लोकसभा चुनाव: गिरिराज के खिलाफ कन्हैया ने ठाेकी ताल, महागठबंधन के लिए भी करेंगे प्रचार
लोकसभा चुनाव के लिए भाकपा ने बेगूसराय से कन्हैया के नाम की घोषणा कर दी है। वे वाम दलों के साझा उम्मीदवार होंगे। इसके साथ राज्य में तीसरे फ्रंट के लिए भी कोशिश शुरू हो गई है।
By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 02:01 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 09:57 AM (IST)
पटना [अमित आलोक]। बिहार में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से बेगूसराय में ताल ठोक रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी गिरिराज सिंह को भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (भाकपा) से कन्हैया कुमार चुनौती देंगे। कन्हैया ने स्पष्ट किया है कि वे नहीं चाहते कि भाजपा विरोणी मतों का बिखराव हो, इसलिए जहां-जहां वाम दलों के उम्मीदवार नहीं होंगे, वे महागठबंधन के लिए भी प्रचार करेंगे। इस बीच बिहार में राजग व महागठबंधन से अलग एक तीसरे फ्रंट के गठन की तैयारियां भी शुरू हैं। माना जा रहा है कि यह तीसरा फ्रंट बेगूसराय, उजियारपुर, झंझारपुर समेत कुछ अन्य स्थानों पर अपने उम्मीदवार दे सकता है।
कन्हैया के भाकपा से चुनाव लड़ने की घोषणा
भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने कहा है कि कन्हैया कुमार बेगूसराय से पार्टी के लोकसभा चुनाव प्रत्याशी होंगे। उन्हें मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (माकपा) व भाकपा (एमएल) का भी समर्थन मिलेगा। उन्होंने बताया कि कन्हैया के पक्ष में चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है। कन्हैया के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए जल्द ही पार्टी महासचिव सुधार रेड्डी तथा राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान आने वाले हैं।
कन्हैया बोले: भाजपा विरोणी मतों का बिखराव रोकना जरूरी
उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कन्हैया ने गिरिराज पर कड़ा हमला किया। उन्होंने गिरिराज को पाकिस्तान का वीजा मंत्री बताया। कहा कि बेगूसराय में कट्टरवारी गिरिराज सिंह को हराने के लिए लोगों ने कमर कस ली है। कन्हैया ने कहा कि भाजपा पूरे देश में नफरत फैला रही है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जीत जाती है तो आगे से देश में चुनाव ही नहीं होगा।
कन्हैया ने कहा कि देशहित में भाजपा विरोधी मतों का बिखराव नहीं होना चाहिए। इसके लिए भाजपा के खिलाफ गोलबंदी बहुत जरूरी है। ऐसे में जहां-जहां वाम दलों के उम्मीदवार नहीं होंगे, वे महागठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे।
कौन हैं कन्हैया, डालते हैं एक नजर
कन्हैया कुमार छात्र जीवन से ही भाकपा से जुड़े रहे हैं। वे भाकपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय छात्र परिषद (एआइएसएफ) के नेता रहे हैं। वे 2015 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुए थे। वे बिहार के बेगूसराय के मूल निवासी हैं।
फरवरी 2016 में जेएनयू में कश्मीरी अलगाववादी व भारतीय संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया, जिसमें कन्हैया भी आरोपित किए गए। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। बाद में दो मार्च 2016 को उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया। यह मुकादमा कोर्ट में लंबित है।
फिलहाल कन्हैया कुमार भाकपा नेता हैं। वे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा की नीतियों के खिलाफ चेहरा बनकर उभरे हैं। उन्होंने एक किताब (बिहार टू तिहाड़) भी लिखी है।
बने वाम दलों के साझा उम्मीदवार
कन्हैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रबल विरोधी के रूप में सामने आए हैं। विपक्ष ने कन्हैया में भाजपा व पीएम मोदी विरोधी चेहरा देखा, लेकिन वाम दलों के महागठबंधन में शामिल नहीं होने के कारण कन्हैया महागठबंधन के साझा उम्मीदवार नहीं बन सके। इसके बाद वाम दलों ने उन्हें अपना साझाा उम्मीदवार बनाया है। उनके खिलाफ भाजपा के फायरब्रांड नेता व केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह होंगे।
इस कारण नहीं मिला महागठबंधन का समर्थन
कन्हैया भाजपा विरोधी मतों का बिखराव रोकने के लिए महागठबंधन का प्रचार करने के लिए तैयार हैं, लेकिन यह भी सच है कि महागठबंधन में वाम दलों को तरजीह नहीं दी गई। इसके पीछे उनका कम जनाधार एक कारण हो सकता है। इस कारण कन्हैया महागठबंधन का साझा उम्मीदवार नहीं बन सके। कन्हैया को महागठबंधन का समर्थन नहीं मिलने के पीछे कुछ खास वजहें भी हैं।
माना जा रहा है कि राजद ने कन्हैया को इस वजह से तवज्जो नहीं दी कि कहीं तेजस्वी यादव के सामने कन्हैया की राष्ट्रीय छवि भारी न पड़ जाए। दूसरी वजह यह भी मानी जा रही है कि कन्हैया की छवि राजग ने 'देशद्रोही' की बनाई है। पुलवामा की घटना व भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश में बने राष्ट्रवादी माहौल के दौर में महागठबंधन कोई रिस्क लेना नहीं चाहता है।
गत लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की सीट पर भाजपा के भोला सिंह ने करीब 58 हज़ार वोटों के अंतर से राजद के तनवीर हसन को हराया था। उस चुनाव में भाकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह को करीब 1.92 लाख वोट ही मिले थे। महागठबंधन में कन्हैया को तवज्जो नहीं देने के पीछे भाकपा काे बेगूसराय में मिले कम वोट भी रहे होंगे।
बेगूसराय में दिलचस्प होगा मुकाबला
जाे भी हो, कन्हैया भाजपा व पीएम मोदी के खिलाफ बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। उनके साथ भाजपा विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना है। बेगूसराय की लड़ाई भाजपा बनाम महागठबंधन हो या फिर भाजपा बनाम कन्हैया, इतना तो तय है कि मुकाबला दिलचस्प होगा। अगर वाम दल तीसरे फ्रंट को बनाने में कामयाब हो गए तो परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं।
वाम दल एकजुट, तीसरे फ्रंट की कवायद शुरू
भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह के बयान पर गौर करें तो स्पष्ट है कि कन्हैया के पक्ष में वाम दल एकजुट हैं। माना जा रहा है कि वाम दल इसी एकजुटता के साथ कुछ अन्य सीटों पर भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनके साथ बीते दिन सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले देवेंद्र प्रसाद यादव का खेमा भी जुट जाए, इसकी पहल शुरू हो गई है। चर्चा है कि महागठबंधन में सीट बंटवारें में तरजीह नहीं देने से नाराज देंवेंद्र प्रसाद तथा वाम दल मिलकर बिहार में एक नया राजनीतिक फ्रंट बना सकते हैं। हालांकि, इसकी पुष्टि देवेंद्र प्रसाद यादव या वाम दलों के नेता नहीं कर रहे हैं।
कन्हैया के भाकपा से चुनाव लड़ने की घोषणा
भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने कहा है कि कन्हैया कुमार बेगूसराय से पार्टी के लोकसभा चुनाव प्रत्याशी होंगे। उन्हें मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (माकपा) व भाकपा (एमएल) का भी समर्थन मिलेगा। उन्होंने बताया कि कन्हैया के पक्ष में चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है। कन्हैया के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए जल्द ही पार्टी महासचिव सुधार रेड्डी तथा राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान आने वाले हैं।
कन्हैया बोले: भाजपा विरोणी मतों का बिखराव रोकना जरूरी
उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कन्हैया ने गिरिराज पर कड़ा हमला किया। उन्होंने गिरिराज को पाकिस्तान का वीजा मंत्री बताया। कहा कि बेगूसराय में कट्टरवारी गिरिराज सिंह को हराने के लिए लोगों ने कमर कस ली है। कन्हैया ने कहा कि भाजपा पूरे देश में नफरत फैला रही है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जीत जाती है तो आगे से देश में चुनाव ही नहीं होगा।
कन्हैया ने कहा कि देशहित में भाजपा विरोधी मतों का बिखराव नहीं होना चाहिए। इसके लिए भाजपा के खिलाफ गोलबंदी बहुत जरूरी है। ऐसे में जहां-जहां वाम दलों के उम्मीदवार नहीं होंगे, वे महागठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे।
कौन हैं कन्हैया, डालते हैं एक नजर
कन्हैया कुमार छात्र जीवन से ही भाकपा से जुड़े रहे हैं। वे भाकपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय छात्र परिषद (एआइएसएफ) के नेता रहे हैं। वे 2015 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुए थे। वे बिहार के बेगूसराय के मूल निवासी हैं।
फरवरी 2016 में जेएनयू में कश्मीरी अलगाववादी व भारतीय संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया, जिसमें कन्हैया भी आरोपित किए गए। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। बाद में दो मार्च 2016 को उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया। यह मुकादमा कोर्ट में लंबित है।
फिलहाल कन्हैया कुमार भाकपा नेता हैं। वे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा की नीतियों के खिलाफ चेहरा बनकर उभरे हैं। उन्होंने एक किताब (बिहार टू तिहाड़) भी लिखी है।
बने वाम दलों के साझा उम्मीदवार
कन्हैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रबल विरोधी के रूप में सामने आए हैं। विपक्ष ने कन्हैया में भाजपा व पीएम मोदी विरोधी चेहरा देखा, लेकिन वाम दलों के महागठबंधन में शामिल नहीं होने के कारण कन्हैया महागठबंधन के साझा उम्मीदवार नहीं बन सके। इसके बाद वाम दलों ने उन्हें अपना साझाा उम्मीदवार बनाया है। उनके खिलाफ भाजपा के फायरब्रांड नेता व केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह होंगे।
इस कारण नहीं मिला महागठबंधन का समर्थन
कन्हैया भाजपा विरोधी मतों का बिखराव रोकने के लिए महागठबंधन का प्रचार करने के लिए तैयार हैं, लेकिन यह भी सच है कि महागठबंधन में वाम दलों को तरजीह नहीं दी गई। इसके पीछे उनका कम जनाधार एक कारण हो सकता है। इस कारण कन्हैया महागठबंधन का साझा उम्मीदवार नहीं बन सके। कन्हैया को महागठबंधन का समर्थन नहीं मिलने के पीछे कुछ खास वजहें भी हैं।
माना जा रहा है कि राजद ने कन्हैया को इस वजह से तवज्जो नहीं दी कि कहीं तेजस्वी यादव के सामने कन्हैया की राष्ट्रीय छवि भारी न पड़ जाए। दूसरी वजह यह भी मानी जा रही है कि कन्हैया की छवि राजग ने 'देशद्रोही' की बनाई है। पुलवामा की घटना व भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश में बने राष्ट्रवादी माहौल के दौर में महागठबंधन कोई रिस्क लेना नहीं चाहता है।
गत लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की सीट पर भाजपा के भोला सिंह ने करीब 58 हज़ार वोटों के अंतर से राजद के तनवीर हसन को हराया था। उस चुनाव में भाकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह को करीब 1.92 लाख वोट ही मिले थे। महागठबंधन में कन्हैया को तवज्जो नहीं देने के पीछे भाकपा काे बेगूसराय में मिले कम वोट भी रहे होंगे।
बेगूसराय में दिलचस्प होगा मुकाबला
जाे भी हो, कन्हैया भाजपा व पीएम मोदी के खिलाफ बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। उनके साथ भाजपा विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना है। बेगूसराय की लड़ाई भाजपा बनाम महागठबंधन हो या फिर भाजपा बनाम कन्हैया, इतना तो तय है कि मुकाबला दिलचस्प होगा। अगर वाम दल तीसरे फ्रंट को बनाने में कामयाब हो गए तो परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं।
वाम दल एकजुट, तीसरे फ्रंट की कवायद शुरू
भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह के बयान पर गौर करें तो स्पष्ट है कि कन्हैया के पक्ष में वाम दल एकजुट हैं। माना जा रहा है कि वाम दल इसी एकजुटता के साथ कुछ अन्य सीटों पर भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनके साथ बीते दिन सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले देवेंद्र प्रसाद यादव का खेमा भी जुट जाए, इसकी पहल शुरू हो गई है। चर्चा है कि महागठबंधन में सीट बंटवारें में तरजीह नहीं देने से नाराज देंवेंद्र प्रसाद तथा वाम दल मिलकर बिहार में एक नया राजनीतिक फ्रंट बना सकते हैं। हालांकि, इसकी पुष्टि देवेंद्र प्रसाद यादव या वाम दलों के नेता नहीं कर रहे हैं।
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