Lok Sabha Election 2019: समझिए खूंटी लोकसभा का गणित और ग्रामसभाओं को
Lok Sabha Election 2019. खूंटी को तय करना है कडिय़ा मुंडा का उत्तराधिकारी फिलहाल धीमी चल रही चुनावी बयार जमीनी मुद्दे होंगे प्रभावी जल जंगल जमीन का मसला हावी।
Lok Sabha Election 2019 - खूंटी...झारखंड में मुंडाओं का गढ़। नाम जेहन में उभरते ही भगवान की तरह पूजे जाने वाले बिरसा मुंडा का अक्स सामने आता है। छरहरी काया, उसपर टंगा तीर-धनुष, जिसके बूते उन्होंने अंग्रेजों की बंदूकों का मुकाबला किया। उन्हीं के बरक्स यहां अरसे से लोगों के मन में एक और मुंडा की छवि बसी है...वे हैं कडिय़ा मुंडा। राजनीति की काली कोठरी के कडिय़ा को कभी कालिख नहीं लगी। इस बार का चुनाव यहां उनके बगैर होगा...लेकिन प्रत्याशी में लोग उनकी ही छवि ढूंढ रहे हैं जो उतना ही सुलभ और सरल हो।
खूंटी से प्रदीप सिंह। Lok Sabha Election 2019 - यह सोचकर ही मन रोमांचित हो उठता है कि हम उस स्थान पर खड़े हैं जहां कभी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के चरण पड़े होंगे। पहाड़ की चोटी पर बसा उलिहातू इसी वजह से झारखंड के लिए तीर्थस्थल के समान है। खूंटी से लगभग 27 किलोमीटर दूर, लेकिन सफर बहुत आसान। चिकनी-सपाट सड़क खूंटी से सीधे उलिहातू होते हुए आगे तमाड़ और बुंडू की तरफ निकल जाती है। जंगल में टहटह लाल टेसू के खिले फूल और महुआ की मादक खुशबू। यहां सियासी बयार बहने लगी है, पर फिलहाल इसकी रफ्तार बहुत धीमी है। अलबत्ता गांव तक यह सूचना पहुंच गई है कि इस बार खूंटी के पर्याय कडिय़ा मुंडा नही होंगे चुनाव में।
उलिहातू चौक पर मतदाता जागरूकता अभियान के पोस्टर चिपकाए गए हैं जिसे निहारते हुए कुछ युवक यही चर्चा कर रहे हैं। अनजान चेहरों को देख वे ठिठकते हैं लेकिन मुंडारी में बातचीत की शुरूआत होते ही वे तुरंत सहज हो जाते हैं। समीर पूर्ति इस समूह में सबसे च्यादा पढ़े लिखे हैं मैट्रिक तक। पूछते हैं-कब वोटिंग होगा और जवाब सुनने के पहले ही कहते हैं, अरे अभी बहुत समय है। कडिय़ा मुंडा इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनकी जगह पर अर्जुन मुंडा आए हैं। हमलोग देखेंगे क्या करना है। अभी कुछ सोचा नहीं है गांव का लोग। इस बीच मथुरा मुंडा टोकता है-और भी लोग तो चुनाव लड़ेगा। कालीचरण मुंडा का भी नाम सामने आ रहे है, सभे लड़ रहा है तो जिसको गांव का लोग तय करेगा उसी को हमलोग चुनेंगे। अभी से का बताया जाए जी...।
पत्थलगड़ी पर मौन
चौक पर राहेल पूर्ति गुलगुल्ले का दुकान लगाए बैठी हैं। उम्र तकरीबन 70 होगी, अकेली हैं। दो बेटियों की शादी कर दी। पूछा कि वोट देती हैं तो हामी भरी। कब किसे वोट दिया था, यह नहीं बता पाईं। कहा, ग्रामसभा में तय होता है कि किसको वोट देना है। दुकान पर मौजूद युवक भी उनकी हां में हां भरता है। उसके मुताबिक ग्राम सभा की अनुमति के बगैर यहां पत्ता नहीं हिलता। मतदान के पहले ग्राम सभा की बैठक होती है। इस बार भी बैठक होगी, उसी में जो तय होगा उसी के मुताबिक वोट देना है।
खूंटी के ग्राम सभाओं की महत्ता इनकी बातों में मजबूती से झलकी और कुछ माह पहले का वह वाकया भी जेहन में उभरा जब बगैर अनुमति के गांव में आए जिले के उपायुक्त और पुलिस कप्तान को लोगों ने बंधक बना लिया गया था। हालांकि उस अभियान में राट्रविरोधी तत्वों की ज्यादा मौजूदगी थी जिसके निशान अब नहीं दिखते। गांव की सीमा पर पत्थलगड़ी तो दिखती है लेकिन उसमें अब संविधान की मनमाफिक व्याख्या की बजाय मूल भावनाएं उकेरी गई हैं। उस बारे में लोग बातचीत से परहेज करते हैं।
चर्च का खासा प्रभाव
खूंटी में चर्च का खासा प्रभाव है। लोगों की आस्थाएं बदली है जो उनके घर की दीवारों पर टंगी तस्वीरें बयां करती है। बिरसा मुंडा का संघर्ष इनके खिलाफ भी था। सामुएल कहते हैं-नेताओं के आगे-पीछे जाने, वोट देने से क्या होगा? कुछ नहीं मिलता है लोगों को। सब आते हैं और बात करके चले जाते हैं। रोजगार मिला क्या हमें? खेत भी ले लिया लेकिन कुछ नहीं मिला। हमलोग दोनों तरफ से मारे जाते हैं। जमीन संबंधी कानून में नेता लोग क्यों संशोधन करना चाहता है? हमलोग इसे नहीं होने देंगे। हमारे जमीन पर सरकार की नजर है। ओडिशा में जमीन ले लिया आदिवासियों का, क्या मिला उन्हें? खेत भी गया और रोजगार भी छिन गया। वे भूख से मर रहे हैं।
पूछ रहे सवाल, हमारे लिए क्या किया
पास ही इमली के बड़े पेड़ पर चढ़े पांच-छह युवकों का समूह चुनावी चर्चा से अनजान है। बुलाने पर एक युवक सुमन पहले तो झिझकता है लेकिन बाद में वह भी इसी धारा में शामिल हो जाता है। कहता है-इमली तोड़कर सायको में बेचेंगे तो दो पैसा आएगा। गांव का ज्यादातर लोग जंगल में महुआ चुनने गया है। सुने हैं, अब सरकार तो इसपर भी रोक लगाने वाली है। समझ में नहीं आता है कि तब हम क्या करेंगे। हमारी जिंदगी तो हमारे खेत-खलिहान और गाय-बकरी हैं। हमलोग फैक्ट्री में काम करने लगेंगे तो इनको कौन देखेगा?
वोट किसको देना है, इस सवाल पर चुप्पी। काफी कुरदने पर कहते हैं-अर्जुन मुंडा भी तो मुख्यमंत्री थे, क्या किए हमलोग के लिए? सिर्फ लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं आकर। लेकिन वोट तो किसी न किसी मुंडा को ही देना है। हमलोग डिसाइड करेंगे ग्राम सभा की बैठक में। मंडे मुंडा के कंधे पर गुलेल लटक रही है। बोलते हैं-पारंपरिक हथियार है ये। जब मौका मिलता है, टारगेट पर निशाना लगाकर ठोक देते हैं। यह पूछने पर कि चुनाव में क्या करेंगे, कहते हैं- वोट सबलोग मिलकर देंगे। अभी तय करना बाकी है।
2014 का परिणाम
कडिय़ा मुंडा (भाजपा) - 269185 वोट
एनोस एक्का (झापा) - 176937 वोट