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आतंकवाद के मसले पर भारत को मिल रही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी, पिछड़ रहा पाकिस्तान

पाकिस्तान की छद्मयुद्ध की नीति के खिलाफ भारत का यह नया और मजबूत रुख कारगर दिखाई दिया है। सामरिक मोर्चे के अलावा कूटनीति के तमाम मोर्चों पर यह रुख अभूतपूर्व रहा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 09:42 AM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 01:03 PM (IST)
आतंकवाद के मसले पर भारत को मिल रही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी, पिछड़ रहा पाकिस्तान
आतंकवाद के मसले पर भारत को मिल रही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी, पिछड़ रहा पाकिस्तान

अतुल पटैरिया, नई दिल्ली। पाकिस्तान, आतंकवाद और कश्मीर। इन तीनों ही मसलों को लेकर भारतीय जनता बेहद संवेदनशील है। मोदी सरकार ने जो रुख अपनाया है, वह जनता को एक विश्वास दिलाता है, उम्मीद जगाता है। उम्मीद इस बात की कि मोदी हैं तो मुमकिन है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि मोदी सरकार ने इन मोर्चों पर जो अप्रत्याशित रुख इख्तियार कर दिखाया, उसे देशभर से भरपूर समर्थन मिला। अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी अप्रत्याशित सफलता हासिल हुई।

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पाकिस्तान की छद्मयुद्ध की नीति के खिलाफ भारत का यह नया और मजबूत रुख कारगर दिखाई दिया है। सामरिक मोर्चे के अलावा कूटनीति के तमाम मोर्चों पर यह रुख अभूतपूर्व रहा। वहीं, कांग्रेस इससे असहज ही दिखी। सिद्धू के बयान से लेकर सुबूत मांगने तक, कांगे्रस केवल खीझती-जूझती नजर आई। अब उसने जो चुनावी घोषणापत्र जारी किया है, उसमें भी बैकफुट पर ही नजर आती है। एयर स्ट्राइक के बाद साफ हो गया कि जनता क्या चाहती है। सारे मुद्दे एक तरफ और यह मुद्दा एक तरफ। साफ है कि संवेदनशील मतदाता दोनों प्रमुख दलों की नीति और नीयत पर गंभीरता से विचार करेगा।

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जनता का रुख जगजाहिर है

यह अभूतपूर्व है कि भारत की पाकिस्तान नीति इस बार बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुकी है। जनता का रुख क्या है, वह जगजाहिर है। पाकिस्तान, आतंकवाद और कश्मीर पर मोदी सरकार की नीति को देश ही नहीं, दुनियाभर से अभूतपूर्व समर्थन मिला है। वहीं इसके जवाब में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है, जो स्पष्ट करता हो कि पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की इस नई और स्पष्ट नीति पर उसकी क्या सोच है। उसने रटी पिटी बात ही कही है कि आतंकवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया जाएगा। जबकि कश्मीर पर अपनी नीति के बारे में कहा है कि कश्मीर में सेना और सीएपीएफ की मौजूदगी कम की जाएगी, कश्मीर पुलिस को अधिक जिम्मेदारी दी जाएगी, जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम और अशांत क्षेत्र अधिनियम की समीक्षा की जाएगी, सुरक्षा-मानवाधिकार संरक्षण संतुलन के लिए नए कानूनी उपाय किए जाएंगे, समाधान के लिए सभी पक्षों से बातचीत की जाएगी...। भाजपा का घोषणापत्र आना शेष है, लेकिन यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर मोदी सरकार का मौजूदा रुख ही इसमें विस्तार पाता दिखेगा।

एक तीर से तीन शिकार

भारत-पाकिस्तान संबंधों को कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आंका जाता है। मोदी सरकार ने जो नई नीति तय की है, वह एक तीर से तीन शिकार वाली है। वह चाहे घर में घुसकर मारना हो, कश्मीर में अलगाववादियों और पत्थरबाजों पर नकेल कसना हो, अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को बेबस कर देना हो और अपनी इस नीति पर दुनिया का अभूतपूर्व समर्थन हासिल करना हो..., मोदी सरकार ने जहां इसे ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया, वहीं विपक्षी दल इससे असहज हो गए। यही नहीं, जनता के मूड ने भी उन्हें असहज कर दिया। इस बात का आभास करा दिया कि देश की जनता के लिए यह मुद्दा अहम हो चला है।

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फर्क सोच और एप्रोच का

अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर शोध से जुड़े देश के शीर्ष संस्थान विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के उपाध्यक्ष, पूर्व राष्ट्रीय उप सुरक्षा सलाहकार, संयळ्क्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थाई प्रतिनिधि और पाकिस्तान में भारत के पूर्व एंबेसडर सतीश चंद कहते हैं कि इस अहम राष्ट्रीय मसले पर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की सोच और एप्रोच में बड़े अंतर को आम नागरिक भी सहजता से समझ पा रहा है। पूर्व राजनयिक ने दैनिक जागरण से चर्चा में इस मुद्दे के तमाम पहलुओं पर विमर्श किया। मोदी सरकार की इस नई नीति और कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का विश्लेषण करते हुए सतीश कहते हैं, दोनों में बड़ा फर्क है। सबसे बड़ा फर्क तो यही कि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति जिस मुकाम पर जा पहुंची, कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में उस पर कोई रुख स्पष्ट नहीं किया। यहां तक कि किसी देश का नाम तक नहीं लिया।

पाकिस्तान के बारे में रटी रटाई बात कही कि आतंकवाद के मसले पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की नीति जारी रखी जाएगी। कांग्रेस ने यह नहीं कहा कि मोदी सरकार ने जो नीति अपनाई है क्या वह वैसा ही रुख जारी रखेगी? कश्मीर की बात करें तो मोदी सरकार ने वहां स्पष्ट नीति अपना ली है। अलगाववादियों और पत्थरबाजों को समझ में आ गया है कि देश में रहकर देशद्रोह को अब कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इधर, कांग्रेस ने कश्मीर मामले में तुष्टीकरण की पुरानी और लचर नीति को ही अपनाने का वादा किया है। सतीश कहते हैं, पाकिस्तान, आतंकवाद और कश्मीर को लेकर कांग्रेस के इस रुख में मुझे कोई दम नहीं दिखता है। पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने कहा था, 26-11 हमले के बाद हम पाकिस्तान के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठा सकते थे, क्योंकि तब हम इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे...।

तुष्टिकरण करती आई है कांग्रेस

भारत की पाकिस्तान नीति के विशेषज्ञ और खुद पाकिस्तान में राजदूत रह चुके इस पूर्व राजनयिक ने कहा, अब हमें इस अंतर को समझना होगा। मोदी सरकार ने साबित कर दिखाया कि भारत अब पूरी तरह तैयार है। उसने जो किया, पूरी तैयारी से किया, जिसे दुनिया देखती रह गई। कश्मीर की बात करें तो कांगे्रस ने अपने घोषणापत्र में यह नहीं बताया है कि वे अतिवादियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों से कैसे निपटेंगे। आप कह रहे हैं कि आप कश्मीर में सेना और सीएपीएफ की मौजूदगी कम कर देंगे। कश्मीर पुलिस को इनकी जिम्मेदारी सौंप देंगे। जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम और अशांत क्षेत्र अधिनियम की समीक्षा करेंगे। यह आतंकवाद को सीधे बढ़ावा देने वाला कदम साबित होगा। कश्मीर समस्या के समाधान के लिए सभी पक्षों से बातचीत करने का पुराना राग आप फिर आलाप रहे हैं।

लिहाजा, दोनों की सोच में अंतर है। यह सोच ही है, जो नीतियों को निर्धारित करती है। बड़ी बात यह कि आज जनता भी इन गंभीर मुद्दों पर बेहद जागरूक और संवेदनशील हो उठी है। जनता का यह समर्थन भी सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाने का काम करता है। कांग्रेस इसे अब भी नहीं भांप पाई है। आजादी के बाद से ही पाकिस्तान के प्रति हमारी नीति लचर रही है। उसने युद्ध थोपा, हमने जवाब दिया। फिर उसने छद्मयुद्ध का रास्ता अपना लिया और आतंकवाद के जरिये हमें अनगिनत घाव देता रहा। हम थे कि बातचीत पर ही भरोसा जताते रह गए। यही हमारी नीति बन गई, जिसमें जब-तब तुष्टिकरण किया जाता रहा। पाकिस्तान के साथ बातचीत करते रहने की भारत की चिर-परिचित नीति पूरी तरह नाकाम ही नहीं हुई बल्कि इससे पाकिस्तान को भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने का हौसला भी मिलता रहा। लिहाजा, देश को मोदी वाली नीति की सख्त दरकार थी। पाकिस्तान के साथ ताकत का प्रदर्शन करने का प्रधानमंत्री मोदी का तरीका अभूतपूर्व और उतना ही कारगर रहा है। कांग्रेस को इस नीति का समर्थन करना चाहिए था।

ऐसे ही सुधरेगा पाकिस्तान

पाकिस्तान को यही ट्रीटमेंट चाहिए, जो मोदी सरकार दे रही है। तभी वह सुधरेगा। भारत की विदेश नीति में यह बदलाव सराहनीय भी है और साहसिक भी। सराहनीय इसीलिए क्योंकि केवल इसी से हमें पाकिस्तान से आने वाले आतंकवाद से मुक्तिमिल सकती है। और साहसिक इसीलिए क्योंकि पाकिस्तान परमाणु शक्ति है और सैन्य क्षमता भी, बावजूद इसके हमने उसके पाले आतंकियों को घर में घुसकर मारा। एयर फोर्स ने एलओसी पार कर ऐसा किया। दो परमाणु संपन्न देशों के बीच यह संघर्ष एकतरफा साबित हुआ। सामरिक मोर्चे पर भी और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति केमोर्चे पर भी। भारत के इस दुस्साहसिक एलान को दुनिया देखती रह गई और कोई बीच में नहीं आया। उधर, इस्लामिक देशों के सहयोग संगठन के मंच पर भी भारतीय कूटनीति ने पाकिस्तान को पटखनी देकर चौंका दिया।

जबर्दस्त प्रदर्शन रहा

सतीश कहते हैं, मोदी सरकार जानती थी कि काम कितना बड़ा और जोखिम भरा है, इसीलिए देश की ताकत के हर पहलू, विशेषकर कूटनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य ताकतको सुनियोजित तरीके से एक समग्र रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया। यह प्रदर्शन जबर्दस्त रहा है। यही नहीं, कूटनीति के स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में बलूचिस्तान, गिलगिट और गुलाम कश्मीर की जनता का जिक्रकर पाकिस्तान की दुखती रग पर हाथ रख दिया था। इसका जबर्दस्त असर हो चुका है, जो पाकिस्तान के लिए मुश्किल भरा होगा। आर्थिक मोर्चे पर भी मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि पर अलग रुख इख्तियार किया और पाकिस्तान को एकतरफा तरीके से दिए गए सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र (एमएफएन) के दर्जे को छीन लिया। लिहाजा, भारत की पाकिस्तान नीति की दिशा जिस तरह से बदली है और आतंक का इस्तेमाल करने पर पाकिस्तान को सजा देने का जो तरीका अपनाया गया है, वह सराहनीय है। लेकिन यह नीति सफल तभी होगी, जब इस पर लंबे समय तक चला जाएगा। देश की जनता यही चाहती है। लेकिन कांग्रेस कळ्छ और चाहती है। लिहाजा, यदि आप कहते हैं कि भारत की पाकिस्तान नीति, आतंकवाद और कश्मीर पर रुख आम चळ्नावों का एक बड़ा मुद्दा हैं, तो यह सच है।

आगे का रोडमैप

सतीश ने कहा, भारत को अफगानिस्तान और ईरान के साथ समन्वय बढ़ाना चाहिए क्योंकि ये दोनों देश भी पाकिस्तान पोषित आतंकी कारखानों के शिकार हैं। हालांकि, ये कदम अपने आप में पर्याप्त नहीं होगा जब तक चीन हमारे खिलाफ आतंक के प्रचार में पाकिस्तान को ढाल बनाना जारी रखता है और जब तक सऊदी अरब और यूएई इसे आर्थिक सहायता प्रदान करते रहेंगे। इसलिए, हमें इन देशों की आर्थिक नीतियों का लाभ उठाते हुए इस दिशा में हमारी नीतियों को और पैना व कारगर बनाने की आवश्यकता है। हमें चीन मेंउइगर मुसलमानों के उत्पीड़न पर भी खुलकर बोलना चाहिए और इस्लामिक दुनिया में चीन के पिछलग्गू पाकिस्तान की छवि को धूमिल करना चाहिए। भारत को इस बारे में भी सोचना चाहिए कि क्यों न पाकिस्तान के साथ व्यापार में लगी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में व्यापार करने से रोक दिया जाए। वहीं, दूसरी ओर उन देशों की कंपनियों को बेहतर अवसर देने चाहिए, जो हमारे साथ खड़े हैं। मोदी सरकार इस दिशा में बढ़ रही है।

मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति जिस मुकाम पर जा पहुंची, कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में उस पर कोई रुख स्पष्ट नहीं किया। यहां तक कि किसी देश का नाम तक नहीं लिया। पाकिस्तान के बारे में रटी रटाई बात कही कि आतंकवाद के मसले पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की नीति जारी रखी जाएगी।

[सतीश चंद, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के उपाध्यक्ष, पूर्व राष्ट्रीय

उप सुरक्षा सलाहकार, संयळ्क्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थाई प्रतिनिधि और

पाकिस्तान में भारत के पूर्व एंबेसडर]

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