Lok Sabha Election 2019: ऊपरी शिमला में कांग्रेस का दबदबा, शहरी क्षेत्र में भाजपा का प्रभाव
Lok Sabha Election 2019 शिमला संसदीय हलके में केडी सुल्तानपुरी ने लगातार छह बार जीत दर्ज की है।
शिमला, नीरज आजाद। शिमला संसदीय हलके में कांग्रेस ही सुल्तान रही है। इस सीट पर लगातार छह बार केडी सुल्तानपुरी ने जीत दर्ज की है। सुल्तानपुरी के निधन के बाद हिविकां प्रत्याशी धनीराम शांडिल ने जीते। इसके बाद भाजपा के वीरेंद्र कश्यप लगातार दो बार जीते। इस बार दो पूर्व फौजियों में दिलचस्प जंग है। कांग्रेस ने सोलन के विधायक एवं पूर्व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल को जबकि भाजपा ने पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप को चुनावी जंग में उतारा है। शांडिल सोलन जिले से संबंधित हैं जबकि कश्यप सिरमौर से हैं। इन दोनों जिलों में पांच-पांच जबकि शिमला जिला की सात विधानसभा सीटें हैं। अगर दोनों प्रत्याशियों को अपने-अपने जिले में समर्थन मिलता है तो शिमला जिला हार-जीत का फैसला करेगा। ऊपरी शिमला में कांग्रेस का दबदबा रहा है जबकि शहरी क्षेत्र में भाजपा का अच्छा प्रभाव है।
भाजपा ने पहले प्रत्याशी घोषित कर प्रचार अभियान में बढ़त हासिल कर ली थी। कांग्रेस प्रत्याशी धनीराम शांडिल प्रचार अभियान में जुटे हैं लेकिन अभी तक उन्हें पार्टी के बड़े नेताओं का साथ पूरी तरह नहीं मिल पाया है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने आपत्ति भी जताई थी कि 10-15 लोगों को साथ लेकर प्रचार नहीं होता है। शिमला संसदीय क्षेत्र में वीरभद्र सिंह का हमेशा प्रभाव है। वीरभद्र इस बार सोलन जिला के अर्की से विधायक हैं।
जनजातीय क्षेत्र की मांग का बड़ा मुद्दा
सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र दिए जाने का बड़ा मुद्दा है। हर चुनाव में यह मुद्दा सभी राजनीतिक दल उठाते रहे हैं लेकिन यह आज तक हल नहीं हो पाया है। सांसद वीरेंद्र कश्यप ने अपने कार्यकाल में इस मुद्दे को संसद में उठाया है लेकिन परिणाम शून्य ही रहा है। वीरेंद्र कश्यप इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं। कांग्र्रेस प्रत्याशी धनी राम शांडिल भी इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिलाने का दावा कर रहे हैं। पिछले संसदीय चुनाव के दौरान भी उन्होंने इस मामले को उठाया था। इस बार भाजपा प्रत्याशी सुरेश कश्यप इस मामले को जोर-शोर से उठा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी सिरमौर जिले से ही संबंधित हैं इस कारण इस क्षेत्र के बारे में भलीभांति समझते हैं।
खस्ताहाल सड़कें भी चर्चा में
सिरमौर जिले में ही नहीं ऊपरी शिमला में भी सड़कों की खस्ता हालत अहम मुद्दा है। सिरमौर जिला में खस्ताहाल सड़कें हादसों का कारण बनती रही हैं। किसी भी पार्टी ने यहां की सड़कों की हालत सुधारने की तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया है। क्षेत्र के लोगों का मानना है जो प्रत्याशी सड़कों की हालत सुधारने का वादा करेगा उसे समर्थन दिया जा सकता है। दूसरी तरह ऊपरी शिमला में भी सड़कों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। हर साल सड़कों की खराब हालत सेब सीजन में बागवानों पर भारी पड़ती है। बागवान सेब सीजन में सड़कों की हालत में सुधार करने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा बागवानों का कहना है कि क्षेत्र में फल आधारित उद्योग भी लगाए जाएं। लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार ने सॉफ्ट ड्रिंक्स में सेब का रस डालने का वादा किया था लेकिन अभी तक इस पर अमल नहीं हो पाया है।
स्थानीय पर हावी राष्ट्रीय मुद्दे
शिमला व सोलन जिला में राष्ट्रीय मुद्दे ही हावी हैं। स्थानीय मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं लेकिन उनके अधिक अहमियत नहीं मिल रही है। राजधानी शिमला में पिछले साल हुए पेयजल संकट को कोई भी पार्टी मुद्दा नहीं बना रही है। कांग्रेस इस कारण इसे मुद्दा नहीं बना रही है कि पूर्व में शिमला नगर निगम में उसका ही दबदबा रहा है। जब पिछले साल हुए पेयजल संकट के समय नगर निगम पर भाजपा का कब्जा था। यहां पर केंद्र सरकार की योजनाओं की अधिक चर्चा है। लोगों का कहना है कि मोदी सरकार ने किसानों के खाते में दो-दो हजार रुपये डाल दिए हैं व जल्द ही दूसरी किस्त भी आ जाएगी। उधर कांग्र्रेस के हर गरीब को 72 हजार रुपये दिए जाने की मात्र कल्पना करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि देश के सभी गरीबों को इतनी राशि दिया जाना संभव ही नहीं है।
सैन्य परिवारों पर नजर
दोनों प्रमुख दलों की सैन्य परिवारों पर भी नजर टिकी है। दोनों प्रमुख प्रत्याशी भी सैन्य पृष्ठभूमि से हैं। इसका कारण पूर्व सैनिक यहां पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पूर्व सैनिक संगठनों ने अभी तक किसी भी प्रत्याशी के समर्थन का ऐलान नहीं किया है न ही किसी के पक्ष या विपक्ष में काम कर रहे हैं। वहीं पूर्व सैनिक प्रचार अभियान में डटे हैं जो किसी पार्टी से जुड़े हैं। पूर्व सैनिकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कर सराहनीय कार्य किया है।
सीमांत क्षेत्र का प्रभाव
शिमला संसदीय क्षेत्र की सीमाएं हरियाणा व उत्तराखंड से सटी हैं। इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। इसका प्रभाव भी यहां पर दिखेगा। साथ लगते राज्यों के नेताओं का भी यहां पर आना-जाना लगा रहता है।