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Lok Sabha Election 2019: छत्तीसगढ़ में भाजपा को गढ़ बचाने की चुनौती

भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में इस बार लोकसभा चुनाव को लेकर अहम चुनौतियां हैं। तीन बार से सत्ता में काबिज भाजपा लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को ध्यान में रखकर चुनाव लड़ने जा रही है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 11:05 AM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 11:05 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: छत्तीसगढ़ में भाजपा को गढ़ बचाने की चुनौती
Lok Sabha Election 2019: छत्तीसगढ़ में भाजपा को गढ़ बचाने की चुनौती

आलोक मिश्र, रायपुर। छत्तीसगढ़ को भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां हमेशा भाजपा और कांग्रेस में ही सीधी टक्कर रही है, जिसमें हमेशा बाजी भाजपा ने ही मारी है। लेकिन इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं क्योंकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार का असर लोकसभा चुनाव में पड़ना स्वाभाविक माना जा रहा है।

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केंद्र में दोबारा ताजपोशी की तमन्नाई भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ के नतीजे काफी अहम होंगे और चुनौती भी तगड़ी मिलेगी क्योंकि इस बार उसका मुकाबला पुरानी कांग्रेस से नहीं बल्कि सत्ता में बैठी कांग्रेस से होगा, जो अपने प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ स्तर तक सांगठनिक मजबूती कर डटी है। छत्तीसगढ़ में हमेशा ही राजनीति के केंद्र में भाजपा और कांग्रेस ही रही है। तीसरे मोर्चे के रूप में कभी कोई दल चुनौती नहीं पेश कर पाया। सन 2000 में राज्य गठन के बाद हुए तीन लोकसभा चुनावों में हमेशा भाजपा ने ही बाजी मारी ग्यारह में से दस सीटें जीत कर। कांग्रेस की झोली में हमेशा एक ही सीट आई और वह भी बदले-बदले क्षेत्रों से। कभी भी किसी खास क्षेत्र पर उसका एकाधिकार नहीं रहा।

लेकिन इस बार पंद्रह साल से सूखा झेल रही कांग्रेस ने बड़े अंतर से भाजपा को हराकर उसके लिए लोकसभा की राह भी कठिन कर दी है। हार के बाद सत्ता के आवरण में ढका भाजपा का भीतरी असंतोष, बड़े चेहरों के प्रति नाराजगी व भ्रष्टाचार सभी बाहर आ रहे हैं। वहीं सत्ता मिलने के बाद से कांग्रेस भी उस पर तरह-तरह से हमलावर है। आए दिन बिठाई जा रही जांचे भी भाजपा के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। ऐसे में इनसे उबरना और पुरानी जीत को दोहराना वाकई बड़ा काम होगा भाजपा के लिए।

चुनावी वैतरणी पार करने के लिए उसके पास अब नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और उनकी उपलब्धियों का ही आसरा है । प्रदेश में आदिवासी और किसान बड़े वोटबैंक हैं। ये दोनों वर्ग जिसे चाहते हैं, उसे दिल्ली व रायपुर भेजते हैं। लोकसभा चुनावों में भाजपा को ही इनका साथ मिलता रहा है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में इनका कांग्रेस के प्रति बढ़ा मोह अभी बरकरार दिख रहा है। सरकार बनते ही कर्जमाफी व समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कर कांग्रेस ने काफी हद तक किसानों का विश्वास भी जीत लिया है। जबकि भाजपा द्वारा दी गई दो हजार की सम्मान राशि प्रदेश के 30 लाख किसानों में सिर्फ सवा लाख को ही मिल पाई है क्योंकि वर्तमान सरकार इन किसानों की सूची ही तैयार नहीं कर पाई।

अब देखना यह होगा कि सम्मान राशि न मिल पाने का ठीकरा कांग्रेस पर किस तरह फोड़ती है भाजपा और खुद को किसानों का असली हमदर्द साबित कर पाती है। वहीं आदिवासी इधर विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस के साथ रहे हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देने के बावजूद लोकसभा में भाजपा के पाले में खड़े हुए थे, जिसके कारण बस्तर में दो तिहाई सीटें जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में वहां की दोनों सीटें लंबे अंतर से हारी थी।

इस बार वह कोई चूक नहीं करना चाहती। वह अपने साठ दिन के कार्यकाल बनाम मोदी के 60 माह के कार्यकाल का नारा देकर मैदान में कूद पड़ी है। तीसरे धड़े के रूप में बसपा ही अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है, लेकिन कोई खास प्रभाव कभी नहीं छोड़ पाई। अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ व बसपा का गठजोड़ अस्तित्व में आया लेकिन वह भी बहुत कारगर नहीं दिखा। यह गठबंधन लोकसभा चुनाव में भी ताल ठोंकने की तैयारी में है। हालांकि जोगी की पार्टी के कद्दावर नेता एक-एक कर उनका साथ छोड़ कांग्रेस में शामिल होते जा रहे हैं।


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