की एबीसीडी सीखने वाले उमेश जाधव ने खड़गे को उनके राजनीतिक करियर में पहली बार इस तरह मात दी. 95,452 वोटों से हारे को बुढ़ापे में अपने चेले से हारना बड़ा सता रहा है।
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