जन के लिए नहीं जाग रहे नेता, आप जागिए! बज रहा जल संकट का अलार्म
जीटी बेल्ट के लोकसभा क्षेत्रों के जिलों में जल संकट बड़ा चुनावी मुद्दा रहता है। इसके बाद भी चुनाव खत्म होते ही सभी इसे भूल जाते हैं। अब खतरे की घंटी बज चुकी है। जनता को जागना होगा।
पानीपत, जेएनएन। गर्मी और चुनावी तपिश साथ-साथ बढ़ रही है। स्वच्छ और पूरा पानी बड़ा मुद्दा है। सरोवर सूखे हैं, जहां पानी से भरे हैं, वहां गंदगी है। पेयजल की बात करें तो जनसंख्या के हिसाब से ट्यूबवेल कम हैं। ऐसे में आपूर्ति तो हो रही है, लेकिन कम। दूसरी ओर, भूमिगत जल पहुंच से बाहर होता जा रहा है।
जीटी बेल्ट लोकसभा क्षेत्रों के जिलों में जीटी रोड और यमुना नदी के बीच के गांवों में स्थिति फिर भी कुछ ठीक हैं, लेकिन अन्य में स्थिति भयावह होती जा रही है। हर बार चुनाव में पानी मुद्दा तो बनता है, लेकिन सिर्फ वोट लेने तक। बाद में सरकार और जनप्रतिनिधि इसे बिसार देते हैं। पानीपत में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। यहां फैक्ट्रियों के पानी ने सब कुछ बिगाड़ दिया है। पानी पीने योग्य बचा है, ना नहाने योग्य। पेयजल की बात करें तो अभी तक किए गए प्रयास नाकाफी ही हैं। जागरण टीम ने ग्राउंड स्तर पर पड़ताल की। प्रस्तुत है विशेष रिपोर्ट -
धान के कटोरा पानी से खाली
करनाल, कैथल और कुरुक्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है। एक किलो चावल तैयार होने में 2000 लीटर पानी की खपत होती है। यही कारण है कि यहां पानी पाताल में जा रहा है। तेजी से गिरता भूजल स्तर भविष्य की चिंताओं की ओर इशारा कर रहा है। करनाल के पांचों खंड डार्क जोन में हैं। 20 से 25 मीटर गहराई पर पानी उपलब्ध है। हर साल 0.7 से एक मीटर तक भू-जल का स्तर गहरा रहा है। किसान खेती के लिए 90 प्रतिशत भू जल का प्रयोग करते हैं।
ट्यूबवेल भी ठप
जल संसाधन जनस्वास्थ्य विभाग के ट्यूबवेल हैं, लेकिन पिछले दो सालों में यह ट्यूबवेल घटते भूजल स्तर के कारण ठप हो गए हैं। पानीपत में में पांच साल में पेयजल सप्लाई 25 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) के हिसाब से बढ़कर 75 एमएलडी पहुंच गया। जनस्वास्थ्य विभाग शहर की आबादी 7.13 लाख को आधार मानकर हर रोज करीब 75 एमएलडी पानी सप्लाई कर रहा है। शहर में लगे 301 ट्यूबवेलों से सुबह व शाम चलाने के बाद इतनी सप्लाई दी जाती है।
स्वच्छ पानी की सप्लाई शुरू से ही बड़ा मुद्दा
विभागीय अधिकारियों के दावे को माने तो 135 एलपीसीडी पानी प्रत्येक व्यक्ति को दिया जाता है। स्वच्छ पानी की सप्लाई शुरू से ही बड़ा मुद्दा रही है। शहर की पेयजल समस्या के समाधान के लिए 2006 से प्रयास चल रहे हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसकी घोषणा की थी। शुरुआत में असंध रोड के नजदीक दोनों नहरों के बीच में प्रोजेक्ट लगाकर नहर का पानी ट्रीट कर शहर में सप्लाई करना था, लेकिन यहां पर जमीन नहीं मिल सकी। सरकार ने इसके बाद सौदापुर के पास प्रोजेक्ट लगाने का फैसला लिया। यहां पर भी इसकी संभावना नहीं बन सकी। जन स्वास्थ्य विभाग ने यमुना की तलहटी में कुएं बनाकर मोटरों की मदद से शहर में पानी सप्लाई करने का प्रोजेक्ट बनाया। इसकी लागत करीब 450 करोड़ रुपये तक पहुंच गई, लेकिन प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया है।
अंबाला में जलस्तर ऊपर, नहरों से सप्लाई
अंबाला के 408 गांव और ट्विन सिटी में करीब 12 लाख आबादी को 442 ट्यूबवेल से जलापूर्ति हो रही है। इनमें से शहर में 108 ट्यूबवेल चल रहे हैं। जलस्तर काफी ऊपर होने के कारण जल दिक्कत नहीं है। यमुनानगर जिले में हालांकि जलस्तर ऊपर है, लेकिन जनस्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली और संसाधनों के कारण लोगों के कंठ सूखे ही हैं। यहां सप्लाई के 185 नलकूप हैं। इनसे सिर्फ चार लाख 85 हजार आबादी को पानी मिलता है। पानी के लिए रात को भी जागना पड़ रहा है। लोग एक लाख रुपये खर्च कर सबमर्सिबल लगवा रहे हैं। जिले के छह सौ नलकूप (185 अर्बन में) चालू हैं। ग्रामीण एरिया में जोहड़ ओवरफ्लो हैं।
दावों से दूर हकीकत
कुरुक्षेत्र में जनस्वास्थ्य विभाग भले ही शहर में प्रति व्यक्ति दोगुना पानी सप्लाई करने का दावा करता है, लेकिन फिर भी जिले के अधिकतर लोग प्यासे हैं।छत पर रखी टंकी तक पानी पहुंचना तो दूर नल से ही नहंी निकल पाता। शाहबाद और लाडवा खंड को डार्क जोन में रखे गए हैं। गांधी नगर, श्याम कॉलोनी के सामने वाली कॉलोनी, कुटिया वाली गली, कल्याण नगर, विष्णु कॉलोनी, चक्रवर्ती मोहल्ला, महादेव मोहल्ला में पानी की किल्लत गर्मी के मौसम में सबसे ज्यादा रहती है। गांधी नगर में तो लोग हर वर्ष पेयजल की सप्लाई के लिए प्रदर्शन भी करते रहे हैं।
नहीं ध्यान दे रहे जन प्रतिनिधि और अधिकारी
कैथल में शहरवासी पानी के लिए कभी अधिकारियों तो कभी स्थानीय नेताओं के दरवाजे खटखटाते हैं, लेकिन उनकी दिक्कतों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। शहर में 23 हजार के करीब पेयजल के कनेक्शन हैं। प्रति व्यक्ति 155 लीटर पानी मुहैया करवाया जा रहा है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से रोजाना करीब 13.50 मिलियन लीटर पानी की सप्लाई दी जा रही है। करीब 32 ट्यूबवेल शहर में पेयजल की सप्लाई कर रहे हैं। ट्यूबवेल से रोजाना करीब दो लाख 90 हजार लीटर पानी शहर में सप्लाई किया जा रहा है, लेकिन शहर की बढ़ती मांग को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है।
जींद का पानी शोरायुक्त
जींद शहर में 51 ट्यूबवेल के सहारे शहर की करीब डेढ़ लाख आबादी है। भूमिगत पानी में टीडीएस ज्यादा है और स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले दिनों लिए पानी का हर तीसरा सैंपल फेल आया था। नहरी पानी लाने के लिए सालों से बात हो रही है। सीएम मनोहर लाल ने पिछले साल 400 करोड़ से नहरी पानी की व्यवस्था करने की घोषणा की थी, लेकिन इसके लिए जन स्वास्थ्य विभाग जल घर बनाने को लेकर जमीन भी तलाश नहीं कर पाया है। जिले के अधिकतर गांवों में ट्यूबवले से ही सप्लाई होता है। जिन गांव के पास से नहर गुजरती है, वहां भी जलघरों तक नहरी पानी नहीं पहुंच पाता।
300 मीटर से निकाला जा रहा पानी
भूमिगत जल लगातार गिर रहा है। पानीपत में यह 300 मीटर से निकाला जा रहा है। कुरुक्षेत्र में 150 मीटर पर पीने योग्य पानी मिल रहा हैं।
ये भी जानें
- हर साल 0.7 से एक मीटर तक गिर रहा भू-जल का स्तर
- पानीपत में 7.13 लाख जनसंख्या को आधार मान होती है सप्लाई, लेकिन नाकाफी
- अंबाला में 442 ट्यूबवेल से हो रही 12 लाख की आबादी को जलापूर्ति
- यमुनानगर में 600 नलकूप फिर भी कंठ सूखे
- जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग का प्रति व्यक्ति को प्रतिदिन 135 और ग्रामीण में 50-70 लीटर पानी मुहैया कराने का दावा
- कैथल में 32 ट्यूबवेलों से 23 हजार कनेक्शनों को सप्लाई की जा रही।
- जींद में 151 ट्यूबवेलों से डेढ़ लाख आबादी को दिया जा रहा पानी।
- कुरुक्षेत्र में 840 ट्यूबवेलों से हो रही सप्लाई। इनमें शहर में 200 हैं।