Lok Sabha Election Result 2019: भाजपा के प्रचंड बहुमत के हैं बड़े मायने
Lok Sabha Election Result 2019 भाजपा की बड़ी जीत के बड़े मायने हैं। राष्ट्रवाद का मुद्दा बना भाजपा के लिए वैचारिक लड़ाई का भी आधार बना है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। आम चुनाव का जो अभूतपूर्व नतीजा आया है उसके निहितार्थ पर लंबे अरसे तक चर्चा होगी। पर कुछ बातें शीशे की तरह साफ हैं। पहला और अहम संदेश यह कि 'देश प्रथम' की भावना की ज्वाला हर किसी के दिल में धधकती है। दूसरा संदेश यह कि अब कास्ट से उपर उठकर लोग क्लास (जाति नहीं वर्ग) में बंट गए हैं जहां जनोन्मुखी योजनाएं और उसकी डिलीवरी मायने रखती है। तीसरा संदेश यह कि जाति के ठेकेदार से गिरकर परिवार के पोषक बने लोगों के लिए स्थान सीमित होता जा रहा है। और चौथा संदेश यह कि मजबूत संगठन और कुशल व लोकप्रिय नेतृत्व का करिश्मा लोगों के सिर चढ़कर बोलता है।
राष्ट्रवाद को लेकर चुनाव के बीच भी कई सवाल उठाए गए। इसके राजनीतिकरण का आरोप भी लगा। सामान्यतया ऐसे सवालों पर राजनीतिक दल झुकते भी नजर आते हैं। लेकिन यह मोदी और शाह की ही जोड़ी थी जिसने यह जताने में संकोच नहीं किया कि राष्ट्रवाद भी चुनावी मुद्दा होना ही चाहिए। बल्कि इसमें झिझकना शर्म की बात है। इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि जनता इस मुद्दे के लिए तैयार है। उनके लिए राष्ट्रवाद और एक अर्थ में बालाकोट में आतंकी गढ़ पर हमला खुद के अस्तित्व व गर्व की रक्षा के समान था। जाहिर तौर पर यह चुनाव एक बहुत बड़ी वैचारिक लड़ाई भी थी जिसमें विपक्ष के राष्ट्रवाद के मुकाबले जनता ने भाजपा के राष्ट्रवाद को चुना। विपक्ष जब नोटबंदी, राफेल और जीएसटी जैसे चूके हुए मुद्दे पर धार लगा रहा था, तब भाजपा ने बालाकोट की जो कथा रची और उसे जिस तरह जनता तक पहुंचाया गया वह अभूतपूर्व था। संदेशवाहक की भूमिका जाहिर तौर पर सबसे विश्वसनीय नेता मोदी ही थे लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मजबूत संगठन के जरिए सफल माध्यम का काम किया।
भारतीय राजनीति में जाति का महत्व रहा है। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे अहम राज्यों में गठबंधन के बावजूद जाति की राजनीति टूटी और वह वर्ग में बंटी दिखी तो उसके पीछे भी राष्ट्रवाद सबसे बड़ा कारण था। लेकिन उसके साथ ही विकास की भूख ने भी जनता को जाति की बजाय वर्ग की तरह सोचने पर मजबूर कर दिया। जिस तरह जनोन्मुखी योजनाएं जमीन तक पहुंची और तुष्टीकरण की बजाय सशक्तिकरण पर जोर दिया गया उसने भी तय कर दिया कि जाति की सीमा टूटे। इस चुनाव ने पूर्व स्थापित उस राजनीतिक कथन को भी गलत साबित कर दिया है कि विकास के जरिए चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। ध्यान रहे कि पांच साल पहले सत्ता मे आते ही मोदी सरकार ने सबसे पहले गरीबों पर ध्यान केंद्रित किया था।
जाति से जुड़ा सवाल ही परिवार के ठेकेदारो से भी जुड़ा है। वह चाहे मुलायम सिंह यादव की सपा हो या फिर लालू प्रसाद यादव का राजद या देवेगौड़ा का जद एस या फिर अजित सिंह का रालोद और मायावती की बसपा। कांग्रेस पर तो शुरू से ही परिवारवाद का आरोप लगता रहा है। कांग्रेस को छोड़ दिया जाए तो बाकी दलों के नेता जाति के नेता बनकर उभरे थे और धीरे धीरे उनका पूरा ध्यान अपने परिवार पर केंद्रित होता चला गया था। जाहिर है कि ऐसे मे उन नेताओं में खुद के लिए भविष्य देखती रही जाति का भ्रम भी अब टूटने लगा है। जाति से वर्ग में बदलने का एक कारण यह भी हो सकता है। वहीं मोदी सरकार की ओर से गरीब सवर्णो को आरक्षण देकर भी ऐसे ही वर्ग को बढ़ावा दिया गया था। यह ध्यान रहे कि कास्ट से क्लास की यह राजनीति वामदलों की राजनीति से अलग है। भाजपा की ओर मुखातिब इस नए वर्ग में राष्ट्रवाद भी प्रखर है और आध्यात्म भी।
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