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Election 2019: हिमाचल प्रदेश के पहाड़ अंतिम चरण में मतदान के साक्षी बनेंगे, पहाड़ के मसले भी पहाड़ जैसेे

Lok Sabha Election 2019 बेशक हिमाचल प्रदेश के पहाड़ अंतिम चरण में मतदान के साक्षी बनेंगे लेकिन चुनावी चुस्ती आ रही है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 09:02 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 09:51 AM (IST)
Election 2019: हिमाचल प्रदेश के पहाड़ अंतिम चरण में मतदान के साक्षी बनेंगे, पहाड़ के मसले भी पहाड़ जैसेे
Election 2019: हिमाचल प्रदेश के पहाड़ अंतिम चरण में मतदान के साक्षी बनेंगे, पहाड़ के मसले भी पहाड़ जैसेे

शिमला, नवनीत शर्मा । बेशक हिमाचल प्रदेश के पहाड़ अंतिम चरण में मतदान के साक्षी बनेंगे, लेकिन चुनावी चुस्ती आ रही है। चुनावी चुस्ती से पहले भी पहाड़ यह कहता रहा है, ‘मैं भी मुंह में जुबान रखता हूं, काश पूछो कि मुद्दा क्या है...।’ राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे ने फिलहाल अन्य को नेपथ्य में धकेल दिया है। उस पर बहस की गुंजाइश भी नहीं।

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ऋण लेकर घी पीने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है... कर्जदार है प्रदेश। हर प्रदेश होता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के साथ कमी यह है कि संसाधन नहीं दिख रहे। जो दिखते हैं, उनका दोहन नहीं होता। वेतन- भत्ते देने के बाद रुपये में से चालीस पैसे भी विकास के लिए नहीं बचते। संसाधनों में सेब है या पर्यटन है। सेब, सड़कों और मौसम की मेहरबानी का मोहताज है, जबकि पर्यटन के नाम पर सिर्फ इमारतों से तो कुछ नहीं होता। आधारभूत सुविधाएं भी हों तो पर्यटक रुके...प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार मिले। और तो और, हिमाचल को पड़ोसी राज्यों से भी उसका हक नहीं मिला पाया है।

उसके बाद गूंजता आ रहा है उन लोगों का स्वर जिनकी जमीनें सरकारी परियोजनाओं के लिए ली गईं अथवा ली

जाएंगी। प्रदेश में भाजपा जब विपक्ष में थी तो ‘फैक्टर टू’ की बात करती थी। इसका अर्थ है कि किसी की जमीन का अधिग्रहण होने पर उसे चार गुना मुआवजा मिलेगा। अब प्रदेश की जेब का हवाला देकर उसे फैक्टर वन पर राजी होने को कहा जा रहा है। कितने ही राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित हो चुके हैं, लेकिन न काम बहुत कम हुआ है और कोढ़ में खाज है कम मुआवजा।

पौने तीन लाख की संख्या के साथ हिमाचल में कर्मचारी भी एक बड़ा दबाव समूह हैं, जिन्हें नई पेंशन स्कीम के प्रति रोष है। आवाजें उठती आ रही हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल किया जाए। इस तरफ वही प्रतिक्रिया हो रही है जो स्वाभाविक है, लेकिन मुद्दा यह है कि प्रदेश सरकार हर काम के लिए आउटसोर्सिंग मोड में आ रही है। लगभग हर विभाग में यह हो रहा है।

उदाहरण के लिए हिमाचल पथ परिवहन निगम काफी हद तक आउटसोर्स हो चुका है। चेहरों पर चिंता के भाव दिखाते युवा यही नहीं जानते कि सरकार से कितना पैसा आया और आगे कितना मिला। स्मार्ट सिटी में दो शहर शामिल हैं...! बस शहूलियत के लिए ही शामिल हैं...हुआ तो कुछ नहीं है। न राजधानी शिमला में, न दूसरी अघोषित राजधानी धर्मशाला में। दूधिया रोशनी...स्वचालित बिजली मीटर...उम्दा सड़कें... शहर को कचरे से बचाने वाली मशीनें...कागजों के भीतर कहीं दुबके पड़े हैं प्रोजेक्ट। फिर....मेडल... शहादतें...हर दूसरे घर से एक फौजी... सैन्य सेवाओं के प्रति बेहद आग्रही हिमाचल प्रदेश हर मानदंड पर खरा उतरा है, लेकिन हिमाचल रेजिमेंट तो क्या मिलती...हिमालयन रेजिमेंट भी नहीं मिली।

कभी प्रेम कुमार धूमल ने मुद्दा उठाया था उसके बाद हाल में जयराम ठाकुर सरकार ने भी विधानसभा में संकल्प प्रस्ताव लायी... पक्ष- प्रतिपक्ष ने एक स्वर में पारित किया, लेकिन आवाज पहाड़ से बाहर नहीं गई। औद्योगिक विस्तार के लिए धारा-118 के पेंच निवेशकों के लिए बड़ा पहाड़ है। हर सरकार ने इसमें संशोधन किए। प्रदेश सरकार अब निवेशकों को प्रोत्साहित करना चाहती है, लेकिन वह प्रतिपक्ष आड़े आता है जिसने अपने कार्यकाल में कई प्रावधान बदले। बेशक हर वर्ग के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं का सीधा स्पर्श कई वर्गों को मिला है लेकिन करीब दस लाख के करीब बेरोजगार भी हैं हिमाचल में, जाहिर है ये सब युवा हैं। 

 ये हैं 5 बड़े मुद्दे

 प्रदेश की तंगहाल आर्थिक स्थिति

 संसाधन के रूप में नहीं हुआ पर्यटन का दोहन

 सरकारी परियोजनाओं का चार गुणा मुआवजा

पुरानी पेंशन स्कीम

हर चीज आउटसोर्सिंग के हवाले  


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