Lok Sabha Election 2019 : आश्वासनों की घुट्टी से सींचे जा रहे सिंहभूम में खेत; BIG ISSUE
Lok Sabha Election 2019. सिंहभूम में जिस साल बारिश अच्छी हुई उस साल बढिय़ा उपज मिल जाती है और अगर इंद्र देव ने धोखा दे दिया तो खेत सूखे ही रह जाते हैं।
चाईबासा,सुधीर पांडेय। Lok Sabha Election 2019 सिंहभूम संसदीय क्षेत्र अंतर्गत करीब 15 लाख की आबादी वाले पश्चिमी सिंहभूम जिले का एक बड़ा हिस्सा खेती पर निर्भर है। इस इलाके में कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई उपाय कर रही है। हर साल एक बड़ा फंड कृषि के विकास व तकनीकी खेती पर खर्च किया जाता है। हर साल जिला कृषि विभाग, आत्मा, जिला भूमि संरक्षण विभाग, लघु सिंचाई विभाग, मेसा आदि सरकारी विभागों को किसानों की दशा सुधारने के लिए योजनाओं की स्वीकृति दी जाती है। इन विभागों के जरिए तालाब, कुआं और डोभा निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके बावजूद यहां के किसान तंगहाली में जीवन गुजार रहे हैं।
आलम यह है कि कई किसान तो खेती का विकल्प तलाश कर आय के दूसरे स्रोत अपना रहे हैं। इसका असर सीधे तौर पर अनाज के उत्पादन पर पड़ रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह इलाके में ङ्क्षसचाई की कोई स्थायी सुविधा नहीं होना है। ङ्क्षसचाई की सुविधा नहीं होने के कारण लक्ष्य के अनुसार धान की उपज नहीं हो पाती। खरीफ की जहां दो लाख 21 हजार हेक्टेयर में खेती होती है, वहीं रबी की खेती मात्र 50 हजार 830 हेक्टेयर में हो पा रही है। 1495 हेक्टेयर भूमि पर गरमा की खेती होती है।
बारिश की मेहरबानी पर खेती
एक लाख 70 हजार 225 हेक्टेयर भूमि करीब छह माह तक सूखी रह जाती है। सिंचित भूमि की बात करें तो जिले में केवल 14986 हेक्टेयर ही सिंचित हो पाता है। जिले में सिंचाई के मुख्य स्रोत तालाब, ढोबा और कुआं ही हैं। इन स्रोतों में पानी साल भर उपलब्ध नहीं रहता है। मात्र चक्रधरपुर क्षेत्र में नकटी डैम और पंसुवा डैम से खोतों में साल भर पानी मिलता है। सीधे तौर पर कहें तो जिले में किसान खेती के लिए बारिश पर ही निर्भर हैं।जिस साल बारिश अच्छी हुई, उस साल बढिय़ा उपज मिल जाती है और अगर इंद्र देव ने धोखा दे दिया तो खेत सूखे ही रह जाते हैं।
जनप्रतिनिधि रहते उदासीन
सिंहहभूम की यह सबसे बड़ी समस्या होने के बावजूद जनप्रतिनिधियों का इस दिशा में बहुत उत्साहित प्रयास नजर नहीं आता है। कृषि विभाग के अनुसार जिले में करीब 1 लाख 31 हजार किसान पंजीकृत हैं। पश्चिमी सिंहभूम जिला कृषि विभाग के सहायक कृषि पदाधिकारी संजय सिन्हा कहते हैं कि ङ्क्षसचाई की सुविधा नहीं होने के कारण हम लोग लक्ष्य के अनुसार फसल अच्छादित नहीं कर पाते। 2018-19 में रवि का 53800 हेक्टेयर लक्ष्य दिया गया था।मगर केवल 39035 हेक्टेयर ही अच्छादन हो पाया।
खेती छोड़ साइकिल का पंचर बना रहे किसान
सियालजोड़ा गांव के किसान रमेश कुमार महतो पांच एकड़ भूमि के मालिक हैं। मुख्य पेशा खेती था मगर अच्छी उपज नहीं होने के कारण परिवार आर्थिक संकट में आ गया। परिवार को बचाने के लिए रमेश ने खेती छोड़ साइकिल मिस्त्री का काम करना शुरू कर दिया है। पंचर साटकर हर दिन 200 से 300 रुपये मिल जाते हैं। इसी कमाई से रमेश अपना परिवार चला रहा है। रमेश कहता है कि मेरे पास खेत तो है मगर ङ्क्षसचाई साधन नहीं होने के कारण खेत की ङ्क्षसचाई नहीं कर पाता। बारिश का कोई भरोसा नहीं, कभी ज्यादा होती है तो कभी कम। इसका असर उपज पर पड़ रहा था। मजबूरी में दूसरा विकल्प तलाशना पड़ा। अगर खेत को पानी मिल जाए तो फिर से किसानी शुरू कर दूंगा।
जगन्नाथपुर में 35 साल से बंद लिफ्ट एरिगेशन सिस्टम
जगन्नाथपुर में वैतरणी नदी किनारे करीब 35 साल पहले लिफ्ट एरिगेशन सिस्टम बैठाया गया था। स्थापना के बाद से किसी तरह 2 साल का तक कच्छप गति से किसानों को ङ्क्षसचाई का लाभ मिला फिर यह बंद हो गया। इसको दोबारा चालू करने की कोई ठोस पहल नहीं की गई। धीरे-धीरे नदी किनारे लगी लिफ्ट एरिगेशन की मशीनें चोरी हो गईं और पाईप सड़ गए हैं। ङ्क्षसचाई भवन जर्जर हो गया है।
एक फसल को मजबूर हैं किसान
सिंहभूम की जगन्नाथपुर विधानसभा में पडऩे वाले महतो बहुल बरहमपुर, सियालजोड़ा, बनाइकेला, धरवाडीह, देवगांव, कादोकोडा, बाँसकटा, दलपोसी, जैंतगढ़, तुरली, पुटगांव ,बरला, कुवापडा, मुंडूई, खूंटियापदा आदि गांवों में लघु ङ्क्षसचाई केंद्र पिछले 35 साल से बंद पड़ा है। किसान हरङ्क्षबदो महतो का कहना है कि वैतरणी नदी में सालों भर पानी रहता है। यहां के किसान इस वैतरणी नदी के पानी से लाभ नहीं ले पा रहे हैं। अगर इस क्षेत्र के लोगों के लिए लिफ्ट एरिगेशन चालु कर दिया जाए तो खरीफ फसलों के साथ रवि कृषि फसल कर सालों भर किसान लाखों का आमदनी कर अपने परिवार का जीवन यापन कर सकते हैं।
नोवामुंडी में 15 साल से बेकार पड़ा पंप हाउस
किसान बताते हैं कि नोवामुंडी प्रखंड क्षेत्र के अधीन 2479.56 हेक्टेयर जमीन की ङ्क्षसचाई के लिए 15 साल पहले बीपीडीपी विभाग से पंप हाउस का निर्माण कराया गया था। पंप हाउस में लगा ट्रांसफार्मर कुछ साल पहले जल गया था। उसके बाद से पंप हाउस बेकार पड़ा है। किसान अब केवल मौसम के आधार पर धान फसल उपजाते हैं। कुङ्क्षटगता गांव के महाती कैरम ने बताया कि लगभग 15 साल पहले कुमिरता, दुधबिला, बोकना, परम बालजोडी, भनगांव, बड़ा बालजोडी,सिन्द्रीगौरी, कोटगढ़, बेतेरकिया, इटर बालजोडी आदि गांवों के किसान खेती करके खुशहाल जीवन जी रहे थे। कुङ्क्षटगता के चोएता पुरती, कृष्ण तिरिया, माटा कैरम, रोबेंटा के जांदोय पुरती, सुखराम पुरती, बंगाली पुरती, प्रधान पुरती नदी किनारे खेती करते थे। फिलहाल सभी किसान बेरोजगार हो चुके हैं। कुछ किसान नदी किनारे साग-सब्जी उपजा कर किसी तरह खेती की परंपरा को बचाए हुए हैं।
विशेषज्ञ की राय
पश्चिमी सिंहभूम में जमीन उपजाऊ है। जल संचयन की क्षमता भी अच्छी है। मौसमी तालाब भी पर्याप्त संख्या में हैं पर तालाबों में हर समय पानी उपलब्ध नहीं रहता। इस इलाके में सबसे जरूरी वर्षा जल का संचयन है। हर प्रखंड में सिलसिलेवार वर्षा जल संचयन की व्यवस्था करने की जरूरत है। यहां किसान छींटा करता है। जिला कृषि विभाग रोपनी के प्रति किसानों को प्रेरित कर रहा है। इसके अलावा ड्रिप एरीगेशन पर भी हम लोगों का जोर है। कुछ किसान दो फसल अब कर रहे हैं। ङ्क्षसचाई की मुकम्मल व्यवस्था हो गई तो निश्चित रूप से यह जिला कृषि के क्षेत्र में अग्रणी हो जाएगा।
-राजेंद्र किशोर, जिला कृषि पदाधिकारी, चाईबासा।
जिला कृषि विभाग का आंकड़ा एक नजर में
भौगोलिक क्षेत्र - 558307.62
वन क्षेत्र - 123981.04
गैर कृषि कार्य में लगायी गयी भूमि - 47054.78
कृषि योग्य बंजर भूमि - 37775.19
स्थायी चारागाह - 6730.46
विविध प्रकार के वृक्ष - 9066.44
बंजर एवं कृषि अयोग्य भूमि - 56171.13
परती भूमि - 47403.30
चालू परती - 9069.61
शुद्ध बोया गया क्षेत्र - 221055.67
कुल बोया गया क्षेत्र - 273380.67
एक से अधिकबार बोया गया क्षेत्र - 26.135
सिंचित क्षेत्र - 15000.00