Lok Sabha Election 2019: क्या MP में दल-बदल का फायदा उठा पाएगी कांग्रेस, जानें- गणित
Lok Sabha Election 2019 मध्य प्रदेश कांग्रेस में कई नेताओं ने वापसी की तो कुछ ने दूसरे दलों का साथ छोड़ कांग्रेस का दाम थाम लिया। इससे यहां का चुनावी रण दिलचस्प हो गया है।
भोपाल, रवींद्र कैलासिया। मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में घर वापसी और दूसरे दलों से आने वाले नेताओं से भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, गुना, भिंड और झाबुआ जैसी करीब आधा दर्जन सीटों पर चुनाव दिलचस्प हो गया है। हालांकि दो सीटों पर कांग्रेस में आए नेताओं से आंतरिक कलह भी हुई, जिसका चुनाव परिणाम पर अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ने के संकेत दिख रहे हैं। कांग्रेस में घर वापसी के अलावा भाजपा और बसपा से नेताओं के प्रवेश के बाद समीकरण बदलने की संभावना जताई जा रही है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा कांग्रेस में नेताओं का प्रवेश हुआ है। इनमें से कुछ ने घर वापसी की है तो कई भाजपा-बसपा और अन्य दलों से आए हैं। कांग्रेस में आए नेताओं की वजह से जिन सीटों पर पार्टी को फायदे की गुंजाइश दिखाई दे रही है उनमें भोपाल, जबलपुर और झाबुआ लोकसभा क्षेत्र हैं। मगर ग्वालियर, गुना और भिंड सीटों पर दलबदलुओं के आने से फायदे की संभावना कम है। गुना में कांग्रेस के पक्ष में बसपा प्रत्याशी लोकेंद्र सिंह राजपूत द्वारा समर्थन देने से मायावती ने कमलनाथ सरकार को धमकी तक दे दी।
सिंधिया के इस कदम और मायावती की प्रतिक्रिया से मुख्यमंत्री कमलनाथ सकते में आ गए थे और उन्होंने स्थिति को संभाला। बयान दिया कि बसपा और कांग्रेस की एक विचारधारा है और कोई मतभेद नहीं हैं। वहीं, रतलाम-झाबुआ लोकसभा क्षेत्र में सांसद कांतिलाल भूरिया के लिए परेशानी का कारण रहे जेवियर मेढ़ा के कांग्रेस में आने से उनकी दिक्कत कुछ हद तक कम हुई है लेकिन बताया जा रहा है कि जेवियर मेढ़ा केवल तन से साथ दिखाई दे रहे हैं। मालूम हो, मेढ़ा विस चुनाव 2018 में भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत की हार का कारण बने थे। वे करीब 39 हजार वोट ले गए थे।
भोपाल-जबलपुर में फायदा
भोपाल में पूर्व विधायक जीतेंद्र डागा को दिग्विजय सिंह ने पार्टी में प्रवेश कराया है। डागा का भोपाल ग्रामीण और कोलार वाली हुजूर विधानसभा सीट पर प्रभाव है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के सांसद प्रतिनिधि और विधायक के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के टैंकर और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर लोगों के बीच जगह बनाई है। बैरागढ़ को छोड़कर कोलार, ग्रामीण क्षेत्र में वे 23 हजार से ज्यादा की लीड लेकर विधायक बने थे। जबलपुर सीट के लिए मतदान हो चुका है लेकिन वहां भाजपा से आए धीरज पटेरिया की वजह से पार्टी के प्रत्याशी विवेक तन्खा को दमोह नाका व आसपास के करीब एक दर्जन वार्डों में फायदे की संभावना है। धीरज पटेरिया की वजह से भाजपा के तत्कालीन मंत्री शरद जैन को कांग्रेस के विनय सक्सेना ने विधानसभा चुनाव में हराया था। पटेरिया ने विस चुनाव में 29 हजार 479 वोट लिए थे जबकि जैन करीब साढ़े दस हजार वोट से हार गए थे।
कांग्रेस में प्रवेश की प्रतिस्पर्धा
ग्वालियर और भिंड सीटों पर असर रखने वाले दलबदलुओं की संख्या उल्लेखनीय है। यहां सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच प्रतिस्पर्धा जैसी स्थिति बनी। दिग्विजय बसपा से साहब सिंह गुर्जर को लाए जिनके कारण कांग्रेस को विस चुनाव में नुकसान हुआ था और पार्टी प्रत्याशी मदन कुशवाह हार गए थे। इसके बदले सिंधिया लंबे समय से पार्टी में आने को आतुर चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को पार्टी में लाए। फिर दिग्विजय बहुजन संघर्ष दल के नेता फूलसिंह बरैया व बसपा के पूर्व विधायक लाखन सिंह बघेल को तो सिंधिया नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर रामनिवास गुर्जर को पार्टी में ले आए।
इन नेताओं का ग्वालियर और भिंड लोकसभा सीटों पर प्रभाव है जिसमें साहब सिंह गुर्जर व रामनिवास गुर्जर ग्वालियर के कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह के लिए मददगार साबित हो रहे हैं। साहब सिंह का ग्वालियर ग्रामीण में अच्छा असर पर है और वे विस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे। ग्वालियर में 35 हजार गुर्जर वोट हैं और साहब सिंह व रामनिवास इन गुर्जर वोटों को कांग्रेस के पक्ष में करने में सक्षम बताए जा रहे हैं। फूल सिंह बरैया का भी भिंड में प्रभाव है मगर वे कभी खुद कोई चुनाव नहीं जीते हैं।
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