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बिजनौर सीट का चुनावी गणित: इस बार भाजपा के लिए आसान नहीं होगी राह, विरोधी बनेंगे रोड़ा

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार जनता किस दल को अपना समर्थन देगी।

By NiteshEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 04:50 PM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 10:00 AM (IST)
बिजनौर सीट का चुनावी गणित: इस बार भाजपा के लिए आसान नहीं होगी राह, विरोधी बनेंगे रोड़ा
बिजनौर सीट का चुनावी गणित: इस बार भाजपा के लिए आसान नहीं होगी राह, विरोधी बनेंगे रोड़ा

नई दिल्ली (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश की वीआईपी सीट बिजनौर में इस समय चुनावी माहौल गरमाया हुआ है। भाजपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। ऐसे में क्षेत्र की जनता को लुभाने के लिए सभी दलों के नेता सक्रिय हो गए हैं। वर्तमान में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। इस बार बसपा, सपा और रालोद के गठबंधन से भाजपा के लिए जीत की राह आसान नहीं रहने वाली है। भाजपा ने वर्तमान सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह को फिर से उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए इंदिरा भार्टी को टिकट दिया है। वहीं, महागबंधन के तहत बसपा ने मलूक नागर को प्रत्याशी बनाया है। इसी तरह अन्य दल भी अपने उम्मी्दवारों की घोषणा कर रहे हैं। बता दें कि इस सीट से कांग्रेस की ओर से पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार, एलजेपी प्रमुख राम विलास पासवान चुनाव लड़ चुके हैं। इनके अलावा बसपा सुप्रीमो मायावती भी यहां से चुनाव लड़ चुकी हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार जनता किस दल को अपना समर्थन देगी। 17वीं लोकसभा के लिए यहां से कौन सांसद बनेगा ये तो तो वक्त ही बताएगा, लेकिन उससे पहले हम आपको बताते हैं इस लोकसभा सीट की कुछ खास बातें।

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तीन सीटों में बंटा था बिजनौर

पहली लोकसभा के गठन के लिए 1952 में हुए चुनाव के दौरान बिजनौर सीट का अस्तित्व नहीं था। यह क्षेत्र तीन अलग लोकसभा क्षेत्रों में बंटा था। पहला, देहरादून सह बिजनौर (उत्तर पश्चिम) सह सहारनपुर (पश्चिम) लोकसभा सीट, इस सीट से कांग्रेस के महावीर त्यागी जीते। उन्होंने अखिल भारतीय जनसंघ उम्मीदवार जे आर गोयल को 95669 वोटों के अंतर से हाराया। दूसरा, गढ़वाल (पश्चिम) सह टिहरी गढ़वाल सह बिजनौर (उत्तर) लोकसभा सीट, यहां से निर्दलीय उम्मीदवार महारानी साहिबा ने कांग्रेस उम्मीदवार कृष्णा सिंह को हराया। वहीं बिजनौर (दक्षिण) सीट से कांग्रेस की निमी सरन ने गोविंद सहाय को शिकस्त दी। निमी सरन को 75018 वोट मिले, जबकि गोविंद के हिस्से में केवल 43520 वोट आए।

निर्दलीय ने कांग्रेस को दिखाया आईना 

दूसरी लोकसभा के लिए 1957 में हुए चुनाव के दौरान स्वतंत्र बिजनौर लोकसभा सीट का गठन किया गया। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार अब्दुल लतीफ चुनाव मैदान में उतरे और भारी मतों से जीत दर्ज की। 1962 में निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश वीर शास्त्री ने बिजनौर सीट से जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। प्रकाश की यह जीत सभी के लिए चौंकाने वाली थी, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अब्दुल लतीफ को इस सीट से हराया था। लेकिन, 1967 में कांग्रेस ने अपनी हार का बदला लिया और फिर से वापसी की। इस बार कांग्रेस के टिकट पर एसआर नंद यहां से सांसद चुने गए। इसके बाद 1971 में भी कांग्रेस ने इस सीट से जीत हासिल की और स्वामी रामानंद शास्त्री सांसद चुने गए।

भारतीय लोकदल ने रोका कांग्रेस की जीत का रथ

1977 में इस सीट से कांग्रेस का कब्जा खत्म हुआ और भारतीय लोक दल ने जीत दर्ज की। बीएलडी उम्मीदवार महीलाल ने कांग्रेस उम्मीदवार राम दयाल को 195814 वोटों के अंतर से हराया। वहीं 1980 में जनता पार्टी (एस) उम्मीदवार मंगल राम ने 145514 वोट पाकर जीत हासिल की। इस चुनाव में बीएलडी छोड़ जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले महीलाल को करारी हार का सामना करना पड़ा। 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर पलटी मारी और ये सीट कब्जा ली। कांग्रेस ने गिरधारी लाल को चुनाव लड़ाया, उन्होंने लोकदल उम्मीदवार मंगल राम प्रेमी को 99813 वोटों के अंतर से हराया। 1985 में इस सीट पर उपचुनाव हुए जिसमें पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार यहां से भारी मतों से चुनाव जीतीं। उनके खिलाफ रामविलास पासवान और मायावती मैदान में थे।

मायावती ने विरोधियों को चटाई धूल

1989 के चुनाव में बसपा ने इस सीट पर जनाधार बढ़ाया और सभी दलों को धूल चटा दी। बसपा प्रत्याशी मायावती ने 183189 वोट पाकर जीत दर्ज की। जनता दल उम्मीदवार मंगल राम प्रेमी 174310 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद 1991 में यहां बीजेपी ने राज किया। बीजेपी में शामिल हुए मंगल राम प्रेमी को पार्टी ने टिकट देकर बिजनौर सीट से चुनाव लड़वाया, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की और मायावती को करारी शिकस्त दी। मंगल राम ने मायावती को भारी वोटों के अंतर से हराया था। बीजेपी उम्मीदवार के खाते में 247465 वोट गए, वहीं मायावती को केवल 159731 वोट मिले। 1996 में भी मंगल राम प्रेमी सांसद चुने गए। 1998 में मंगराम तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन वह जीत नहीं सके। सपा उम्मीदवार ओमवती देवी ने मंगल को लगभग 9212 वोटों के अंतर से हराया।

शीशराम ने बीजेपी को जीत दिलाई

1999 में भाजपा ने शीशराम सिंह रवि को टिकट दिया। शीश राम ने बीजेपी की झोली में जीत डाली और सांसद बने। 2004 में हुए चुनाव में आरएलडी उम्मीदवार मुंशीराम सिंह यहां से सांसद बने। मुंशीराम ने भाजपा नेता शीशराम को शिकस्त दी। 2009 में आरएलडी उम्मीदवार संजय सिंह चौहान संसद चुने गए। हालांकि, 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां फिर से कब्जा किया। कुंवर भारतेंद्र सिंह ने बीजेपी को यहां से जीत दिलाई। इस समय कुंवर ही यहां से सांसद हैं।

बिजनौर की खासियतें

बिजनौर उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर और 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में से एक है। ऐतिहासिक दृष्टी से भी बिजनौर का बहुत महत्व है। नूर बिजनौरी जैसे विश्वप्रसिद्ध शायर यहां की मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर बिजनौर के निवासी थे। मॉडर्न एरा पब्लिक स्कूल, ए.एन.इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल, गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, राजा ज्वाला प्रसाद आर्य इंटर कॉलेज और सेंट मेरी कॉन्वेंट यहां के प्रमुख स्कूल हैं। इनके अलावा वर्धमान कॉलेज और आर.बी.डी. स्नातकोत्तर कन्या विद्यालय, एक इंजीनियरिंग कॉलेज वीरा इंजीनियरिंग कॉलेज, एक फ़ारमेसी कॉलेज विवेक कॉलेज ऑफ़ टेकनिकल एजुकेशन यहां के प्रमुख कॉलेज हैं। कण्व आश्रम, पारसनाथ का किला, मयूर ध्वज दुर्ग, हनुमान धाम यहां के प्रमुख दार्शनिक स्थल हैं।


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