लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की ये दस बड़ी गलतियां, जो पार्टी के लिए पड़ी भारी
राहुल गांधी का चुनावी अभियान सियासी परिवक्वता की मिसाल बन गया। लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने कई ऐसी गलतियां की जिसे लेकर राजनीतिक विश्लेषकों ने भी चिंता जताई।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। लोकसभा चुनावों के रिजल्ट आ चुके हैं। एक बार फिर कांग्रेस की बड़ी पराजय हुई है। चुनावों के दौरान पीएम मोदी के मुकाबले विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ही थे। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दे उठाए जिसको लेकर काफी चर्चा हुई। परिणाम आने के बाद उन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ मिलाकर राहुल गांधी का चुनावी अभियान सियासी परिवक्वता की मिसाल बन गया। इस दौरान राहुल गांधी ने कई ऐसी गलतियां की, जिसे लेकर राजनीतिक विश्लेषकों ने भी चिंता जताई। चुनावों के दौरान राहुल गांधी की वो दस बड़ी गलतियां जो पार्टी और अन्य
1. पीएम को बार-बार चौकीदार चोर कहना- कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावों से पहले ही राफेल डील मामले को लेकर 'चौकीदार चोर है' का नारा देना शुरू कर दिया था। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में क्लीनचिट देने के बाद भी उन्होंने इस नारे को देना जारी रखा। इस मामले को लेकर उनका उतावलापन इस कदर था कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में हस्तेक्षेप किया। यही कारण है कि उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला दर्ज किया गया। इसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी। वह यह समझने को तैयार नहीं थे कि सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद इस मामले में जनता की उतनी दिलचस्पी नहीं थी, जितनी वह दिखाना चाह रहे थे। वह बार-बार कह रहे थे कि चौकीदार चोर है, जबकि देश की ज्यादातर जनता इसे मानने को तैयार नहीं थी। यानी उन्हें देश के मुद्दों के बारे में पता ही नहीं था। यही कारण है कि उनका इस मामले जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी दिखाना उनकी सियासी अपरिपक्वता थी और उनका बचकानापन था।
2. सुप्रीम कोर्ट से क्लीनचिट मिलने के बाद भी राफेल डील पर डटे रहना- राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि उनके सलाहकार उन्हें जितना कहते हैं, उतना ही वह रणनीति बना पाते हैं। यानी उन्हें देश के जमीनी मुद्दों के बारे में जानकारी ही नहीं है। उन्होंने एक बेमतलब के मुद्दे पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया। (
3. मोदी पर सीधा अटैक करना, केजरीवाल से नहीं लिया सबक- इसमें कोई संदेह नहीं कि पीएम मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। यह बात राहुल गांधी नहीं समझ सके, उन्होंने बार-बार नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। पीएम नीतियों को लेकर कोई सवाल कर सकता है लेकिन देश की जनता यह मानने को तैयार नहीं थी कि चौकीचार चोर है। यही कारण है कि उनके इस नारे को लेकर सवाल खड़े किए गए। यहां तक कि कांग्रेस के थिंकटैंक ने भी उन्हें कोई आइडिया नहीं दिया। पंजाब विधानसभा चुनावों से दिल्ली के मुख्यमंत्री भी पीएम मोदी के खिलाफ काफी आक्रामक रहते थे और उनको लेकर आए दिन बयान देते रहते थे। लेकिन उन्होंने इस दौरान यह समझ लिया कि पीएम मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनके मुकाबले कोई नहीं है। यही कारण है कि केजरीवाल ने मोदी का नाम लेना छोड़ दिया और अपने काम पर फोकस किया। उनके बरक्स राहुल गांधी ने बार-बार पीएम मोदी का नाम लेकर हमला बोला। इसका उल्टा असर पड़ा।
4. ऑक्सफोर्ड डिक्शेनरी को लेकर मोदीलाइ पर आरोप लगाना- चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए सिलसिलेवार ट्वीट्स में 'नए तरीके' से हमला बोला था। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर मॉर्फ्ड इमेज शेयर की थी, जिसमें एक शब्द मोदीलाइ (Modilie) सर्च करते हुए दिखाया गया था। कैप्शन में राहुल ने लिखा था कि इंग्लिश डिक्शनरी में एक नया शब्द जुड़ा है, जिसका स्नैपशॉट नीचे है। इसके साथ ही कैप्शन में स्माइली भी बनाया गया था... राहुल की शेयर की गई इस इमेज में मोदीलाइ (Modilie) शब्द को संज्ञा (Noun) बताया गया था।
आगे चलकर मोदीलाइ (Modilie) शब्द पर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने राहुल के दावे की हवा निकाल दी है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ट्वीट कर कहा है कि हम इस बात की तस्दीक करते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदीलाइ (Modilie) शब्द के बारे में स्क्रीन शॉट में जो दावे किए हैं वे फर्जी (fake) हैं। यह शब्द हमारी किसी डिक्शनरी में नहीं है। राहुल गांधी के नए आरोपों की भी हवा निकल गई और उनकी खुद की बेइज्जती हुई।
5. प्रियंका गांधी को बहुत देर से जिम्मेदारी देना- प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पूर्वी उत्तरप्रदेश के महासचिव की जिम्मदोरी दी। इसके कई मतलब निकाले गए। कहा गया कि मोदी का मुकाबला करने के लिए राहुल गांधी अकेले सक्षम नहीं हैं, इसीलिए वे प्रियंका गांधी को लेकर आए। चुनावों के ठीक पहले जिम्मेदारी देने का यह भी मतलब निकाला गया कि उनके लिए राजनीति पिकनिक स्टॉप की तरह है। जब चुनाव खत्म हो जाते हैं तो वह अपने घर जाकर बैठ जाती हैं। हालांकि लोगों के बीच प्रियंका की छवि को इंदिरा गाधी से जोड़कर देखा गया। अगर लोगों के दिलों में जगह बनानी थी तो उन्हें राजनीति में पहले आना चाहिए था।
लोगों के मुद्दे पर संघर्ष करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पीएम मोदी को लेकर लोगों के बीच ऐसी छवि है कि वह 24 घंटे में 18 घंटे काम करते हैं और लोगों के हित के बारे में सोचते रहते हैं। वहीं दूसरी तरफ गांधी परिवार के लोग हैं। यही कारण है कि प्रियंका की टाइमिंग को लेकर तरह-तरह से सवाल किए गए। इसके साथ ही प्रियंका के बनारस से चुनाव लड़ने की चर्चाओं को लेकर भी काफी सवाल किए गए। चुनावों के दौरान प्रियंका गांधी ने यह बयान दिया है कि अगर पार्टी चाहेगी तो मैं बनारस से लड़ने के लिए तैयार हूं। अंतत वह बनारस से चुनाव नहीं लड़ी, इसका नकारात्मक असर पड़ा। अगर वह वहां से लड़कर हारतीं तो भी लोगों के बीच फाइटर होने का संदेश जाता लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अंतत: बनारस से चुनाव लड़ने का मुद्दा हवा हवाई ही रहा।
6. कई राज्यों में गठबंधन नहीं करना, भाजपा से नहीं लिया सबक- चुनावों के ठीक पहले तक शिवसेना और भाजपा के बीच काफी तल्खी थी। इसके बाद भाजपा अध्यक्ष ने आगे बढ़कर शिवसेना के साथ गठबंधन किया। दोनों पार्टियां यह जानती थीं कि अगर दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ेगी तो उन्हें नुकसान होगा। यही कारण है कि दोनों ने अंतत: गठबंधन किया और उसका दोनों पार्टियों को लाभ भी हुआ। ठीक ऐसे ही भाजपा ने कई और प्रदेश में समझौता किया। हालांकि कांग्रेस ने भी कई राज्यों में समझौता किया जिनमें तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक शामिल रहे। लेकिन कई ऐसे राज्य भी रहे जिनमें गठबंधन नहीं हो सका। जिनमें दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्य शामिल रहे। समझौता न होने पीछे माना जाता है कि कांग्रेस की क्षेत्रीय क्षत्रपों पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता, पार्टी में लचीलापन नहीं होना, बड़ी पार्टी होने का अहंकार जैसे मुद्दे शामिल रहे। जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।
7. देश में पार्टी संगठन को नहीं खड़ा करना- संगठन के बगैर कोई पार्टी लंबे समय तक शासन नहीं कर सकती है। देश में कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। इसके बावजूद कई राज्य ऐसे हैं जहां पार्टी संगठन मृतप्राय है। इसमें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। वहां पर पार्टी संगठन को खड़ा करने की कोशिश नहीं की गई। यहां पार्टी संगठन के बजाय व्यक्तियों के सहारे है। यही कारण है कि कुछ राज्यों में नर्इ पार्टियों के बरक्स कांग्रेस को महत्व नहीं दिया गया। इसके साथ पार्टी ने यह समझने की कोशिश नहीं की कि कौन सा वर्ग, समुदाय और जाति उसका मतदाता है। देश के अधिकतर राज्यों में पुराने नेताओं पर निर्भर है। उनके पास नए नेता नहीं आ रहे हैं। यही कारण है कि 80 की उम्र पार करने के बावजूद पुराने नेताओं को लड़ाने के लिए मजबूर है। यही कारण है कि कांग्रेस अपने पुराने नेताओं को चुनाव लड़ाने पर ज्यादा विश्वास किया।
8. दो जगह से चुनाव लड़कर असमंजस पैदा करना- देश में बड़े नेता पहले भी कई जगहों से चुनाव लड़ते रहे हैं और इसका लोगों के बीच सकारात्मक संदेश जाता रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने इस बार दो जगहों से उत्तर प्रदेश के अमेठी और केरल के वायनाड से लोकसभा चुनाव लड़ा। इसका लोगों के बीच गलत संदेश गया। चुनावों के पहले भाजपा की वरिष्ठ नेता स्मृति ईरानी ने काफी बार अमेठी का दौरा किया। इसका लोगों के बीच सकारात्मक संदेश गया था। लोगों के बीच यह संदेश गया कि शायद राहुल को अमेठी से हारने का डर है, इसलिए वह केरल के वायनाड से चुनाव लड़ा। भले ही उन्होंने वायनाड में बड़ी जीत हासिल की हो लेकिन उसका देश में एक नकारात्मक संदेश गया है। भाजपा ने चुनावों के दौरान बार-बार यह कहा कि राहुल ने दूसरी ऐसी सीट का चुनाव किया जोकि अल्पसंख्यक बहुल है। यानी उन्हें देश बहुसंख्यक हिंदुओं पर भरोसा नहीं है। राहुल के दो जगहों से लड़कर लोगों के बीच असमंजस पैदा किया। इसका लोगों के बीच सकारात्मक संदेश नहीं गया।
9. बड़बोले नेताओं ( सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर) पर रोक नहीं लगाना- कांग्रेस ने चुनावों के दौरान अपने बड़ बोले नेताओं पर कोई रोक नहीं लगाई। इसका चुनावों के दौरान खामियाजा भुगतना पड़ा। जैसाकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के बयानों से पीएम मोदी के खिलाफ दिए गए बयानों से लोकसभा चुनाव 2014 और गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान हो चुका है। इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और थिंकटैंक सैम पित्रोदा के बयानों से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने अपने बयान में कहा था कि '1984 हुआ तो हुआ। आपने पांच साल में क्या किया।' इसका लोगों विशेष रूप से सिख समुदाय के बीच गलत संदेश गया। यही कारण है कि पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें सैम पित्रोदा के बयान पर माफी मांगनी पड़ी। माना जाता है कि कांग्रेस अपने पुराने ओल्ड गार्ड पर जरूरत से ज्यादा निर्भर है। यही कारण है कि कांग्रेस अपनी नीतियों में भी ज्यादा परिवर्तित नहीं कर पाती है। कांग्रेस आलाकमान उन पर बड़ी से बड़ी गलती करने के बावजूद कार्रवाई करने में असमर्थ रहा।
10. चुनाव प्रचार में पीछे रहना, अपना एजेंडा सेट नहीं कर पाना- चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अपना एजेंडा सेट करने में नाकाम रही। वह देश के गरीब लोगों, मध्यवर्ग के लिए क्या करेगी यह समझाने में असफल रही। हालांकि कांग्रेस ने देश में गरीबों के लिए न्याय स्कीम का बहुत प्रचार किया। इसके देश के पांच करेाड़ सबसे बड़े गरीबों को 72 हजार रुपये प्रति वर्ष देगी। इसका लोगों पर कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ा। गरीबों को कांग्रेस समझाने में असफल रही कि इस योजना के तहत कैसे लाभ देगी। इसके बरक्श मोदी सरकार की कई योजनाएं जैसे उज्जवला योजना, जन धन योजना, किसानों को छह हजार का मुआवजा, सबके लिए मकान, सभी के लिए शौचालय से गरीबों को सीधे लाभ हुआ।
यही कारण है कि भाजपा को गरीबों और निम्न मध्य वर्ग को लुभाने में ज्यादा कामयाब रही। देश के गरीबों ने राहुल की न्याय स्कीम के बजाय मोदी सरकार की योजनाओं पर ज्यादा विश्वास किया। देश के मध्यवर्ग के लिए कांग्रेस की क्या देगी, इसका कोई ब्लूप्रिंट दिया। अगर कहा जाए तो कांग्रेस के पास मध्य वर्ग को लुभाने के लिए कुछ प्लान नहीं दिया। यही कारण है कि मध्यवर्ग का विश्वास जीतने में राहुल गांधी असफल रहे। यही कारण है कि देश के ज्यादातर शहरों में भाजपा विजयी रही।
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