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सरदार पटेल 10 वर्ष और जीवित रह जाते तो राम मंदिर और कश्मीर चुनावी मुद्दा न होता

लोकतंत्र के महायज्ञ और देश की राजनीति में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। वहीं राजनीतिक चर्चा में कई बातें ऐसी सामने आ रही हैं जो चौका देने वाली हैं। पढि़ए ये रिपोर्ट।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 01:00 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 01:23 PM (IST)
सरदार पटेल 10 वर्ष और जीवित रह जाते तो राम मंदिर और कश्मीर चुनावी मुद्दा न होता
सरदार पटेल 10 वर्ष और जीवित रह जाते तो राम मंदिर और कश्मीर चुनावी मुद्दा न होता

पानीपत/यमुनानगर, [संजीव कांबोज]। ये हैं अलाहर गांव के 101 वर्षीय प्रीती लाल कांबोज। उम्र के इस पड़ाव में भी आंखें दुरुस्त हैं। हालांकि थोड़ा ऊंचा सुनाई देने लगा है। निरक्षर होते हुए भी राजनीतिक चर्चा में इनके सामने टिक पाना मुश्किल है। अब तक हुए हर चुनाव में उत्साह के साथ मतदान किया है। इन दिनों शहर के चोपड़ा गार्डन में रह रहे हैं। 

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इन्होंने लोकतंत्र के महायज्ञ और देश की राजनीति में उतार-चढ़ाव पर दैनिक जागरण से अनुभव साझा किए। कहते हैं अंग्रेजी हकुमत को करीब से देखा है। राजनीति तो सरदार वल्लभ भाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता करते थे। यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल 10 वर्ष और जीवित रहते तो आज राम मंदिर और कश्मीर मुद्दा न होता। वे ऐसे बड़े मुद्दों को सुलझाने का माद्दा रखते थे। अब राजनीति का व्यापारीकरण हो गया है। वोट की राजनीति हो रही है। हर मुद्दे को वोट की तराजू में तोला जा रहा है।

नेता नहीं जानते जबान की कीमत
प्रीती लाल का कहना है कि अग्रेजों की गुलामी की पीड़ा तो जरूर थी, लेकिन अंग्रेज समय के पाबंद और नियमों के पक्के थे। आज नेता वादे को कुछ मिनटों में भूल जाते हैं। वह जबान की कीमत नहीं जानते। कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। चुनाव से पहले आचार-व्यवहार में शालीनता होती है, लेकिन बाद में गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं। किस-किसको कोसें, सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।

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प्रीति लाल।

नेहरू का भाषण सुनने दो रुपये देकर गए थे कुरुक्षेत्र
प्रीति लाल कहते हैं कि वर्ष 1948-49 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू कुरुक्षेत्र में जनसभा को संबोधित करने के लिए पहुंचे थे। मैं अलाहर गांव से बैलगाड़ी में दो रुपये किराया देकर कुरुक्षेत्र गया था। नेहरू के भाषण का छोटा सा अंश आज भी याद हैं। उन्होंने यहां शरणार्थियों को कहा था कि सरकार आटा पिसाई के लिए एक लाख रुपये प्रति माह खर्च कर रही है। क्यों न सभी परिवारों को एक-एक चक्की दे दी जाए, ताकि वे स्वयं ही आटे की पिसाई कर सकें।

अलाहर झील में शिकार को आते थे अंग्रेज
प्रीती लाल का कहना है कि अलाहर के रकबे में पश्चिमी यमुना नहर के पास झील थी। 25 दिसंबर के दिन यहां अंग्रेज शिकार करने के लिए आते थे। हम उनके साथ खेलते थे। हालांकि भाषा समझ में नहीं आती थी, लेकिन कई-कई घंटे उनके साथ बिताते थे। समय के साथ सब कुछ बदल गया। देश आजाद हुआ। आजादी के बाद शुरुआती दौर की राजनीति कुछ और थी अब मायने बदल गए।

 हर किसी को समझनी होगी वोट की कीमत
प्रीती लाल ने देशवासियों से आह्वान किया कि जितनी अच्छी सरकार होगी, उतना ही अच्छा देश होगा। सरकार ही देश को दशा और दिशा देती है। सरकार चुनने की जिम्मेदारी हम सबकी है। इसलिए वोट डालना बहुत जरूरी है। मैंने अब तक हर छोटे-बड़े चुनाव में मतदान किया है।


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