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पश्चिम बंगाल: अंतिम दौर के चुनाव में ममता बनर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच सीधी टक्कर

चुनाव का आखिरी दौर आते-आते बड़ी चुनावी लड़ाई तृणमूल की प्रमुख ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच होने लगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 17 May 2019 11:02 AM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 01:15 PM (IST)
पश्चिम बंगाल: अंतिम दौर के चुनाव में ममता बनर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच सीधी टक्कर
पश्चिम बंगाल: अंतिम दौर के चुनाव में ममता बनर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच सीधी टक्कर

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। जब 11 अप्रैल, 2019 को पहले चरण के मतदान के साथ लोकसभा चुनाव की शुरुआत हुई तो मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच दिख रहा था। चुनाव का आखिरी दौर आते-आते बड़ी चुनावी लड़ाई तृणमूल की प्रमुख ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच होने लगी। गढ़ बचाने की कोशिश में ममता बनर्जी और दुर्ग को धराशायी करने की उम्मीद में भाजपा ने अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

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भाजपा के इस चुनाव में बंगाल कितना जरूरी है यह इससे पता लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी और अमित शाह दोनों ने उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक बार बंगाल की यात्रा की है। दोनों ने बंगाल में कम से कम 15 चुनावी रैलियों को संबोधित किया। केंद्र की सत्ता में वापिस आने की भाजपा की उम्मीद काफी हद तक पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर टिकी हुई है।

नई नहीं है चुनार्वी हिंसा
2018 के पंचायत चुनावों में भीषण हिंसा की घटनाएं हुईं थी। भाजपा, कांग्रेस और वाम दलों ने टीएमसी के कार्यकर्ताओं पर हिंसा का आरोप लगाया। इस चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी की 34 फीसद सीटों पर निर्विरोध जीत हुई। वहीं भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।

भाजपा का उदय
पश्चिम बंगाल ने भाजपा को भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के रूप में अपना बौद्धिक स्नोत दिया है। आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार ने पश्चिम बंगाल में चिकित्सा का अध्ययन किया। आरएसएस ने 1950 से वहां कार्य करना शुरू किया। पहले आम चुनाव में जनसंघ वहां दो लोकसभा सीटें और नौ विधानसभा सीटें जीतने में सफल रही थी। लेकिन 1998 लोकसभा चुनाव में बीजेएस से बनी भाजपा बंगाल में केवल एक ही सीट जीत सकी। वाम दलों के प्रभाव के बावजूद तपन सिकदर 2004 तक दमदम लोकसभा सीट पर काबिज रहे।

भाजपा के लिए बड़ा अवसर
2014 के आम चुनाव में भाजपा इन 9 लोकसभा सीटों में से 2 पर दूसरे नंबर पर रही थी। दमदम सीट पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। बांग्लादेश सीमा से लगी बसीरहाट सीट पर अधिक मुस्लिम जनसंख्या, गोतस्करी और अवैध घुसपैठ के मुद्दे भाजपा को मदद कर सकते हैं।

अंतिम चरण की चुनौती
आखिरी चरण में 59 सीटों पर वोटिंग होनी है, जिनमें से 9 सीटें पश्चिम बंगाल से हैं। इन सीटों पर परंपरागत रूप से टीएमसी मजबूत रही है और इस बार उसे भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। टीएमसी ने 2014 में इन सभी सीटों पर विजय हासिल की थी। इनमें से भी जाधवपुर और दक्षिण कोलकाता सीट तो ममता बनर्जी का गढ़ मानी जाती हैं। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत यहीं से की थी। बनर्जी ने 1984 में जाधवपुर से सीपीएम के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को मात दी थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण कोलकाता लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना शुरू किया और वहां से लगातार 6 बार सांसद रहीं। डायमंड हार्बर सीट भी खासी चर्चा में है क्योंकि यहां से ममता बनर्जी के भतीजे चुनावी मैदान में हैं।

एक्ट ईस्ट नीति
पूर्वी राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और बिहार में अपने आधार का विस्तार करने के लिए 2017 में ओडिशा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा ने एक्ट ईस्ट नीति तैयार की । इन राज्यों में लोकसभा की 117 सीटें हैं। 2014 में केवल 47 सीटें भाजपा के पाले में आई थीं। 42 सीटों के साथ बंगाल से लोकसभा में तीसरे सर्वाधिक सांसद हैं। भाजपा के लिए यह राज्य महत्वपूर्ण है। टीएमसी ने पांच साल पहले इनमें से 34 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा केवल दो जीत सकी थी।

बनाई प्रभावी रणनीति
पिछले 15 वर्षों में, भाजपा ने बंगाल के उन क्षेत्रों में अपना आधार बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां हिंदीभाषी आबादी बढ़ रही है और सीमावर्ती जिलों में भी, जो बांग्लादेशी घुसपैठ से पीड़ित हैं। भाजपा के अभियान को सीएम ममता बनर्जी द्वारा मौलवियों को पेंशन देकर मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने जैसी योजनाओं से मदद मिली। दुर्गा पूजा और मुहर्रम और सरस्वती पूजा को लेकर विवादों ने भी भाजपा को बढ़त दिलाई है। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस और रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासियों के मुद्दे को उठाकर भाजपा ने वहां अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।

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