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Lok Sabha Election 2019: 1952 में एकसाथ हुए लोकसभा व विधानसभा चुनाव, दो रंग के थे कार्ड

Lok Sabha Election 2019. 82 वर्षीय गंगाधर दूबे ने दैनिक जागरण के साथ पहले चुनाव से लेकर अबतक का अपना अनुभव साझा किए।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 11:12 AM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 11:12 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: 1952 में एकसाथ हुए लोकसभा व विधानसभा चुनाव, दो रंग के थे कार्ड
Lok Sabha Election 2019: 1952 में एकसाथ हुए लोकसभा व विधानसभा चुनाव, दो रंग के थे कार्ड

हजारीबाग, [अरविंद राणा] । Lok Sabha Election 2019 - आजादी के बाद देश में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। हजारीबाग के सेवानिवृत्त डीवीसी कर्मी व आरएसएस के पूर्व विभाग संघचालक गंगाधर दुबे ने बताया कि पहला आम सभा चुनाव 1952 में हुआ। तब लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। उस समय बाक्स में चुनाव होता था, जिसमें पार्टी का नाम और सिंबल होता था। कार्ड दो तरह के होते थे, सांसद चुनाव के लिए लाल और विधायक के लिए हरा होता था। दोनों कार्ड को अपने पसंद के नेता के बाक्स में डालना होता था।

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1962 में कार्ड पर आने लगा उम्मीदवार का नाम
दुबे ने बताया कि 1962 में वोङ्क्षटग कार्ड में उम्मीदवार का भी नाम होने लगा। लेकिन पूर्व की गलती में सुधार नहीं हुआ। जिस कारण वास्तविक वोटर की पहचान नहीं हो पाती थी। मतदाता सूची थी, लेकिन पुर्जी पर काम चलता था। 1965 में फर्जी मतदान रोकने के लिए बदलाव करते हुए पहचान के लिए इंक का प्रयोग पहली बार किया गया, लेकिन गड़बड़ी जारी रही।

1970 में अपनी पसंद के उम्मीदवार पर लगने लगी मुहर
1970 के दशक में कार्ड पर बने उम्मीदवारों पर  सील मारकर बाक्स में डालना होता था। उस कार्ड पर पीठासीन अधिकारी का हस्ताक्षर भी बनता था। लेकिन इस कारण बूथ कब्जा होने का हमेशा खतरा रहता था और वास्तविक वोटर की पहचान नहीं हो पाती थी, इसके पीछे का कारण मतदाता का पहचान नहीं होना था।

1990 में बनना शुरू हुआ मतदाता पहचान पत्र
 1990 के दशक में मतदान प्रक्रिया और मतदाता की पहचान के दिशा में बहुत सुधार हुआ।  पहली बार मतदाता पहचान पत्र बनना शुरू हुआ, लेकिन यह मात्र पांच प्रतिशत तक हीं पहुंच पाया। इसमें सुधार करते हुए कार्ड पर वोटर का हस्ताक्षर लिया जाने लगा। यह सिस्टम बहुत दिन तक चलता रहा, यह भी बूथ कब्जा रोकने में नाकाम था, और वोंटिग नहीं रूक पाया। यहां तक भी धड़ल्ले से पूर्जा का उपयोग मतदान के लिए किया जाता रहा।

2004 में बदली मतदान की परिभाषा, लूट पर भी लगी रोक, ईवीएम ने बढ़ाया मान
दूबे ने बताया कि बूथ कब्जा जैसे घटनाओं और मतदान गिनती में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी को रोकने का काम इवीएम ने किया। 2004 में इवीएम आया और फिर इसके बाद लगातार इस दिशा में बदलाव हो रहा है। अब 17 वां लोकसभा चुनाव में हम वोट किसे करने वाले है यह भी देखने को मिलेगा।


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