Lok Sabha Election 2019: गेहूं काटने के बाद क्या चुनावी फसल भी काट पाएंगी हेमा मालिनी
मथुरा से एक बार फिर अभिनेत्री हेमा मालिनी चुनावी मैदान में हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आज उत्तर प्रदेश की जिन आठ सीटों पर लोकसभा चुनाव के तहत वोटिंग हो रही है, उनमें सबसे दिलचस्प मुकाबला मथुरा का माना जा रहा है। यहां से बीते जमाने की ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। चुनाव को और रोचक बनाने के लिए बीते 14 अप्रैल को फिल्म स्टार धमेंद्र भी अपनी पत्नी के चुनाव प्रचार में कूद पड़े।
इस दौरान उन्होंने लोगों के सामने अपने निराले अंदाज में पुराने डायलॉग दोहराए। इसी तरह हेमा ने किसानों के खेत में जाकर किसी सामान्य ग्रामीण महिला की तरह गेहूं की बालियां कांटीं और आलू चुने। वैसे सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन के तहत अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी ने यहां से कुंवर नरेंद्र सिंह को उतारा है, जो ठाकुर समाज से आते हैं।
क्या है हेमा के पक्ष में ?
हेमा मालिनी के पक्ष में सबसे बड़ी चीज उनका स्टार स्टेटस है। उनका नाम हर जुबां पर है और उनकी पार्टी की पहुंच हर गांव तक। भाजपा के एजेंडे के अनुरूप उनकी निर्भरता भी विकास, मोदी मैजिक और जाट-लोध एवं गैर जाटव वोटों पर है। इस सीट पर गैर-जाटव दलितों का प्रतिशत पूरी दलित आबादी का 45 फीसद है। जबकि जाट वोटर्स की संख्या 21 प्रतिशत है। यहां लोधों की संख्या भी अच्छी है।
राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह अभी भी लोधों के बीच लोकप्रिय हैं और उसका असर भी हेमा के पक्ष में जा सकता है। इन सबके अलावा धमेंद्र के आने से हेमा मालिनी यह संदेश देने में भी सफल रही हैं कि वो किसी जाट की ही पत्नी हैं। वे बाहर से नहीं हैं और इस समाज से उनका भी सीधा जुड़ाव है। चूंकि आरएलडी ने यहां से ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है, ऐसे में जाट वोट इस बार भी हेमा के पक्ष में जा सकता है।
क्या है हेमा के खिलाफ?
ब्रज क्षेत्र की सभी आठ लोकसभा सीटों- आगरा, अलीगढ़, अल्मोड़ा, बुलंदशहर, फतेहपुर सिकरी, हाथरस, मथुरा और नगीना पर 2014 की मोदी लहर में भाजपा को जीत मिली थी, हालांकि इस बार परिदृश्य थोड़ा अलग है। वैसे इस बार भी मोदी के पक्ष में रुझान है, लेकिन जाति का समीकरण उतना साफ नहीं है। इस लोकसभा क्षेत्र में जाट मतदाताओं का प्रतिशत लगभग 21 है और वे समाज में दबदबा भी रखते हैं। हालांकि पिछली बार की तरह जाटों में भाजपा के प्रति साफ रुझान नहीं देखा जा रहा है। इन सबके अलावा, गन्ना कीमत को लेकर भी किसानों में नाराजगी है। गन्ना किसानों का पैसा काफी समय से बकाया है। इसके अलावा आलू की फसल के खराब होने और उसका उचित मूल्य नहीं मिलने से भी लोगों में नाराजगी है। हेमा ब्राहृमण हैं और ब्राहृमणों की आबादी यहां अच्छी है।
सोशल मीडिया पर हेमा का उड़ाया गया मजाक
हेमा मालिनी के चुनाव प्रचार का पिछले दिनों सोशल मीडिया पर काफी मजाक उड़ाया गया। हेमा ने खेतों में गेहूं काटा, कड़ी धूप में जाकर किसानों से बात की, किसानों के साथ आलू बिने और खेत में ट्रैक्टर चलाया। सोशल मीडिया के साथ विपक्ष ने उनके इन कामों की खिल्ली उड़ाई और उन्हें ड्रीम गर्ल के बदले ड्रामा गर्ल का टैग दिया। हेमा मालिनी के नाम से एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें वह कहती हैं कि यहां आने वाले यात्री बंदरों को फ्रूटी और समोसे देकर खराब कर दिया है. इसके बदले उनको सिर्फ फल दीजिए.
अयंगर ब्राहृमण हैं हेमा
हेमा मालिनी मूल रूप से तमिल अयंगर ब्राह्मण हैं और धर्मेंद्र फगवाड़ा से आने वाले पंजाबी जट। अच्छी बात यह है कि इस सीट पर जाटों के साथ ही ब्राहृमणों की संख्या भी ठीकठाक है। इस सीट पर लगभग 4.5 लाख जाट हैं।हालांकि यह 23 तारीख को मतगणना के दिन ही साफ हो पाएगा कि धमेंद्र के डायलॉग और हेमा के ये स्टंट कितने काम आए। गौरतलब है कि हेमा मालिनी 2003-2009 तक भाजपा के खाते से राज्यसभा की सदस्य रही हैं।