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Lok Sabha Election 2019 : साझी ताकत से मोदी को चुनौती देने को तैयार विपक्ष

चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद समूचा विपक्ष एक जुट हो रहा है। पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए उत्तर प्रदेश बिहार और आंध्र प्रदेश राज्यों में विपक्ष एक होने के आसार हैं।

By Dhyanendra JournalEdited By: Published: Mon, 11 Mar 2019 11:54 AM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 11:54 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019 : साझी ताकत से मोदी को चुनौती देने को तैयार विपक्ष
Lok Sabha Election 2019 : साझी ताकत से मोदी को चुनौती देने को तैयार विपक्ष

संजय मिश्र, नई दिल्ली। Lok Sabha Election 2019 - विपक्ष की सियासी फौज का संयुक्त राजनीतिक कमांडर भले तय नहीं हुआ हो मगर इसमें संदेह नहीं कि विपक्षी गठबंधन की सेना का नेतृत्व कांग्रेस ही करेगी। विपक्षी गठबंधन में शामिल कई क्षेत्रीय दलों की भले कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा है मगर सियासत की मौजूदा हकीकत में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस का हाथ थामना उनकी भी जरूरत है।

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विपक्षी गोलबंदी का दायरा बढ़ाने की कांग्रेस की यह पहल ही रही कि प्रधानमंत्री मोदी को महागठबंधन में राजनीतिक चुनौती की आहट सुनाई देने लगी। तभी विपक्षी एकजुटता को ‘महामिलावट’ बता इसके अंतर्विरोधों को रेखांकित करने में कसर नहीं छोड़ी गई। विपक्षी सेना में शामिल दलों की संयुक्त ताकत को सियासी कसौटी पर देखा जाए तो बिहार में कांग्रेस, आरजेडी-रालोसपा (RJD-RLSP) व हम का सामाजिक समीकरण एनडीए (NDA) के लिए मजबूत चुनौती दिख रहा है। आरजेडी का करीब 25 फीसद का एक ठोस वोट आधार है। ओबीसी के कुर्मी समुदाय के नेता उपेंद्र कुशवाहा का अपने वर्ग पर प्रभाव है। तो दलित में सबसे पिछड़े वर्ग से आने वाले जीतनराम मांझी के साथ निषाद समाज के नेता मुकेश सहनी सामाजिक समीकरणों की कसौटी पर महागठबंधन को मजबूत आधार देते हैं।

हालांकि बीते तीन दशक से बिहार की सियासत की एक धुरी रहे दिग्गज लालू प्रसाद यादव का जेल में होना विपक्षी खेमे की एक कमजोर कड़ी है। झारखंड में जेएमएम (JMM) और बाबू लाल मरांडी की जेवीएम (JVM) को साथ लाकर कांग्रेस ने सूबे में भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। विपक्षी मोर्चेबंदी के साथ भाजपा की चुनौती भी दोहरी होगी कि केंद्र ही नहीं सूबे में भी उसकी सरकार है। जबकि कांग्रेस की चुनौती सूबे में जेएमएम (JMM) को साधे रखने की होगी जो लोकसभा चुनाव में जूनियर पार्टनर बनने को राजी तो हो गई है मगर उसकी छटपटाहट खत्म नहीं हुई है।

वहीं देश की सियासत की दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में विपक्षी सेना फिलहाल दो अलग अलग किनारों पर आपस में ही तलवार लड़ाने को तैयार हैं। सपा-बसपा अन्य कुछ छोटे दलों के साथ भाजपा के खिलाफ चुनावी ताल ठोंकने का एलान कर चुके हैं। इस अनदेखी के बाद कांग्रेस भी प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में उतार अपना दम दिखाने को गंभीर है। ऐसे में आपसी तनातनी का सियासी नुकसान होता है तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर संपूर्ण विपक्ष पर पड़ेगा। विपक्षी सेना की सबसे कमजोर कड़ी भी उत्तर प्रदेश की यह सियासी सूरत मानी जा रही है।

वैसे विपक्षी गोलबंदी में ममता बनर्जी का साथ होना राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस की बड़ी कामयाबी है। मगर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से चुनावी तालमेल पर दुविधा उसकी चुनौती बढ़ा रही है। सीट बंटवारे में देरी को लेकर कांग्रेस पर माकपा का भी दबाव है। राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को ममता और वामपंथी दोनों की जरूरत है। ऐसे में दो विरोधी ध्रुवों में संतुलन साधते हुए एक के साथ चुनावी गठबंधन की बाधादौड़ कांग्रेस के लिए आसान नहीं है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस का एनसीपी (NCP) के साथ चुनावी गठबंधन इस लिहाज से ठोस है। राहुल की पवार से हाल के समय में बढ़ी आपसी निकटता में एनसीपी (NCP) जैसे पुराने सहयोगी का साथ कांग्रेस के लिए दोहरे फायदे का सौदा है। दक्षिणी राज्यों में कर्नाटक और तमिलनाडु में विपक्षी सेना मजबूत दिख रही है। कर्नाटक दक्षिण में भाजपा का एकमात्र मजबूत गढ़ है। जेडी(एस) के साथ कांग्रेस का गठबंधन जाहिर तौर पर भाजपा की चुनौती बढ़ाएगा जहां से पिछले चुनाव में भाजपा को 18 लोकसभा सीटें मिली थी। मगर सत्ता का साझीदार बनने के बाद भी जेडी(एस) के साथ भरोसे का सामंजस्य नहीं बन पाना इस एकजुटता की कठिन परीक्षा होगी।

तमिलनाडु में मजबूत आधारों वाली द्रमुक विपक्षी पलटन की कमान संभाल रही है। जयललिता के देहांत के बाद अन्नाद्रमुक की अंदरूनी फूट और सूबे की सियासी प्रकृति को देखते हुए विपक्षी खेमा इस बार बाजी पलटने की उम्मीद लगा रहा। द्रमुक उन कुछ दलों में शामिल है जो खुले तौर पर कांग्रेस की विपक्षी सियासत की अगुआई के पैरोकार रहे हैं। तेलंगाना और आंध्र में विपक्षी गठबंधन की कोई तस्वीर नहीं बन रही। जबकि केरल में मुख्य मुकाबला विपक्षी खेमे के बीच ही है। कांग्रेस की अगुआई वाला यूडीएफ सत्तारूढ़ वामपंथी एलडीएफ गठबंधन को चुनौती देगा।

राष्ट्रीय व राज्य की राजनीति के इस विरोधाभास को भाजपा जितना आगे बढ़ा पाएगी दोनों खेमों के लिए चुनौती उसी अनुपात में बढ़ेगी। जम्मू-कश्मीर में भी नेशनल कांफ्रेंस के साथ कांग्रेस का गठबंधन विपक्षी खेमे की सियासी जमीन को पुख्ता करेगा।


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