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फ्लैश बैक : ये हैं सात बार के विधायक, लेकिन फिर अचानक क्यों छोड़ दी राजनीति

भगवती सिंह विशारद पैदल और साइकिल पर चलकर समाजसेवा में तत्पर रहे।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 05:59 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 05:59 PM (IST)
फ्लैश बैक : ये हैं सात बार के विधायक, लेकिन फिर अचानक क्यों छोड़ दी राजनीति
फ्लैश बैक : ये हैं सात बार के विधायक, लेकिन फिर अचानक क्यों छोड़ दी राजनीति

कानपुर,[राजीव सक्सेना]। आज की राजनीति में छोटा सा पद पाने के बाद नेता बड़ी सी गाड़ी लेकर घूमने लगते हैं। कोई बड़ा पद मिल जाए तो एक-दो वर्ष में किराए के मकान से निकल कर ऐसा बंगला बनवा लेते हैं कि लोगों की आंखें फटी रह जाएं। यदि कोई कई बार विधायक बना है तो अनजान लोग उसके ठाठ-बाट का अंदाजा लगाने लगते हैं लेकिन भगवती सिंह विशारद सात बार विधायक रहे फिर अचानक राजनीति ही छोड़ दी। हां, तमाम राजनेता आगे बढ़े लेकिन राजनीतिक संस्कारों में कोई उतना आगे नहीं बढ़ सका, जितना विशारद जी।

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किराये के मकान में रहते हैं विशारद जी

'दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया... कबीरदास जी की इन पंक्तियों को किसी ने अपने राजनीतिक जीवन में जिया है तो वे हैं भगवती सिंह विशारद। कानपुर के धनकुïट्टी मोहल्ले में रहने वाले 98 वर्षीय विशारद जी उन्नाव की भगवंत नगर विधानसभा क्षेत्र से सात बार विधायक रहे लेकिन, आज भी वह किराए के मकान में परिवार के साथ रहते हैं। जीवन भर पैदल व साइकिल पर घूम कर समाजसेवा करने वाले विशारद जी के जीवन में कभी कार नहीं रही। सादगी की मिसाल विशारद जी उस क्षेत्र में रहते हैं जहां से तमाम राजनेता आगे बढ़े।

स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भाग लिया

23 सितंबर 1921 को उन्नाव के झगरपुर गांव में जन्मे भगवती सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्र्राम आंदोलन में भाग लिया। वह बताते हैं कि बच्चों, युवाओं की प्रभात फेरी निकालते थे। बाहर के नेताओं को बुलाकर मीटिंग कराते थे। भगवती सिंह ने बीकॉम किया, साथ में  हिंदी साहित्य में विशारद किया। यही उपाधि उनके नाम के साथ जुड़ गई।

कपड़ा दुकान के कर्मचारी से विधायक तक

पढ़ाई के बाद विशारद जी जनरलगंज में कपड़े की दुकान में काम करने लगे। धीरे-धीरे बाजार के कर्मचारियों की राजनीति करने लगे। विशारद जी बताते हैं कि वह कपड़ा कर्मचारी मंडल और बाजार कर्मचारी मंडल के प्रतिनिधि थे। यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। 1957 में वह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से भगवंत नगर सीट से चुनाव लड़े और जीते। धीरे-धीरे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी खत्म हुई तो वह कांग्रेस में शामिल हो गए।

थैले में लेटर पैड और मुहर

विशारद जी की पौत्रवधू सुनीता के मुताबिक जब तक वह विधायक रहे उनके हाथ में एक थैला जरूर रहता था। इसमें उनका लेटर पैड और मुहर होती थी। किसी ने भी कोई समस्या बताई तो उसे वहीं खुद लिखकर मुहर लगाकर विभाग में देने चल देते थे।

राजनीति में सुधार जरूर आएगा

1991 के चुनाव में जीतने के बाद भी राजनीति में आ रही गिरावट को देखते हुए भगवती सिंह विशारद ने उसके बाद चुनाव लडने से खुद इन्कार कर दिया लेकिन, उनका मानना है कि राजनीति में सुधार जरूर आएगा। आपने राजनीति शुरू की तो कैसा माहौल था सवाल के जवाब में कहा उस समय की राजनीति दूसरों की सेवा की थी। लोग अपने बारे में नहीं सोचते थे।

समाजसेवा के सवाल पर बोले उस दौर की बात ही कुछ और थी। लोगों के घरों में जाकर मिलते थे। वे जो काम बताते थे, उसे नोट कर कराते थे। अब वैसा नहीं है। इतना बताते हुए वह पुरानी यादों में खो जाते हैं। 1991 के बाद चुनाव न लडऩे के फैसले पर पछतावा भी नहीं है कहते हैं राजनीतिक माहौल खराब होने की वजह से आगे चुनाव लडऩा छोड़ दिया। मौजूदा माहौल का जिक्र करते हुए कहते हैं कि राजनीति में सुधार जरूर आएगा। तब फिर लोग एक-दूसरे की सेवा करेंगे।

80 वर्ष से इसी मकान में

भगवती जी के पिता लक्ष्मण सिंह ने वर्ष 1939 में धनकुïट्टी में किराए पर मकान लिया था। भगवती जी के पांच पुत्र, एक पुत्री हुई। आज धनकुïट्टी में उनके साथ बड़े बेटे रघुवीर की पत्नी कमला, उनके पौत्र अनुराग, पौत्रवधू सुनीता, परपौत्र अभिषेक और तीसरे नंबर के पुत्र नरेश सिंह, उनकी पत्नी चंदा रहते हैं।


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