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अंतिम चरण का मतदान: पश्चिम बंगाल में सियासी ऊंट कब किस करवट बैठे, ये कोई नहीं बता सकता

बंगाल के तीन जिलों की नौ सीटों पर होने जा रहे मतदान बंगाल की इस महान विभूति पर केंद्रित हो चले हैं। विद्यासागर किसका बेड़ा पार कराएंगे इसका पता तो 23 मई को ही चलेगा।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 10:53 AM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 10:53 AM (IST)
अंतिम चरण का मतदान: पश्चिम बंगाल में सियासी ऊंट कब किस करवट बैठे, ये कोई नहीं बता सकता
अंतिम चरण का मतदान: पश्चिम बंगाल में सियासी ऊंट कब किस करवट बैठे, ये कोई नहीं बता सकता

कोलकाता, जागरण संवाददाता। सियासी ऊंट कब किस करवट बैठे, ये कोई नहीं बता सकता। किसी ने शायद ही सोचा होगा कि बंगाल में पुनर्जागरण के पुरोधा ईश्वर चंद्र विद्यासागर सातवें व आखिरी चरण के मतदान से पहले तमाम ज्वलंत मसलों को पीछे छोड़कर यकायक सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन जाएंगे। बंगाल के तीन जिलों की नौ सीटों पर होने जा रहे मतदान बंगाल की इस महान विभूति पर केंद्रित हो चले हैं। करीब डेढ़ करोड़ मतदाता जब 111 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने 17,042 मतदान केंद्रों का रुख करेंगे तो उनके जेहन में एक बार विद्यासागर जरूर कौंधेंगे। विद्यासागर किसका बेड़ा पार कराएंगे, इसका पता तो 23 मई को ही चलेगा।

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अमित शाह के रोड शो पर हमले के बाद नाटकीय रूप से बदला माहौल: भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कोलकाता में हुए रोड शो पर हमले के बाद पूरा चुनावी माहौल एकदम से बदल गया। उस दौरान विद्यासागर कॉलेज में लगी ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा कुछ लोगों ने तोड़ दी। इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस व भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। भाजपा ने इसे तृणमूल की गुंडई और सूबे में व्याप्त अराजकता का नतीजा बताया तो तृणमूल ने इसे दूसरे राज्यों से पहुंचे भाजपा के लोगों की करतूत करार दिया।

भाजपा ने इस घटना को बंगाल में अराजकता की स्थिति से जोड़कर जोर-शोर से पेश किया तो ममता ने भी तुरंत इसे बंगाली सेंटीमेंट से जोड़ते हुए कहा- भला बंगाल में रहने वाला कोई व्यक्ति विद्यासागर जैसे मनीषी की प्रतिमा तोड़ सकता है? गौरतलब है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस व रवींद्र नाथ टैगोर की तरह विद्यासागर से भी बंगाल के लोगों का गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। अब देखना यह है कि बंगाल में 19 मई को जब आखिरी चरण का मतदान होगा तो ‘अराजकता’ बनाम ‘बंगाली सेंटीमेंट’ में किसका पलड़ा भारी रहता है।

विस चुनाव के लिहाज से भी काफी अहम हैं नौ सीटें: कोलकाता उत्तर, कोलकाता दक्षिण, दमदम, जादवपुर, बशीरहाट, मथुरापुर, डायमंड हार्बर, बारासात व जयनगर-ये नौ लोकसभा सीटें विधानसभा चुनाव के लिहाज से भी बेहद अहम हैं। यही वजह है कि भाजपा इन सीटों पर सबसे ज्यादा जोर लगा रही है। 2021 में बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा यहां क्षमता की परख कर लेना चाहती है।

दक्षिण कोलकाता से होकर गुजरता है राज्य सचिवालय का रास्ता: राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि राज्य सचिवालय नवान्न का रास्ता दक्षिण कोलकाता से होकर गुजरता है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि इस संसदीय क्षेत्र के अधीन सात विधानसभा सीटों में से छह के विधायक वर्तमान में राज्य के मंत्री हैं और सातवें ने हाल में मंत्रिपद छोड़ा है। यह वही सीट है, जो हमेशा से ममता का गढ़ है। उस समय भी, जब राज्य में वाममोर्चा की तूती बोलती थी। यह वही सीट है, जहां से जीतकर ममता छह बार संसद पहुंचीं और यही वह सीट है, जहां की भवानीपुर विधानसभा सीट से जीत दर्ज कर ममता विधानसभा पहुंचीं।  

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