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LokSabha Election 2019: शिबू-बाबूलाल एक-दूसरे के खिलाफ ठोकते थे ताल, अबकी मिलकर करेंगे भाजपा पर वार

दुमका संसदीय सीट अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। इस सीट पर चुनावी जीत की मुहर सर्वाधिक आठ बार झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नाम पर ही लगी है।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 02:05 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 02:05 PM (IST)
LokSabha Election 2019: शिबू-बाबूलाल एक-दूसरे के खिलाफ ठोकते थे ताल, अबकी मिलकर करेंगे भाजपा पर वार
LokSabha Election 2019: शिबू-बाबूलाल एक-दूसरे के खिलाफ ठोकते थे ताल, अबकी मिलकर करेंगे भाजपा पर वार

जामताड़ा, प्रमोद चौधरी। दुमका संसदीय सीट पर चुनावी महासंग्राम की तस्वीर साफ होने लगी है। इस महासमर के दो प्रमुख योद्धाओं के चेहरे तय हो चुके हैं। भाजपा ने पिछले दो चुनावों में हारे प्रत्याशी सुनील सोरेन पर फिर भरोसा जताया है। वहीं महागठबंधन की ओर से झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन नौवीं जीत के लिए फिर ताल ठोकेंगे। अपने इस गढ़ में जीत की बिसात बिछाने का सबसे ज्यादा अनुभव गुरुजी का ही रहा है, भले ही उनकी उम्र 79 वर्ष हो चुकी है। इस बार झामुमो को महागठबंधन का लाभ भी मिलना तय है। इस बार झामुमो को झाविमो का भी साथ मिल गया है। जबकि पूर्व में उन्हें गठबंधन में कांग्रेस व राजद का साथ मिला था।

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2014 में तीसरे नंबर पर थे बाबूलालः 2014 के लोकसभा चुनाव में झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को 1.58 लाख मत से तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। मरांडी का मिले मतों का कमोवेश फायदा गुरुजी को ही मिलने की उम्मीद में झामुमो है।

दो बार ही भाजपा को जीत नसीब हुई : दुमका संसदीय सीट अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। इस सीट पर चुनावी जीत की मुहर सर्वाधिक आठ बार झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नाम पर ही लगी है। कांग्रेस चार बार तो भाजपा ने दो बार इस सीट पर जीत का परचम लहराया है। बाबूलाल जब भाजपा में थे तो वे दोनों बार भगवा उम्मीदवार बन कर सदन तक पहुंचे थे। उसके बाद इस सीट पर न तो उन्हें और न भाजपा को ही जीत नसीब हो पाई।

भाजपा ने सुनील पर क्यों जताया भरोसा : भाजपा में जहां सी¨टग एमपी तक की टिकट कट जा रही है वहां शीर्ष नेतृत्व ने लगातर तीसरी बार सुनील सोरेन पर भरोसा किया। भाजपाई कहते हैं कि पार्टी के अंदर संताल परगना में सरना वर्ग में कद्दावर नेता की कमी है। एक महिला मंत्री उम्मीदवार बनने की रेस में सबसे आगे थी पर माना जाता है कि संघ को उनके नाम पर आपत्ति थी। सुनील सोरेन के पास चुनाव लड़ने का सबसे ज्यादा अनुभव है तो आदिवासी मोर्चा के प्रभारी होने की वजह से अपने समाज में भी उनकी अच्छी राजनीतिक पहचान पहले से ही है। सुनील की युवा वर्ग में विशेष पकड़ भी है। इसके पूर्व भाजपा ने सबसे ज्यादा चार बार बाबूलाल मरांडी को ही इस सीट से उम्मीदवार बनाया था। अब वे भाजपा की नजर में अतीत बन चुके हैं। इसलिए है झामुमो का अभेद्य गढ़ : 1957 में इस सीट पर झारखंड पार्टी की जीत हुई थी। इसके बाद कांग्रेस लगातार तीन बार यहां से जीती जिसे 1977 के चुनाव में बीएलडी से हार मिली। 1984 में कांग्रेस यहां से जीती लेकिन 1980 से ही यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा का असर देखा जाने लगा जब शिबू सोरेन पहली बार सासंद बने। इसके बाद 1989 से लेकर 1996 तक शिबू सोरेन का मजबूत किला कोई फतह नहीं कर सका। लगातार तीन बार वे जीते। वर्ष 1998 व 1999 के चुनाव में लगातार दोनों बार भाजपा से बाबूलाल मरांडी ने जीत दर्ज की और क्रमश: शिबू सोरेन व उनकी पत्नी रूपी सोरेन को शिकस्त दी। फिर वर्ष 2002 से वर्ष 2014 के चुनाव तक लगातार चार बार सोरेन ही जीत का सेहरा बांधे रहे हैं।

छह विस सीट में से तीन पर झामुमो का कब्जा : दुमका संसदीय सीट के अधीन छह विधानसभा सीट है। संसदीय सीट का विस्तार दुमका व जामताड़ा जिले तक है। पिछले विधानसभा चुनाव में छह में से तीन शिकारीपाड़ा, जामा व जामताड़ा के नाला विधानसभा सीट पर झामुमो का ही कब्जा रहा जबकि कांग्रेस के जिम्मे जरमुंडी व जामताड़ा सीट है। शेष एक दुमका विधानसभा सीट पर भाजपा की जीत हुई है। सीटों के मामले में झामुमो का ही फिलहाल दबदबा है। झामुमो मान कर चल रहा है कि बाबूलाल के गठबंधन में आने का सर्वाधिक फायदा उसे मिलेगा। जबकि भाजपा कहती है कि खुद के नाम से वोट लेना व उस वोट को दूसरे के नाम पर ट्रांसफर करना चुनावी महासमर में मुश्किल होता है। आगे जो चुनावी परिणाम हो।

वर्ष 1957 से इस लोस सीट का इतिहास

-वर्ष - जीते (मिले मत) - हारे (मिले मत)

-1957-देवी सोरेन (जेएचपी) (1,33,244) -लाल हेम्ब्रम (आइएनसी) (87,529)

-1962- सत्यचंद्र बेसरा (आइएनसी)(50,430)- देवी सोरेन (जेपी)(49,345)

-1967- एस बेसरा (आइएनसी) (60,108) - बी. मरांडी (सीपीआइ) (48,068)

-1971- सत्यचंद्र बेसरा (आइएनसी) (56,888)- शत्रुघन बेसरा (सीपीआई) (46,804)

-1977-बटेश्वर हेम्ब्रम (बीएलडी) (1,15,386) - पृथ्वी चंद्र किस्कू (आइएनसी) (62,132)

-1980-शिबू सोरेन (आइएनडी) (1,12,160)- पृथ्वी चंद्र किस्कू (आइएनसी) (1,08,647)

-1984 -पृथ्वी चंद्र किस्कू (आइएनसी) (1,99,722)- शिबू सोरेन (जेएमएम)(1,02,535)

-1989- शिबू सोरेन (जेएमएम) (2,47,502)- पृथ्वी चंद्र किस्कू (आइएनसी) (1,37,901)

-1991-शिबू सोरेन (जेएमएम) (2,60,169) - बाबूलाल मरांडी (भाजपा) (1,26,528)

-1996-शिबू सोरेन (जेएमएम) (1,65,411)- बाबूलाल मरांडी (भाजपा)(1,59,933)

-1998-बाबूलाल मरांडी (भाजपा) (2,77,334)- शिबू सोरेन (जेएमएम) (2,64,778)

-1999-(बाबूलाल मरांडी (भाजपा) (2,01,141)- रूपी सोरेन किस्कू (जेएमएम) (1,96,493)

-2002-शिबू सोरेन (जेएमएम) - (2,56,360)-रमेश हेम्ब्रम (भाजपा) (1,63,535)

-2004-शिबू सोरेन (जेएमएम) (3,39,542)- सोनेलाल हेम्ब्रम (भाजपा) (2,24,527)

-2009- शिबू सोरेन (जेएमएम) (2,08,518)- सुनील सोरेन (भाजपा)(1,89,706)

-2014- शिबू सोरेन (जेएमएम) (3,35,815)- सुनील सोरेन (भाजपा) (2,96,785)


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