बेगूसराय से संसदीय राजनीति में कन्हैया की एंट्री, यहां दांव पर दोनों गठबंधनों की प्रतिष्ठा
बिहार के बेगूसराय में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया भाकपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। दूसरी ओर राजग से भाजपा के गिरिराज सिंह ताल ठोक रहे हैं। मुकाबला कड़ा है।
पटना [दीनानाथ साहनी]। बिहार का लेनिनग्राद कहा जाने वाले बेगूसराय संसदीय क्षेत्र इस बार सबसे 'हॉट सीट' बन गया है। यहां दोनों गठबंधनों (राजग और महागठबंधन) की कड़ी परीक्षा है। भाकपा ने चतुराई से जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को उम्मीदवार खड़ा करके मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
यहां कन्हैया की संसदीय राजनीति में एंट्री हुई है तो राजग की ओर से भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह मैदान में हैं। महागठबंधन की ओर से राजद ने माय समीकरण का चेहरा बनाकर तनवीर हसन को दोबारा उतारा है। 2014 में भाजपा के भोला सिंह यहां से विजयी रहे थे, लिहाजा भाजपा किसी हालत में यह सीट हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। उसने मैदान सजा दिया है।
वोटों का गणित
बेगूसराय में 17.78 लाख मतदाता हैं। पिछली बार तनवीर हसन को तकरीबन 58 हजार वोटों से मात मिली थी। तब भोला सिंह को 4,28,227 वोट मिले थे। भाकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह 1,92,639 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। इस इलाके भूमिहार मतदाताओं की तादाद सबसे अधिक करीब पांच लाख है। ढाई लाख मुसलमान, कुशवाहा और कुर्मी करीब दो लाख और यादव डेढ़ लाख के करीब हैं।
मुकाबला त्रिकोणीय
कन्हैया मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे। वे युवा हैं और तेजतर्रार। दूसरी तरफ गिरिराज सिंह 'फायर ब्रांड' नेता हैं। दोनों का ताल्लुक भूमिहार बिरादरी से। जाहिर है कि जातीय समीकरण को साधने के लिए सभी एड़ी-चोटी एक करेंगे। तीनों प्रत्याशियों के दल-गठबंधन की ओर से चुनावी समर की नित नई रणनीति बनाई जा रही है। राजद माय समीकरण को भुनाने में जुटा है।
आएंगे स्टार प्रचारक
राजग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान की चुनावी सभा कराने की रणनीति बनाई है। कन्हैया के पक्ष में वाम दल के प्रमुख नेता एस. सुधाकर रेड्डी, डी. राजा, सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, वृंदा करात, दीपंकर भट्टाचार्य, गीतकार जावेद अख्तर, अभिनेत्री शबाना आजमी के अलावा गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक प्रचार करने के लिए आने वाले हैं। तनवीर हसन के पक्ष में महागठबंधन के स्टार प्रचारकों की लंबी सूची है।
नई सदी का रुख
नई सदी में बेगूसराय से वामपंथ का कोई उम्मीदवार विजयी नहीं हुआ। इस हिसाब से कह सकते हैं कि बिहार के इस लेनिनग्राद में वामपंथ की धरती खिसक चुकी है। परिसीमन के बाद 2004 में यहां से राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह विजयी हुए। 2009 में जदयू के मोनजीर हसन ने जीत दर्ज की और 2014 में भाजपा के भोला सिंह ने। उसके पहले बेशक वामपंथ के विजय का इतिहास रहा है, लेकिन परिसीमन के बाद सीट का समीकरण बिगड़ गया।