Move to Jagran APP

चुनावी चौपाल: वोट बैंक की राजनीति से मिला ऋषिकेश में अवैध बस्तियों को संरक्षण

दैनिक जागरण ने त्रिवेणी घाट स्थित ऐतिहासिक गांधी स्तंभ के नीचे चुनावी चौपाल का आयोजन किया। नगर में अवैध बस्तियों को लेकर जागरूक नागरिकों के साथ लंबी चर्चा हुई।

By Sunil NegiEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 04:17 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 08:09 PM (IST)
चुनावी चौपाल: वोट बैंक की राजनीति से मिला ऋषिकेश में अवैध बस्तियों को संरक्षण
चुनावी चौपाल: वोट बैंक की राजनीति से मिला ऋषिकेश में अवैध बस्तियों को संरक्षण

ऋषिकेश, जेएनएन। गंगा और उसकी सहायक नदियों के तट पर ही नहीं, बल्कि शहर के बीच में बसी अवैध बस्तियां बड़ी समस्या बनती जा रही है। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों का धरातल पर सत्यापन हो जाए तो कई संदिग्ध लोगों को शहर छोड़ना पड़ सकता है। दैनिक जागरण की चुनावी चौपाल में अवैध बस्तियों को लेकर नागरिकों से हुई बेबाक बातचीत में सभी ने इस समस्या के लिए वोट बैंक की राजनीति को जिम्मेदार ठहराया। नागरिकों का कहना है कि जिम्मेदार विभाग और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ इस संबंध में कार्यवाही की जरूरत है।

loksabha election banner

त्रिवेणी घाट स्थित गांधी स्तंभ वह स्थान है जिसके शीर्ष पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हस्ताक्षर अंकित है। देश की आजादी की लड़ाई के वक्त सेनानियों और क्रांतिकारियों ने इसी गांधी स्तंभ के नीचे रामधुन गाकर प्रभात फेरी निकाली थी। दैनिक जागरण ने बुधवार को इसी ऐतिहासिक गांधी स्तंभ के नीचे चुनावी चौपाल का आयोजन किया। नगर में अवैध बस्तियों को लेकर जागरूक नागरिकों के साथ लंबी चर्चा हुई। सभी ने इन अवैध बस्तियों को शहर की सुंदरता पर बदनुमा दाग बताया। 

इन बस्तियों में रहने वाले संदिग्ध लोगों को खतरा बताते हुए नागरिकों का कहना था कि सबसे ज्यादा अवैध रूप से शराब स्मैक और चरस की बिक्री इन्हीं अवैध बस्तियों की आड़ में होती है। नशे का कारोबार करने वाले लोगों को ऐसी ही बस्तियों में पनाह मिलती है। शहर में जब कोई बड़ी वारदात होती है तो पुलिस बस्तियों के लोगों का सत्यापन के नाम पर सिर्फ रस्म अदायगी करती है। यदि इन बस्तियों में रहने वाले लोगों की गहन जांच हो जाए तो निश्चित रूप से नशे की बिक्री और अपराधों में कमी आएगी। यहां रह रहे लोगों को समाज कल्याण विभाग की पेंशन योजनाओं का लाभ, राशन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसी सुविधाएं मिलने पर भी नागरिकों ने सवाल खड़े किए हैं।

इनका सीधा सपाट कहना है कि नेताओं ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए यहां रह रहे लोगों को यह तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई है। जागरूक नागरिकों का यह भी कहना है कि वास्तव में जो यहां के निर्धन और पात्र लोग हैं, उनके हिस्से की योजनाओं का लाभ गलत लोगों के हाथों में पहुंच रहा है।

चौपाल में लोगों ने इस बात का भी खुलासा किया कि कहने को यह लोग अवैध बस्तियों में रहते हैं, लेकिन दुपहिया, चौपाइयां और मुख्य बाजारों में महंगे किराए की दुकानें भी इन्हीं लोगों के पास है। गंगा के तट पर बढ़ रहे प्रदूषण के लिए भी जागरूक नागरिक अवैध बस्ती में रहने वाले लोगों को ही जिम्मेदार ठहराते हैं। इनका कहना है कि गंगा की स्वच्छता के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है मगर गंगा को दूषित करने वालों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती है। जब कभी किसी विभाग के स्तर पर कार्यवाही की शुरुआत होती है तो इनके संरक्षक नेता आगे आ जाते हैं।

आपदा में मुआवजे के हकदार बन जाते हैं लोग

गंगा और उसकी सहायक नदी चंद्रभागा के आसपास अवैध रूप से बस्तियां बसी हुई हैं। मानसून के वक्त नदियों में जब उफान आता है तो प्रशासन मुनादी करा कर इन बस्तियों को खाली करने के लिए कहता है। बाढ़ से जब नुकसान की बात आती है तो इन लोगों की लंबी फेहरिस्त नेताओं के जरिए प्रशासन तक पहुंच जाती है। बाढ़ राहत का मुआवजा भी इन्हीं लोगों को मिलता है।

अवैध बस्ती में लगे बिजली पानी के कनेक्शन

अवैध बस्तियों को पनपाने में सरकारी विभाग भी पीछे नहीं है। सिंचाई विभाग की भूमि पर अवैध कब्जा कर बजे इन लोगों के कई घरों में पानी और बिजली के कलेक्शन दे दिए गए हैं। विभागों की नियमावली अन्य लोगों को बिजली और पानी के कनेक्शन के लिए दफ्तर के चक्कर कटवाती है। अवैध बस्तियों के लिए नियम ताक पर रख दिए जाते हैं।

20 साल से नहीं चला अवैध बस्तियों पर डोजर

किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए इच्छा शक्ति की जरूरत होती है। जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों के भीतर पिछले दो दशक से इस तरह की इच्छा शक्ति का अभाव देखा गया है। वर्ष 1999 में राज्य गठन से पूर्व तत्कालीन उप जिलाधिकारी वर्तमान में शासन में सचिव युगल किशोर पंत और पुलिस उपाधीक्षक केके खुराना  को आज भी लोग याद करते हैं। त्रिवेणी घाट से लेकर चंद्रभागा पुल तक करीब 4 किलोमीटर क्षेत्र में अवैध बस्तियां बसी हुई थी। यहां तक की सिंचाई विभाग के तटबंध के ऊपर भी  झोपड़ियां बनी हुई थी। इन दोनों अधिकारियों ने एक सप्ताह लगातार अभियान चलाकर इस पूरे इलाके को अतिक्रमण से मुक्त कराया था। उस वक्त भी कई लोगों के बिजली और पानी के कनेक्शन काटे गए थे। आज लोगों के सामने आस्था पथ नजर आता है। यह सब इन दो अधिकारियों की इच्छाशक्ति के कारण ही है।

बोली जनता

  • राहुल शर्मा (महामंत्री श्री गंगा सभा) का कहना है कि वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने अवैध बस्ती को बढ़ावा दिया है। बस्तियों की आड़ में नशे का कारोबार होता है, जो की पूरी आबादी के लिए चिंता का विषय है। यहां रह रहे लोगों का चिन्ही करण  और सत्यापन होना जरूरी है। आपदा के वक्त गरीबों के हिस्से की राहत भी ऐसे ना जाए लोग पा जाते हैं।
  • राजकुमार अग्रवाल (अध्यक्ष देवभूमि उद्योग व्यापार मंडल) का कहना है कि सरकार गंगा प्रदूषण की रोकथाम के लिए करोड़ों रुपया खर्च कर रही है। मगर गंगा और उसकी सहायक नदी के किनारे बसी बस्तियों गंगा को प्रदूषित कर रही हैं। जिम्मेदार विभाग कोई कार्यवाही नहीं करते हैं। अधिकारियों में इस मामले को लेकर इच्छाशक्ति का अभाव है। 10 वर्षों में अवैध बस्ती या ज्यादा विकसित हुई हैं।
  • चंदना (फूल विक्रेता त्रिवेणी घाट) का कहना है कि अवैध बस्तियों के खिलाफ सरकार अपना काम करें और जनता जागरुक हो। गंगा के नाम पर पैसा खर्च होता है। सरकार को इस तरह की अवैध बस्तियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इन बस्तियों की आड़ में असामाजिक तत्व सक्रिय रहते हैं। इस तरह की अवैध बस्तियों को खाली कराकर इनमें सरकारी योजना संचालित करने के लिए भवनों का निर्माण होना चाहिए। 
  • हरीश गावड़ी (व्यापारी घाट रोड) का कहना है कि अवैध बस्तियां विनाश का कारण बनती है। इनमें अपराधिक तत्वों को संरक्षण मिलता है। इसके लिए संबंधित विभागों के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। इन बस्तियों में कौन लोग रह रहे हैं, इस बात को भी जानने की जरूरत है। नशा विक्रेताओं का बड़ा रैकेट इन अवैध बस्तियों के आड़ में फल फूल रहा है।
  • रीना शर्मा (पार्षद नगर निगम) का कहना है कि  बाहर से आया संदिग्ध एक व्यक्ति अवैध बस्ती में आकर बस जाता है। कुछ समय बाद वह बाहर से दस और लोगों को यहां पर लाकर बता देता है। बस्ती में रहने वाले तमाम संदिग्ध लोगों का सत्यापन होना चाहिए। ऐसे लोगों को उनके मूल शहर में वापस भेजने की व्यवस्था प्रशासन को करनी चाहिए।
  • स्वामी भोला गिरी (गंगा शंकर मंदिर) का कहना है कि पावन गंगा के तट पर प्रदूषण फैलाने वाले और कोई नहीं इन अवैध बस्तियों में रहने वाले लोग हैं। यही लोग गंगा में मछलियों का शिकार करते हैं। गंगा पार वन क्षेत्र से लकड़ी तस्करी और अवैध शिकार को यही लोग बढ़ावा देते हैं।
  • हर्षित गुप्ता (व्यापारी) का कहना है कि हकीकत में अवैध बस्तियों में रहने वाले लोग वास्तव में पात्र गरीबों के हक पर डाका डालने का काम कर रहे हैं। वोट बैंक की खातिर कई अवैध बस्तियों को नियमित कर दिया गया है। नगर निगम गठन से पूर्व सरकारी भूमि पर बसी कुछ बस्तियां निगम क्षेत्र में शामिल कर ली गई। काफी हद तक नेताओं के संरक्षण में यह अवैध बस्तियां फल-फूल रही है।
  • वेद प्रकाश धींगड़ा (वरिष्ठ नागरिक) का कहना है कि अवैध बस्तियों को संरक्षण देने वाले लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। इस तरह की बस्तियों के खिलाफ शहर के बुद्धिजीवियों को आगे आने की जरूरत है। वास्तविक लोगों को राशन कार्ड और पेंशन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। मगर नेताओं के कारण अवैध बस्ती के लोग इन योजनाओं का फायदा उठा रहे हैं।

चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

यह भी पढ़ें: चुनावी चौपाल: जनता बोली-बसें हैं नहीं, फिर छोटे वाहनों की छतों पर न बैठें तो क्या करें

यह भी पढ़ें: चुनावी चौपाल: गंगा स्वच्छता को सरकार ने किया ठोस उपाय, विपक्ष ने बनाया मुद्दा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.