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नागपुर लोकसभा सीट: गडकरी की 'विकास पुरुष' की छवि से निपटना पटोले के लिए नहीं होगा आसान

गडकरी मोदी सरकार के सबसे बेहतरीन काम करने वाले मंत्रियों में गिने जाते हैं। महाराष्‍ट्र में एक समय बुलडोजर मिनिस्‍टर के नाम से मशहूर रहे गडकरी की छवि एक विकास पुरुष की है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 01:56 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 01:56 PM (IST)
नागपुर लोकसभा सीट: गडकरी की 'विकास पुरुष' की छवि से निपटना पटोले के लिए नहीं होगा आसान
नागपुर लोकसभा सीट: गडकरी की 'विकास पुरुष' की छवि से निपटना पटोले के लिए नहीं होगा आसान

नागपुर, जागरण स्‍पेशल। नागपुर विदर्भ का सबसे प्रमुख शहर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के गढ़ और संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर की दीक्षा भूमि के रूप में मशहूर है। इस लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जीते हैं। वर्तमान में यहां से भाजपा के कद्दावर नेता, पूर्व अध्‍यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी सांसद हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने चार बार के सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विलास मुत्तेमवार को चुनाव हराया था। कांग्रेस ने इस बार नाना पटोले को टिकट दिया है। पटोले इससे पहले भाजपा के नेता और सांसद रह चुके हैं।

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गडकरी ने किया नागपुर का चौतरफा विकास  

नितिन गडकरी ने सांसद और मंत्री के रूप में नागपुर के लिए करीब 60 हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा की योजनाएं शुरू कराई। नागपुर मेट्रो, एम्‍स, लॉ यूनिवर्सिटी, आइआइएम, आइआइटी सहित इलाके में कई इकाइयां ने इसे विश्‍व के फलक में स्‍थापत किया है। इन योजनाओं से क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिला और लोगों के जीवन स्‍तर में सुधार हुआ। जात-पात से ऊपर उठकर लोगों से व्‍यवहार करने वाले नितिन गडकरी की छवि क्षेत्र में बेहतर है।

गडकरी मोदी सरकार के सबसे बेहतरीन काम करने वाले मंत्रियों में गिने जाते हैं। महाराष्‍ट्र में एक समय 'बुलडोजर मिनिस्‍टर' के नाम से मशहूर रहे गडकरी की छवि एक 'विकास पुरुष' की है। इस छवि से निपटना नाना पटोले के लिए आसान नहीं होगा।

नागपुर से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस दो ऐसे शख्सियत हैं जो भाजपा में दबदबा रखते हैं। साथ ही यहां आरएसएस की जमीनी स्तर पर बीते कुछ सालों में पकड़ काफी मजबूत हुई है, इसलिए राजनीतिक विश्‍लेषकों का का कहना है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अच्छी पकड़ का असर चुनाव में भी दिखाई देगा। 

नाना पटोले की पकड़ कुणबी-मराठा वोटों पर है। वह ओबीसी समुदाय से आते हैं। 2006 में भोतमांगे परिवार के चार लोगों की हत्‍या के मामले में दलित उनसे नाराज थे, तब वह निर्दलीय विधायक थे। हालांकि 2009 में फि‍र से चुने गए।

2014 के लोकसभा चुनाव में नितिन गडकरी ने इस सीट पर कांग्रेस के विलास मुत्‍तेमवार को करीब पौने 3 लाख वोटों से मात दी थी। गडकरी को 5,87,767 वोट मिले थे और मुत्‍तेमवार को 302939 वोट। नागपुर लोकसभा सीट पर इस बार भी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होने जा रहा है। इस सीट पर 2014 में बसपा (96433 वोट) नंबर तीन और आम आदमी पार्टी (69081 वोट) नंबर चार पर रही थी।

2014 में नाना पटोले भाजपा के टिकट पर भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीट से जीते थे। उन्‍होंने एनसीपी के दिग्‍गज नेता प्रफुल्‍ल पटेल को करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था। वर्ष 2017 में उन्‍होंने भाजपा को अलविदा कह दिया और संसद से भी इस्‍तीफा दे दिया। इसके बाद पटोले पिछले साल कांग्रेस में शामिल हो गए।

नागपुर का राजनीतिक इतिहास

आजादी के बाद 1951 में नागपुर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। यहां अनुसूया बाई सबसे पहले 1952 में सांसद बनीं। वो 1956 में चुनकर आई थी। इसके बाद 1962 में माधव श्रीहरि अणे यहां से निर्दलीय चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1967 में नरेंद्र देवघरे कांग्रेस को वापस सीट दिलाने में सफल रहे।

यहां विदर्भ को महाराष्ट्र से अलग करने को लेकर उठी आवाज ने कांग्रेस को यहां सत्ता से बाहर कर दिया। 1971 में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी के जामबुवंत धोटे चुनाव जीते, लेकिन 1977 के लोकसभा में उनकी हार हो गई। उन्हें कांग्रेस के गेव मनचरसा अवरी ने चुनाव हराया। इसके बाद जामबुवंत धोटे कांग्रेस (आई) से जुड़ गए। वह 1980 का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. लेकिन कुछ समय बाद ही उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया और विदर्भ जनता कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. हालांकि, वो दोबारा लोकसभा में नहीं लौट सके।

ज्ञात हो कि कि वर्तमान में तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने कांग्रेस को 1984 और 1989 के लोकसभा चुनाव में जीत दिलाई। वो यहां से लगातार दो बार चुनाव जीते। इसके बाद जब भाजपा ने राम मंदिर बनाने का मुद्दा छेड़ा तो बनवारी लाल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए। उनकी जगह कांग्रेस ने दत्ता मेघे को टिकट दिया। दत्ता मेघे के हाथों बनवारी लाल पुरोहित की हार हुई। हालांकि, 1996 में बनवारी लाल पुरोहित ने दोबारा लोकसभा में बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा और वो जीतने में कामयाब रहे।

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लगातार चार बार जीती कांग्रेस

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विलास मुत्तेमवार ऐसे नेता रहे जिन्होंने 1998, 1999, 2004 और 2009 में कांग्रेस को नागपुर लोकसभा सीट से लगातार जीत दिलवाई। इस कारण मुत्तेमवार यूपीए की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे।

गडकरी 2014 में पहली बार लड़े और जीते

नितिन गडकरी नागपुर लोकसभा सीट से पहली बार 2014 में लोकसभा चुनाव जीते। उन्होंने कांग्रेस के विलास राव मुत्तेमवार को चुनाव हराया।

नागपुर में हैं 6 विधानसभा क्षेत्र 

नागपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी छह विधानसभा सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है। यहां की नागपुर दक्षिण पश्चिम (52), नागपुर दक्षिण (53), नागपुर पूर्व (54), नागपुर सेंट्रल (55), नागपुर पश्चिम (56), नागपुर उत्‍तर (57) पर भाजपा के विधायक हैं। इसके अलावा नागपुर से सटी बाकी विधानसभा सीटों पर भी भाजपा का ही कब्ज़ा है।

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एतिहासिक स्थिति और जातीय समीकरण

नागपुर के चुनाव परिणाम का असर पूरे विदर्भ क्षेत्र पर पड़ेगा। हाल में इस शहर को देश के सबसे स्‍वच्‍छ शहर का पुरस्‍कार मिला था। यहां के संतरे पूरी दुनिया में मशहूर हैं। बताया जाता है कि नाग नदी के कारण इस शहर का नाम नागपुर पड़ा था।

नागपुर डॉ. भीम राव आंबेडकर की कर्मभूमि रही है। इस सीट पर जीत हासिल करने में दलितों की भूमिका महत्‍वपूर्ण रहेगी। इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की भी संख्‍या अधिक है। नागपुर के जातीय समीकरण की ओर देखा जाए तो यह सीट सवर्ण और दलित बहुल सीट है लेकिन हर चुनाव में यहां सवर्णों के वोट का असर दिखाई देता रहा है।

नागपुर उत्तर विधानसभा सीट से भाजपा विधायक मिलिंद माने थोराट ने दावा किया कि गडकरी के पक्ष में दलित बौद्ध वोटों का प्रतिशत इस बार 27 प्रतिशत तक जाएगा जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में यह महज तीन-चार प्रतिशत था। सिर्फ विकास कार्यों के कारण ऐसा नहीं होगा, बल्कि आंबेडकरवादियों के साथ भाजपा का संबंध भी एक बड़ा कारण होगा। बौद्धों ने भाजपा पर विश्वास करना शुरू कर दिया है।


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