Lok Sabha Election Result 2019: पीएम मोदी के सामने विकास दर तेज करने और रोजगार सृजित करने की बड़ी चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार के लिए विकास दर तेज करने और रोजगार सृजित करने की बड़ी चुनौतियां हैं।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली सत्ताधारी मोदी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन सुधारने को कई चुनौतियों पर पार पाना होगा। नई सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती विकास दर को ऊपर उठाने, रोजगार बढ़ाने, निजी उपभोग व निजी निवेश को बढ़ावा देने, खाद्य महंगाई को काबू रखने और राजकोषीय अनुशासन को बनाये रखने की होगी।
सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती विकास दर में गिरावट को थामने की है। वित्त वर्ष 2018-19 में देश की विकास दर घटकर 7 प्रतिशत पर आ गयी है जो मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में न्यूनतम है। खासकर नोटबंदी के बाद विकास दर में गिरावट आयी है। चालू वित्त वर्ष में भी विकास दर सात फीसदी के आस-पास रहने का अनुमान है। हाल के महीनों में कई एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के पूर्व में घोषित अनुमान को घटाया है, इसलिए सरकार को आने वाले दिनों में विकास दर को गति देने के उपाय करने होंगे। अर्थव्यवस्था की क्षेत्रवार चुनौतियों पर अगर नजर डालें तो कृषि क्षेत्र के लिए नई सरकार को ठोस उपाय करने होंगे। कृषि और संबद्ध क्षेत्र की विकास दर पिछले वित्त वर्ष में घटकर तीन साल के न्यूनतम स्तर 2.7 प्रतिशत पर आ गयी है। इस साल मानसून सामान्य से कम रहने की उम्मीद है, ऐसी स्थिति में सरकार के समक्ष ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाये रखने की चुनौती होगी।
मोदी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था में निजी निवेश और उपभोग को बढ़ाना भी चुनौतीपूर्ण होगा। फिलहाल निजी उपभोग में ठहराव की स्थिति है। वित्त वर्ष 2018-19 में निजी उपभोग में मात्र 8.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कोटक म्युच्युअल फंड के एमडी व सीईओ नीलेश शाह का कहना है कि बाजार की दृष्टि से राजनीतिक अनिश्चितता दूर होगा हमेशा ही स्वागतयोग्य होता है। मौजूदा जनादेश स्थिर सरकार चुनने के लिए मतदाताओं की परिपक्वता को दर्शाता है। अब अनिश्चितता गुजर चुकी हैं, इसलिए बाजार का ध्यान अब सरकार की ओर से निवेश को बढ़ावा देने और उपभोग बढ़ाने के लिए उठाये जाने वाले कदमों पर होगा।
अर्थव्यवस्था में निवेश की रफ्तार भी धीमी पड़ी हुई है। ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन की दर 2011-12 में 34.3 प्रतिशत थी जो अब घटकर 28.9 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में कंसल्टेंट और वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका पांडेय का कहना है कि अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है। अब तक सिर्फ निजी निवेश की दर धीमी हो रही थी लेकिन अब निजी उपभोग भी कम हो रहा है। इसलिए सरकार को निजी उपभोग मांग को बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत है। इसलिए निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। इसके अलावा कच्चे तेल का भाव भी बढ़ रहा है जिसका असर चालू खाते के घाटे और मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। इसके अलावा राजकोषीय अनुशासन बनाये रखने की चुनौती भी होगी। घरेलू उत्पादकता बढ़ाकर निर्यात को भी बढ़ावा देने की दरकार भी है।
चुनाव अभियान के दौरान रोजगार के मोर्चे पर सरकार को विपक्ष की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। ऐसे में नई सरकार के लिए रोजगार सृजित करने की बड़ी चुनौती होगी। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए निर्यात की वृद्धि तेज करने की दरकार है। साथ ही मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की गति भी तेजी करने की चुनौती होगी जो जीएसटी लागू होने के बाद धीरे-धीरे गति पकड़ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के चलते वित्त वर्ष 2018-19 में निर्यात में महज 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऐसे में नई सरकार को निर्यात बढ़ाने के उपायों पर जोर देना होगा। साथ राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने और मुद्रास्फीति खासकर खाद्य महंगाई दर को भी काबू रखना होगा। मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में महंगाई नियंत्रित रही है लेकिन थोक खाद्य महंगाई दर 33 माह के उच्चतम स्तर पहुंच गयी है। ऐसी स्थिति में अगर इस पर अंकुश नहीं लगा तो निम्न आय वर्ग पर महंगाई की मार पड़ सकती है।
आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां
1. विकास दर को तेज करना
2. निजी निवेश व उपभोग को बढ़ाना
3. खाद्य महंगाई दर को काबू रखना
4. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना
5. निर्यात को बढ़ाना
6. राजकोषीय घाटे को काबू रखना
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