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JNU छात्र राजनीति से बिहार की मुख्यधारा की सियासत में आने वाले अकेले शख्स नहीं हैं कन्हैया कुमार, ये नेता भी हैं शामिल

कन्हैया के अलावा भी कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा है।

By NiteshEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 02:10 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 04:09 PM (IST)
JNU छात्र राजनीति से बिहार की मुख्यधारा की सियासत में आने वाले अकेले शख्स नहीं हैं कन्हैया कुमार, ये नेता भी हैं शामिल
JNU छात्र राजनीति से बिहार की मुख्यधारा की सियासत में आने वाले अकेले शख्स नहीं हैं कन्हैया कुमार, ये नेता भी हैं शामिल

नई दिल्ली (पीटीआइ)। लोकसभा चुनाव 2019 में जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार बिहार के बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट से कन्हैया कुमार का मुकाबला भाजपा नेता गिरिराज सिंह और राजद के तनवीर हसन से है। कन्हैया सीपीआई के टिकट से चुनाव मैदान में हैं। कन्हैया जेएनयू छात्र संघ की राजनीति से मुख्यधारा की सियासत में आने वाले अकेले शख्स नहीं हैं। कन्हैया के अलावा भी कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा है।

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कन्हैया कुमार 2016 में राजद्रोह के आरोप लगने के बाद चर्चा में आए थे। कन्हैया के आलवा शकील अहमद खान भी भी छात्र राजनीति से मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में आए। शकील अहमद 1992-93 में जेएनयूएसयू के अध्यक्ष थे। फिलहाल वह कटिहार जिले के कड़वा से कांग्रेस के विधायक हैं। खान वामपंथी-संबद्ध छात्र महासंघ (एसएफआइ) के सदस्य के रूप में छात्र संघ चुनाव लड़ चुके हैं, इसके बाद विश्वविद्यालय की राजनीति छोड़ने के बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया।

खान ने कहा' राजनीति के प्रति मेरी दिलचस्पी जेएनयू में आने के बाद और बढ़ गई और अंत में यह मेरे जीवन के लिए मेरा करियर बन गया। हालांकि, कांग्रेस में शामिल होने का मेरा कदम अवसरवादी था, लेकिन यह लगभग दो दशक पहले हुआ था और तब देश का राजनीतिक माहौल अलग था।'

शकील अहमद ने कहा कि इतनी पुरानी पार्टी के साथ राजनीतिक करियर बनाना मेरे दिमाग में था, लेकिन सारी बाधाओं को पार करके भी मैं इस पार्टी में शामिल रहा। खान 1999 में कांग्रेस में शामिल हुए थे और 2015 में वे पहली बार कड़वा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए।

इसके अलावा इस कतार में जनता दल (यूनाइटेड) के एमएलसी, गया के शेरघाटी निवासी तनवीर अख्तर भी हैं, जो 1991-92 में जेएनयूएसयू अध्यक्ष थे, तब शकील अहमद वाईस प्रेसिडेंट हुआ करते थे।

अख्तर ने कांग्रेस से जुड़े राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के टिकट पर छात्र संघ चुनाव लड़ा। हालांकि, बाद में उन्होंने इसे छोड़ दिया लेकिन कांग्रेस के साथ बने रहे और उन्हें पार्टी के विधान परिषद का सदस्य बनाया गया। इसके अलावा वह बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के उपाध्यक्ष और बिहार युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह पिछले साल जदयू में शामिल हो गए।

उन्होंने कहा, 'मैंने अपनी पार्टी को कभी अवसरवादी कदम में नहीं बदला। कांग्रेस के लिए बहुत योगदान देने के बावजूद मुझे पार्टी के नेताओं की ओर से अपमानित किया गया था और इसलिए मैंने जदयू में शामिल होने का निर्णय लिया। मैं बहुत कम उम्र में ही एनएसयूआई से जुड़ गया, जिसका वजूद जेएनयू में लगभग ना के बराबर था।

इनके अलावा चन्द्रशेखर प्रसाद जिन्हें 1993 में छात्र संघ के उपाध्यक्ष के तौर पर चुना गया था, बाद में वह भी अपने गृहनगर सीवान लौट आए थे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काम किया, लेकिन मुख्यधारा की राजनीति में अपनी जगह नहीं बना सके, 1997 में उनकी हत्या कर दी गई।

बांका के पूर्व सांसद और बिहार के जमुई जिले के गिधौर के मूल निवासी दिग्विजय सिंह छात्रों के लिए डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (डीवाईएस) संगठन से 1982 में जेएनयूएसयू के महासचिव थे, 2010 में उनकी मृत्यु हो गई।


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