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Lok Sabha Election: फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं ये प्रत्‍याशी, जानें क्‍या है कमजोरी और मजबूती

आगरा मथुरा लोकसभा सीट के लिए प्रत्‍याशियों के नाम भले ही जातिगत समीकरणों को ध्‍यान में रखते हुए घोषित हुए हैं लेकिन डगर हर पार्टी के प्रत्‍याशी के लिए मुश्किल है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 06:07 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 06:07 PM (IST)
Lok Sabha Election: फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं ये प्रत्‍याशी, जानें क्‍या है कमजोरी और मजबूती
Lok Sabha Election: फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं ये प्रत्‍याशी, जानें क्‍या है कमजोरी और मजबूती

आगरा, जेएनएन। लोकतंत्र के महापर्व की रणभेरी बज चुकी है। एक एक कर दल अपने प्रत्‍याशी चुनावी रण में उतारने की घोषणा कर रहे हैं। अभी तक ब्रज मंडल में घोषित हुए चुनावी योद्धा अपनी अपनी मजबूती की ताल भले ही ठोंक रहे हों लेकिन उनकी डगर इतनी आसान नहीं है। हां बेशक इनमें से कई गुमनामी से कामयाबी के फलक पर चमके भी खूब हैं। अब तक घोषित हुए प्रत्‍याशियों के प्रोफाइल पर एक नजर।  

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सियासत का 'वीर' बनने को 'राज' की पहली पारी

जाटलैंड फतेहपुर सीकरी का चुनाव इस बार किसी भी दल के लिए आसान नहीं हैं। हाथी ने नए महावत के रूप में जिन राजवीर सिंह पर दांव खेला है, उनकी ये पहली चुनावी पारी है। सीकरी की सियासी पिच पर अच्छी बैटिंग करने की तमन्ना दिल में उतरे राजवीर दिल्ली के बड़े कारोबारी हैं। दिल्ली में मार्बल्स का कारोबार करने वाले राजवीर 1996 से बसपा से कार्यकर्ता के रूप में जुड़े हैं। माना जा रहा है कि बसपा प्रमुख मायावती के परिवार के सदस्यों के वह नजदीकी हैं, जिसके चलते उन्हें सीकरी के अखाड़े में सियासी पहलवानों से दो-दो हाथ करने को उतारा गया है। इससे पहले राजवीर ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा। सियासी पिच पर वह पहली बार बैटिंग करने उतरे हैं। बसपा के कैडर वोट में उन्हें जाट बिरादरी से भी मोर्चा संभालना है। जिस दिन राजवीर के नाम का ऐलान हुआ था, बसपा खेमे में भी हलचल मच गई। राजवीर को खुद जिले के बसपा नेता नहीं जानते थे। अब गांवों मेें सभाएं कर जनमत जुटाने की कवायद की जा रही है।

मजबूती

-बसपा का कैडर वोट बैंक पूरा मिलने की उम्मीद।

-सपा-बसपा व रालोद गठबंधन।

-पिछली बार बिखरे तीनों दलों के मतदाताओं के इस बार एकजुट रहने की उम्मीद

कमजोरी

-बाहरी प्रत्याशी होने के कारण विरोध।

-खुद बसपा नेताओं का पूरी तरह साथ मिलने पर संशय।

-फिलहाल इलाके मेें नए होने के कारण जमीनी पकड़ कमजोर।

पहले विधानसभा अब लोकसभा में राजकुमार देंगे टक्कर

फतेहपुर सीकरी के रण में भाजपा ने इस बार मौजूदा सांसद चौधरी बाबूलाल का टिकट काटकर राजकुमार चाहर पर दांव लगाया है। संघ के रास्ते भाजपा में आए चाहर हिंदू जागरण मंच और बजरंग दल के जिला संयोजक रहे, भाजयुमो के जिलाध्यक्ष भी रहे। 2007 में भाजपा ने फतेहपुर सीकरी विधानसभा का प्रत्याशी बनाया, तो बसपा के सूरजपाल सिंह को कड़ी टक्कर दी। 2012 के चुनाव में भाजपा ने टिकट नहीं दिया, पार्टी छोड़ निर्दलीय मैदान में कूद पड़े। बसपा के सूरजपाल से महज छह हजार वोटों से हारे। 2013 में राजकुमार फिर भाजपा में वापस आए। इस बार फिर भाजपा ने फतेहपुर सीकरी के जाटलैंड पर फतेह को राजकुमार चाहर पर दांव खेला है।

मजबूती

-फतेहपुर सीकरी के चाहरवटी पर मजबूत पकड़।

-क्षेत्र के पांचों विधायक भाजपा के।

-पहले विधानसभा चुनाव लडऩे के कारण कार्यकर्ताओं से सीधे मुखातिब।

कमजोरी

-सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन की मजबूती।

-टिकट कटने से नाराज चौधरी बाबूलाल का विरोध।

रुपहले पर्दे की ड्रीमगर्ल को टक्‍कर देना मुश्किल

सिने तारिका हेमा मालिनी रुपहले पर्दे के साथ-साथ मथुरा के लोगों के दिलों में भी समाई हुई हैं। पहली बार वर्ष 2014 में जब उन्होंने यहां से चुनाव लड़ा तो लोगों ने पलकों पर उठाया। देश भर के सेलिब्रिटी में सबसे ज्यादा तीन लाख से भी ज्यादा वोट पाकर उन्होंने इतिहास रच दिया। पांच साल के कार्यकाल में वह आम जनता के लिए सर्वसुलभ नहीं रहीं, बावजूद मथुरा की जनता उनके द्वारा कराए गए विकास कार्य और बेदाग छवि के कायल हैं।

मजबूती

-ईमानदार और बेदाग छवि

-रेलवे जंक्शन, छावनी स्टेशन आदि विकास कार्य और सुविधाएं।

कमजोर पक्ष

-गठबंधन प्रत्याशी पर तीनों पार्टियों का परंपरागत वोट बैंक

-भाजपा संगठन में सतह पर उभरी गुटबाजी। 

अब ताजनगरी से भाग्य आजमा रहे मनोज

आगरा सुरक्षित लोकसभा सीट पर इस बार बसपा ने हाथी ने नए महावत के रूप में मनोज सोनी को चुनाव मैदान में उतारा है। मनोज करीब दस वर्षों से बसपा से जुड़े हैं। बसपा प्रमुख मायावती के भाई आनंद कुमार के करीबी माने जाने वाले मनोज उत्तराखंड के कुमायूं मंडल के 2009 से प्रभारी रहे। आगरा में रहकर पढ़ाई करने वाले मनोज सोनी की गिनती बड़े ठेकेदारों में होती है। 2014 में हाथरस से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके मनोज सोनी इस बार आगरा से सपा- बसपा और रालोद गठबंधन के लिए भाग्य आजमा रहे हैं। आगरा में ये उनकी पहली सियासी पारी है। हालांकि उनके प्रत्याशी बनने का विरोध शुरू से ही हो रहा है।

ऐेसे में बीता लोकसभा का चुनाव लड़ चुके कुंवरचंद्र ने बकायदा होर्डिंग लगाकर विरोध किया तो उन्हें पार्टी से निष्कासित किया गया। बीते दिनों मनोज सोनी का पुतला भी फूंका गया।

मजबूती

- सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के कारण संयुक्त वोट बैंक।

- बसपा का कैडर वोट मिलने का लाभ।

कमजोरी

- पार्टी के अंदर नेताओं का विरोध।

- सपा के वोटबैंक को अपने पाले में ट्रांसफर करने की चुनौती।

चौथी बार दिल्ली जाने को आगरा से मैदान में बघेल

सूबे के दुग्ध पशु व मत्स्य (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार) एसपी सिंह बघेल कभी दारोगा थे, लेकिन सपा संरक्षक मुलायम सिंह की सुरक्षा ड्यूटी में तैनाती के रास्ते वह सियासी डगर पर चल पड़े। एसपी सिंह ने पीएचडी की और फिर 1993 में आगरा कॉलेज में सैन्य विज्ञान के प्रोफेसर हो गए। मुलायम सिंह ने उन्हें 1998 में जलेसर लोकसभा से सपा का टिकट दिया। ये चुनाव यहां से जीते तो 2004 तक लगातार तीन बार जलेसर से सांसद रहे। 2009 में नए परिसीमन में जलेसर लोकसभा सीट खत्म हुई, तो वह बसपा कोटे से राज्यसभा सदस्य बन गए। तीन साल तक राज्यसभा सदस्य रहने के बाद वह 2013 में भगवा दल में शामिल हो गए। 2014 में फीरोजाबाद से भाजपा लोकसभा का चुनाव लड़े और सपा के अक्षय यादव से हार गए। 2017 में बघेल टूंडला सुरक्षित विधानसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े और जीत गए। उन्हें सूबे में मंत्री का दर्जा दिया गया। भाजपा ने उन्हें पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया।

मजबूती

- जलेसर से तीन बार सांसद रहने से इलाके में जमीनी पकड़ काफी मजबूत है।

- राज्यसभा सदस्य बनने पर भी यहां के लोगों से जुड़े रहे।

- पाल बघेल बिरादरी में मजबूत पकड़।

कमजोरी

- सांसद कठेरिया की टिकट कटने से नाराज समर्थक।

पहली बार मथुरा में चुनावी रण में उतरे हैं कुं. नरेंद्र सिंह

मथुरा लोकसभा चुनाव में खंभ ठोक रहे रालोद प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह के लघु भ्राता और उनके सांसद प्रतिनिधि भी रहे हैं। वे पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी पहचान दबंग और सुस्पष्ट नेता की है। वे पहले कांग्रेस में थे, लेकिन 2016 से रालोद में हैं। चौधरी चरण सिंह के समय में भी वे लोकदल में रह चुके हैं।

मजबूती

- स्थानीय प्रत्याशी

-गठबंधन के साथ ठाकुर मतदाताओं झुकाव

कमजोरी

- भाजपा से हेमा के रूप में सामने विश्व फेम की सेलीब्रिटी

- तीन बार विस चुनाव लड़े पर कभी विजय नहीं मिली।

यह इतिहास

1978 में वृंदावन सहकारी बैंक के चेयरमैन बने।

1982 से 1994 तक मथुरा ब्लॉक के प्रमुख रहे।

1991 में मथुरा विधानसभा से चुनाव लड़ा।

2002 में छाता विधानसभा से चुनाव लड़ा।

2017 में गोवर्धन विधानसभा से चुनाव लड़ा।

जाटलैंड पर निशाना साधने की कोशिश हैं राजकुमार चाहर


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