Lok Sabha elections 2019: इन 10 कारणों से 2014 के मुकाबले अलग है इस बार का UP चुनाव
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान है ऐसे में हम आपको वे 10 कारण बता रहे हैं जिनके कारण उत्तर प्रदेश की चुनावी तस्वीर इस बार काफी अलग है।
By Atyagi.jimmcEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 12:13 PM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 12:31 PM (IST)
लखनऊ, [जागरण स्पेशल]। इस बात को लेकर शायद ही किसी को कोई शक हो कि केंद्र की सत्ता का मुख्य स्रोत इस बार भी 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश ही रहने वाला है। हालांकि, चुनावी राजनीति के लिहाज से इस सबसे अहम राज्य की स्थिति इस बार 2014 के चुनावों से काफी जुदा है। आज लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान है, ऐसे में हम आपको वे 10 कारण बता रहे हैं, जिनके कारण राज्य की चुनावी तस्वीर इस बार काफी अलग है-
- 2014 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर सांप्रदायिक हिंसा का असर था। 2013 के सितंबर में मुजफ्फरनगर हिंसा हुई थी। इस हिंसा के बाद खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सामाजिक ताना-बाना काफी हद तक बदल गया था। कुछ समय के लिए समाज दो हिस्सों में बंट गया था। एक तरफ जहां मुस्लिम थे, वहीं दूसरी तरफ जाट, जाटव, गुर्जर समेत अन्य लोग आ गए थे। इसका असर चुनाव परिणामों पर भी साफ दिखा था।
- 2014 में राज्य की सभी प्रमुख पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही थीं। लेकिन, इस बार मुकाबला तीन राजनीतिक ताकतों- भाजपा, सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन और कांग्रेस में है। इसमें भी मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन के बीच ही है।
- 2014 में यूपी समेत हिंदी भाषी राज्यों में नरेंद्र मोदी के पक्ष में जबर्दस्त उत्साह था। इस साल बेशक उस तरह का माहौल नहीं है, लेकिन मोदी के खिलाफ साफ विकल्प के अभाव में चीजें कुछ हद तक मोदी के पक्ष में ही दिख रही हैं।
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी नेता चौधरी अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी ने एक बार फिर अपने परंपरागत वोट बैंक जाट और मुस्लिमों को एक मंच पर लाने की पुरजोर कोशिश की है। जबकि, पिछली बार दोनों में छत्तीस का आंकड़ा था। इसके लिए इन नेताओं ने सद्भावना यात्राएं भी निकालीं। वैसे असर तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे, लेकिन स्थिति थोड़ी बदली जरूर नजर आ रही है।
- 2014 में अखिलेश यादव की सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी थी। अखिलेश के शासनकाल में कानून-व्यवस्था से लेकर शुरुआत सालों में विकास कार्यों की उपेक्षा से लोगों में गुस्सा था।
- अखिलेश यादव के शासनकाल के अंतिम महीनों में पिता मुलायम सिंह यादव के साथ उनके नित बदलते समीकरण से भी लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हुई। इस बार चाचा शिवपाल यादव ने अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
- केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार होने से इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत राज्य की कई लंबित परियोजनाओं को जहां गति मिली, वहीं कई नई विकास और कल्याणकारी परियोजनाएं भी शुरू हुईं। इससे भी चीजें थोड़ी बदली हुई लग रही हैं।
- 2014 में भाजपा के अधिकांश उम्मीदवार नए चेहरे थे, लेकिन इस बार वे पुराने पड़ चुके हैं और कुछ सांसदों के प्रति लोगों में नाराजगी भी है।
- किसानों का मुद्दा इस बार पहले से अधिक मुखर है, गन्ना किसानों की समस्या किसी भी सरकार के लिए चिंता का कारण हो सकती है।
- 2014 के उलट इस बार मुस्लिमों और दलितों ने एक तरह की रणनीतिक चुप्पी साध रखी है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से आठ पर मतदान हो रहा है।
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