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किसी ने अर्थी को कंधा देकर तो किसी ने विदेश से आकर किया मतदान, आप कहां थे नेताजी?

Lok Sabha Election 2019 के दो चर्चित और बड़े नेता हैं जो अपने क्षेत्र में लोगों को मतदान करने के लिए कहते रहे और खुद वोट डालना जरूरी नहीं समझा।

By Amit SinghEdited By: Published: Mon, 20 May 2019 03:20 PM (IST)Updated: Tue, 21 May 2019 08:34 AM (IST)
किसी ने अर्थी को कंधा देकर तो किसी ने विदेश से आकर किया मतदान, आप कहां थे नेताजी?
किसी ने अर्थी को कंधा देकर तो किसी ने विदेश से आकर किया मतदान, आप कहां थे नेताजी?

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चुनाव, मतलब लोकतंत्र का महापर्व। ऐसा महापर्व जिसमें शीर्ष आम और खास सबकी आहुति न सिर्फ जरूरी है, बल्कि ये उसका कर्तव्य भी है। ऐसे में जब इस लोकतंत्र के बड़े सारथी ही अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लें तो जनता का भी इस प्रक्रिया से विश्वास उठना लाजमी है। यहां हम बात कर रहे बिहार प्रमुख राजनीति दल आरजेडी नेता व लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की।

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तेजस्वी यादव, बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और दिग्विजय सिंह 1993 से 2003 तक, 10 वर्ष मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और केंद्र की राजनीति में बड़ा चेहरा माने जाते हैं। 17वीं लोकसभा के लिए दिग्विजय सिंह, भोपाल से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। यहां उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से है। दिग्विजय सिंह शुरू से दावा करते रहे हैं कि वह अपनी सीट पर आसानी से जीत दर्ज करेंगे। इसके लिए उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान काफी मेहनत भी की।

बावजूद 12 मई को हुए छठे चरण के मतदान के दौरान उन्होंने मतदान नहीं किया। उन्हें वोट डालने के लिए राजगढ़ जाना था, लेकिन वह नहीं गए। पूछे जाने पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि वह वोट डालने नहीं जा सके, इसका उन्हें दुख है। साथ ही उन्होंने कहा कि अगली बार वह भोपाल में नाम दर्ज कराएंगे। उधर तेजस्वी यादव, अपनी पार्टी आरजे़डी के स्टार प्रचारक हैं और राज्य में नेता प्रतिपक्ष हैं। बताया जा रहा है कि चुनाव प्रचार के बाद वह पटना से बाहर चले गए थे। उन्हें सातवें चरण में पटना में मतदान करना था।

तेजस्वी की मां राबड़ी देवी, भाई तेज प्रताप और बहन मीसा भारती ने यहां अपना वोट दिया। दिन भर चर्चा रही कि तेजस्वी वोट डालने आ रहे हैं। उनके करीबियों ने ही पहले मीडिया को बताया कि वह सुबह नौ बजे परिवार के साथ मतदान करने जाएंगे, लेकिन वह अंतिम क्षण तक नहीं आए। इसके बाद बहाना बनाया गया कि उनके मतदाता पहचान पत्र में किसी और की तस्वीर लगी है। हालांकि, इसका पता चलते ही बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एचआर श्रीनिवासन ने साफ कर दिया था कि तेजस्वी अपना वोट डाल सकते हैं। साथ ही, उन्होंने तुरंत पहचान पत्र में गड़बड़ी की जांच के आदेश भी दे दिए।

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एक तरफ आपने दो बड़े नेताओं की लोकतंत्र पर आस्था देखी, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस महायज्ञ में आहुति देने के लिए सात समंदर पार का सफर तय किया। कोई अपनी फिल्म की शूटिंग छोड़कर मीलों दूर केवल वोट करने आया। क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी क्वालिफायर मैच से ठीक एक दिन पहले चार्टड प्लेन से रांची मतदान करने पहुंचे और फिर वापस जाकर मैच खेला। सेलिब्रिटी की बात छोड़ भी दें तो तमाम ऐसे लोग हैं, जो दूर-दराज के इलाकों से अपना काम-धंधा छोड़, नौकरी से छुट्टी लेकर और किराया-भाड़ा लगाकर वोट करने पहुंचे थे। कई जोड़ों ने शादी के फेरों से पहले मतदान किया। ऐसे एक-दो नहीं, सैकड़ों उदाहरण हैं।

ऑस्ट्रेलिया से आई वोट देने
राजस्थान के रायसिंह नगर के छोटे से गांव एनपी निवासी सज्जन कुमार बिश्नोई की पत्नी एकता बिश्नोई ने वार्ड नंबर दस में मतदान किया और सुर्खियों में छा गईं। सज्जन ऑस्ट्रेलिया में एक निर्माण कंपनी में काम करते हैं। एकता भी उन्हीं के साथ रहती हैं। उन्होंने बताया कि वह केवल मतदान करने के लिए ऑस्ट्रेलिया से भारत आई हैं। उनके इस जज्बे को पति ने भी पूरा समर्थन किया।

जवान बेटे की अंत्येष्ठि कर सीधे पहुंचे मतदान केंद्र
वाराणसी में अजगरा के खरदहां गांव निवासी शिव प्रकाश सिंह ने लोकतंत्र का माखौल उड़ाने वालों के लिए एक मिशाल पेश की है। रविवार को मणिकर्णिका घाट पर अपने इकलौते पुत्र वेद प्रकाश सिंह (24) की अंत्येष्ठि कर शाम साढ़े पांच बजे वह सीधे मतदान करने पहुंचे थे। उनका बेटा वेद प्रकाश बेंगलुरू में इंजीनियरिंग का छात्र था। बीमारी की वजह से दिल्ली के एक अस्पताल में 17 मई को उसकी मौत हुई थी। इसके बाद रविवार को शव वाराणसी स्थित उनके पैतृक निवास पहुंचा था। शिव प्रकाश सिंह की पत्नी की 15 साल पहले ही मौत हो चुकी है और अब इकलौता बेटा ही उनका आखिरी सहारा था।

वोट देने के लिए छोड़ी ऑस्ट्रेलिया की नौकरी
कर्नाटक के सुधींद्र हेब्बार, सिडनी एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग ऑफिसर हैं। वह वोट करने के लिए भारत आना चाहते थे, लेकिन उन्हें छुट्टी नहीं मिल रही थी। सुधींद्र ने मीडिया से बातचीत में बताया कि उन्हें 5 से 12 अप्रैल की छुट्टी मिली थी। उनकी छुट्टियां आगे नहीं बढ़ सकती थीं, क्योंकि आने वाले दिनों में ईस्टर और रमजान पर एयरपोर्ट पर काफी भीड़ होने वाली थी और उन्हें हर हाल में वोट देना था। लिहाजा उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

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