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LokSabha Election 2019: पहले था धनबाद की संसदीय राजनीति में दबदबा, अब हाशिए पर मजदूर नेता

धनबाद में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड में ही 45 हजार के करीब नियमित श्रमिक हैं। हालांकि कंपनी का काम 75 फीसद आउटसोर्सिंग के जरिए होता है।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 05:58 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 05:58 PM (IST)
LokSabha Election 2019: पहले था धनबाद की संसदीय राजनीति में दबदबा, अब हाशिए पर मजदूर नेता
LokSabha Election 2019: पहले था धनबाद की संसदीय राजनीति में दबदबा, अब हाशिए पर मजदूर नेता

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v style="text-align: justify;">धनबाद, जेएनएन। देश की कोयला राजधानी के नाम से विख्यात धनबाद शुरू से ही श्रमिक  बहुल इलाका रहा है। इसका असर यहां के चुनाव परिणामों पर भी पड़ता रहा है। तकरीबन सभी चुनावों में श्रमिकों के मुद्दे छाए रहते हैं। यही वजह है कि शुरू से ही यहां की राजनीति पर श्रमिक नेता हावी रहे हैं। चुनावी परिणाम भी यही बताते हैं कि यहां ट्रेड यूनियन से जुड़े नेताओं ने सर्वाधिक सफलता अर्जित की है। हालांकि बीच-बीच में उन्हें चुनौती भी मिलती रही है। पर यह भी एक हकीकत है कि कांग्रेस पार्टी में धनबाद लोकसभा सीट लंबे समय तक श्रमिक नेताओं के लिए ही चिह्नित रहा है।
श्रमिकों का दबदबा क्यों : दरअसल यहां कोल इंडिया की अनुषंगी इकाई भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) में ही 45 हजार के करीब नियमित श्रमिक हैं। हालांकि कंपनी का काम 75 फीसद आउटसोर्सिंग के जरिए होता है। आउटसोर्सिंग कंपनियों में भी यहां तकरीबन 40 हजार ठेका मजदूर कार्यरत हैं। इनके अलावा इतनी ही संख्या में अप्रत्यक्ष रूप से लोडिंग, ट्रांसपोर्टिंग से जुड़े कामों में श्रमिक लगे हुए हैं। टाटा स्टील, ईसीएल व सेल की खदानें, हार्डकोक उद्योग जैसे उद्योगों की वजह से भी यह इलाका श्रमिक बेल्ट माना जाता है। यहा स्थित भूली टाउनशिप को कभी एशिया के सबसे बड़े श्रमिक कॉलोनी का दर्जा प्राप्त था। इसमें 20 हजार श्रमिकों के क्वार्टर बने हुए हैं। ऐसे में वाजिब ही है कि यहां की चुनावी राजनीति में भी श्रमिक नेताओं का दबदबा हो।
श्रमिक नेता जो बने सांसद 
पीसी बोस : पहले लोकसभा चुनाव 1952 में भी यहां से चुने गए पीसी बोस ट्रेड यूनियन लीडर थे। वे एटक के नेता थे। उन्हें इंडियन माइन वर्कर्स फेडरेशन व इंडियन माइनर्स एसोसिएशन का अध्यक्ष बनाया गया था। इस नाते उन्होंने जेनेवा सम्मेलन में भी भाग लिया था। 
रामनारायण शर्मा : वर्ष 1971 से 77 तक सांसद रहे रामनारायण शर्मा इंडियन ट्रेड यूनियन कांग्रेस व उससे जुड़े राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के भी नेता रहे हैं।
एके राय : वर्ष 1977, 1980 व 1989 में तीन बार धनबाद संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करनेवाले माक्र्सवादी समन्वय समिति के अरुण कुमार राय (एके राय) तो सीटू से संबद्ध बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के संस्थापक ही रहे हैं। 
चंद्रशेखर दुबे : वर्ष 2004 में धनबाद से सांसद चुने गए चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे भी इंटक व राष्ट््रीय कोलियरी मजदूर संघ के नेता रहे हैं। बताया तो यह जाता है कि धनबाद संसदीय सीट कांग्रेस में इंटक नेताओं के लिए ही आरक्षित रहा है। इसी कोटे से दुबे को भी धनबाद का टिकट मिला था।
रीता वर्मा की जीत से बदल गई धारणाः 1991 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी प्रो. रीता वर्मा की जीत से यह अवधारणा बदल गई। अपने पति रणधीर प्रसाद वर्मा की शहादत की सहानुभूति लहर पर सवार प्रो. वर्मा ने 1991 के चुनाव में एके राय जैसे दिग्गज कम्यूनिस्ट नेता को हराया। उन्होंने लगातार चार लोकसभा चुनावों में यह सफलता दोहराई। इस दौरान उन्होंने एके राय के साथ ही समरेश सिंह जैसे दिग्गज श्रमिक नेता को भी धूल चटाई। हालांकि 2004 के चुनाव में उनकी हार भी मजदूर नेता की छवि वाले चंद्रशेखर दुबे से ही हुई पर उनकी लगातार सफलता ने साबित कर दिया कि यहां जीत के लिए ट्रेड यूनियनिस्ट होना जरूरी नहीं।1991 और 2014 के बीच अपवाद स्वरूप 2004 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दे तो मजदूर नेता हारते रहे हैं। पीएन सिंह 2009 और 2014 में चुनाव जीतकर लगातार दो बार से सांसद हैं। वह मजदूर नेता नहीं हैं। अब कह सकते हैं कि धनबाद की राजनीति में मजदूर नेता हाशिए पर हैं। 

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