Lok Sabha Election 2019: चुनावी वादों से जम्मू-कश्मीर का सिख समुदाय आहत, नहीं हुआ मुद्दों का समाधान
सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों ने प्रस्ताव पारित कर मांगों को उजागर किया। वादे काफी हुए लेकिन बाद में कुछ नहीं हुआ।
राज्य ब्यूरो, जम्मू : जम्मू कश्मीर में उपेक्षित महसूस कर रहा सिख समुदाय संसदीय चुनाव को लेकर उत्साहित नहीं है। इसका कारण डेढ़ दशक में जो भी सरकार आई, चाहे केंद्र की हो या राज्य की, सिख समुदाय के मुद्दों का समाधान नहीं हुआ। समुदाय मानता है कि उनकी मांगों पर कोई गंभीर नहीं रहा। सिर्फ वादे ही किए।
जम्मू संभाग की जम्मू- पुंछ संसदीय सीट ऐसी है जिसमें सिख समुदाय का वोटर दो लाख अस्सी हजार है। यह वोट विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में हैं। इस सीट में 20 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें आठ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिसमें सिखों की जनंसख्या अधिक है। इसमें जम्मू शहर का गांधी नगर विधानसभा क्षेत्र, विजयपुर, सांबा, सुचेतगढ़, आरएसपुरा, मढ़, नौशहरा और पुंछ शामिल है।
केंद्र में 2004 में पूर्व यूपीए वन, यूपीए टू, वर्ष 2014 में मौजूदा मोदी सरकार के अलावा वर्ष 2002 से राज्य में बनी पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन, नेकां-कांग्रेस गठबंधन, पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार रहीं लेकिन लंबे समय से अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा हासिल करने समेत अन्य मांगें पूरी नहीं हुई। चुनाव के समय सिख समुुदाय की प्रमुख मांगों को पूरा करने का वादा हर राजनीतिक पार्टी करती रही है। इतना ही नहीं समय-समय पर हर वर्ष श्री गुरु नानक देव जी और श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के प्रकाशोत्सव पर समारोहों में मुख्यमंत्री, विभिन्न पार्टियों के वरिष्ठ नेता शामिल होते रहे हैं।
सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों ने प्रस्ताव पारित कर मांगों को उजागर किया। वादे काफी हुए, लेकिन बाद में कुछ नहीं हुआ। भले ही समुदाय के वोट विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं। जब बात समुदाय की समस्याओं की होती है तो हर कोई अपने साथ बेइंसाफी की बात करता है। संसदीय चुनाव का बिगुल बज चुका है। पार्टियां एक बार फिर सामने आ रही हैं। इतना ही नहीं किसी राष्ट्रीय पार्टी ने किसी सिख को अपना उम्मीदवार भी नहीं बनाया है।
सरकारों ने सिखों को नजरंदाज किया
ऑल पार्टीज सिख कोआर्डिनेशन कमेटी के चेयरमैन जगमोहन सिंह रैना का कहना है कि पिछले एक दशक से अधिक समय से जो भी सरकारें आई है, उन्होंने समुदाय को नजरअंदाज ही किया है। बात सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के दर्जे की नहीं है, अन्य मामूली मांगे भी पूरी नहीं हुई है। संसदीय चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, समुदाय के साथ वादें करके वोट ले लिए जाते है, बाद में कुछ होता नहीं है।
बेइंसाफी को रोकने में सरकारें नाकाम रही
नेशनल सिख फ्रंट के चेयरमैन वीरेंद्र जीत सिंह का कहना है कि सिख समुदाय के साथ बेइंसाफी को रोकने में सरकारें नाकाम रही हैं। इस सीट से सिख समुदाय का वोट निर्याणक साबित हो सकता है। अगर भाजपा इस सीट से किसी भी सिख उम्मीदवार को जनादेश देती है तो वह अवश्य की जीत हासिल कर सकता है। अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने के अलावा भी कई मुद्दे है, जो वहीं के वहीं पड़े हुए है।
सिख समुदाय के मुद्दे
- - अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाए
- - जम्मू विवि में गुरु गोविंद सिंह के नाम पर चेयर स्थापित की जाए
- - कुंजवानी चौक में बाबा बंदा सिंह बहादुर की प्रतिमा स्थापित की जाए
- - स्कूलों में पंजाबी भाषा लागूू करके पंजाबी के अध्यापकों की नियुक्ति की जाए
- - छठी सिंह पोरा नरसंहार की जांच करवाई जाए
- - गुलाम कश्मीर के रिफ्यूजियों को पर्याप्त मुआवजा देकर पुनर्वास किया जाए
- -प्रोफेशनल व तकनीकी संस्थानों में सिख विद्यार्थियों के लिए सीटें आरक्षित की जाएं