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Lok Sabha Election 2019: कश्मीर में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कौन किसके साथ, अब खुलने लगा राज

लोकसभा चुनाव के दौरान भले ही कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी भले ही एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में ताल ठोंकती नजर आती हों मगर हर सीट पर गठजोड़ हैरान करने वाला है

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 10:35 AM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 04:15 PM (IST)
Lok Sabha  Election 2019: कश्मीर में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कौन किसके साथ, अब खुलने लगा राज
Lok Sabha Election 2019: कश्मीर में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कौन किसके साथ, अब खुलने लगा राज

राज्य ब्यूरो, जम्मू। लोकसभा चुनाव के दौरान भले ही कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीडीपी भले ही अलग-अलग और एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में ताल ठोंकती नजर आती हों, मगर हर सीट पर गठजोड़ हैरान करने वाला है। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस तो कुछ सीट पर फ्रेंडली मैच का दावा भी कर रही थी लेकिन पीडीपी भी भीतर ही भीतर इस गठजोड़ में शामिल हो चुकी है।

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पीडीपी के साथ न कांग्रेस और न ही नेकां ने कोई प्रत्यक्ष समझौता किया है। बावजूद इसके पीडीपी ने जम्मू संभाग में अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस का समर्थन करते हुए जम्मू-पुंछ और ऊधमपुर-कठुआ क्षेत्र से अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा। वहीं, श्रीनगर में कांग्रेस मैदान में नहीं उतरी तो पीडीपी ने डा. फारूक अब्दुल्ला की मदद में कमजोर उम्मीदवार उतारा। नेकां ने इस उपकार के बदले अनंतनाग से कमजोर उम्मीदवार मैदान में उतारा है। गौरतलब है कि 2014 चुनाव में राज्य की तीन संसदीय सीटें जम्मू-पुंछ, उधमपुर-डोडा व लद्दाख को भाजपा ने जीती थी, जबकि कश्मीर घाटी की तीनों सीटों श्रीनगर-बडग़ाम, अनंतनाग-पुलवामा और बारामुला-कुपवाड़ा पर पीडीपी ने जीत दर्ज की थी।

इस बार भाजपा को रोकने के लिए नेकां व पीडीपी ने जम्मू की दोनों सीटों पर प्रत्याशी ही नहीं उतारे जबकि कश्मीर घाटी की तीन सीटों को तीनों दलों ने आपस में बांट लिया है। लद्दाख सीट पर भी कांग्रेस को नेकां व पीडीपी से समर्थन की आस है। खासतौर पर तीनों दलों ने क्षेत्रीय आधार पर गुप्त समझौत किए हैं और एक-दूसरे को कूटनीतिक मदद भी दे रहे हैं। पीडीपी कांग्रेस के साथ किसी तरह के समझौते से इन्कार किया है, लेकिन उसने भी जम्मू की सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। गणित साफ है, जम्मू संभाग में कांग्रेस का जनाधार फिर से सहेजने की जुगत है, जबकि नेशनल काफ्रेंस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक मुस्लिम समुदाय के वोटों पर ही सियासत करती हैं। 2014 के चुनाव में जम्मू-पुंछ सीट पर पीडीपी को करीब 1.68 लाख हजार वोट लिए थे। नेकां के समर्थन के बावजूद कांग्रेस को हार मिली थी।

अलबत्ता, अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। नरेंद्र मोदी का असर अब भी नजर आता है। इसलिए अगर नेकां और पीडीपी का वोटर कांग्रेस के प्रत्याशी के पक्ष में जाता है तो जम्मू-पुंछ सीट पर भाजपा की चुनौती बढ़ सकती है।

पिछले चुनाव में 60,000 वोटों से हारे थे आजाद

उधर उधमपुर-पुंछ सीट पर जहां पिछले संसदीय चुनाव में गुलाम नबी आजाद भाजपा के डा. जितेंद्र सिंह से करीब 60 हजार वोटों से हारे थे, इस बार डॉ. कर्ण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, उनके समर्थन में नेकां ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। वहीं पीडीपी ने गुपचुप तरीके से उन्हें समर्थन देते हुए मैदान से बाहर रहने का फैसला लिया। इस क्षेत्र में नेकां और पीडीपी का अपना जनाधार है और संप्रदाय के आधार पर वोटों का विभाजन इस इलाके में साफ नजर आता है। यही वजह है कि नेकां और पीडीपी मैदान से बाहर रहकर कांग्रेस के पक्ष में बैटिंग कर रहे हैं।

कश्मीर में नेकां को कांग्रेस का समर्थन

जम्मू में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ गठजोड़ के बदले डा. फारूक अब्दुल्ला की श्रीनगर में राह आसान करने के लिए कांग्रेस का समर्थन लिया है। कांग्रेस के नेता उनके पक्ष में वहां प्रचार भी कर रहे हैं। पीडीपी ने भी यहां नेशनल कांफ्रेंस को परोक्ष समर्थन देते हुए आगा सैयद मोहसिन को उम्मीदवार बनाया है। अगर पीडीपी चाहती तो वह यहां से अशरफ मीर समेत पीडीपी के किसी बड़े नेता को उतार सकती थी। इससे डा. फारूक अब्दुल्ला को चुनौती मिलती और उसका फायदा पीपुल्स कांफ्रेंस के इरफान रजा अंसारी को होता। अंसारी और मेहदी दोनों ही शिया हैं।

अंतिम समय कांग्रेस ने बदल दिया उम्मीदवार

उत्तरी कश्मीर में जहां भाजपा के करीबी कहे जाने वाले सज्जाद गनी लोन की जीत को लेकर भी भी दावे किए जा रहे हैं और पीडीपी के अब्दुल क्यूम वानी के आधार को देखते हुए ही कांग्रेस ने नेकां के मोहम्मद अकबर लोन को फायदा पहुंचाने के लिए अंतिम समय में अपना उम्मीदवार बदल दिया। पहले सलमान सोज चुनाव लडऩे वाले थे जो नेकां के वोट बैंक में सीधे सेंध लगाते। उन्हें हटाकर फारूक मीर को उम्मीदवार बनाया गया है, जो पीडीपी, पीसी के वोट बैंक में सेंध लगाने में समर्थ है। बारामुला, बांडीपोर में उनका कोई आधार न होने के कारण फायदा सीधे नेशनल कांफ्रेंस को है।

नेकां ने पीडीपी के उपहार का चुकाया बदला

दक्षिण कश्मीर में श्रीनगर सीट पर डॉ. फारूक अब्दुल्ला के मुकाबले कमजोर उम्मीदवार खड़ा करने के पीडीपी के उपकार का बदला चुकाते हुए नेकां ने दक्षिण कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की जीत में रुकावट न बनने के इरादे से ही उच्च न्यायालय के पूर्व जज हसनैन मसूदी को टिकट दिया है। इसके अलावा कांग्रेस के जीए मीर चुनाव मैदान में हैं। वह पहले से ही इस क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद से अभी तक पूरी तरह चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं हुए हैं। अर्थात इसका फायदा महबूबा को ही है।

भापजा के वोट काटने का तरीका

स्थानीय सियासी माहिरों के मुताबिक, कश्मीर में सियासी गठजोड़ बहुत हैरान करने वाला है। श्रीनगर में नेकां को उसकी प्रमुख विरोधी पीडीपी ने आसानी से जीतने की जमीन तैयार करने में मदद दी है, जबकि उत्तरी कश्मीर में कांग्रेस ने पीडीपी-नेकां के बीच ही मुख्य मुकाबला रहने देते हुए भाजपा व पीपुल्स कांफ्रेंस के वोट काटने के लिए उम्मीदवार उतारा है। दक्षिण कश्मीर में नेकां ने पीडीपी-कांग्रेस के बीच ही हार जीत की लड़ाई की जमीन तैयार करते हुए भाजपा व अन्य दलों के वोट काटने का तरीका अपनाया है।

छह संसदीय सीटों में चार सीटों के लिए चुनाव मैदान 60 उम्मीदवार

जम्मू कश्मीर की चार सीटों के लिए नाम वापस लेने का समय गुजरने के बाद चुनावी तस्वीर साफ हो चुकी है। चार संसदीय सीटों के लिए 60 उम्मीदवार मैदान में रह गए हैं। अनंतनाग सीट के लिए नामांकन की प्रक्रिया जारी है और लद्दाख के लिए अधिसूचना जारी नहीं हुई है। लेकिन इन सभी छह सीटों पर लड़ाई सिर्फ भाजपा बनाम अन्य है। कश्मीर घाटी के मौजूदा सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों के बीच कहीं भी व्यावहारिक तौर पर जीत की दावेदार नहीं है, खुद उसके नेता कहते हैं कि इस बार हम अच्छे वोट लेंगे। इसके बावजूद भाजपा को राज्य से बाहर रखने के लिए नेकां, कांग्रेस और पीडीपी किसी जगह प्रत्यक्ष तो कहीं परोक्ष रूप से एक साथ खड़े हैं।


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