गाजीपुर लोकसभा सीट: विकास का एजेंडा आगे बढ़ेगा या जीतेगा जातीय समीकरण
वर्तमान में गाजीपुर लोकसभा सीट से मनोज सिन्हा सांसद हैं और वह केंद्र सरकार में राज्य मंत्री हैं। मनोज सिन्हा यहां से तीन बार यहां से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।
लखनऊ [जागरण स्पेशल]। पूर्वांचल का गाजीपुर जिला लंबे समय तक पिछड़ा रहा। मनोज सिन्हा के सांसद बनने के बाद इस लोकसभा सीट के दिन बहुरे और गरीबी व पिछड़ेपन के दाग को धोने का काम किया। यहां से देश के सभी महानगरों के लिए ट्रेनों चलाई गर्इ्। यहां से चलने वाली कई ट्रेनें शुरू की गईं। गाजीपुर रेलवे स्टेशन का नवीनीकरण किया गया, जहां अब वार्इ-फाई और एलीवेटर जैसी कई सुविधाएं है।
यहां गुजरने वाले हाईवे का चौड़ीकरण किया गया। कई फ्लाईओवर बनाए गए गए। गंगा का पुल जो लंबे समय समय से लटका हुआ था उसको पूरा किया गया। यहां कई ऐसी सड़कें बनाई गईं, जो लंबे समय से बनी नहीं। यानी गाजीपुर देश कुछ ऐसा जिलों में शामिल रहा, जहां पांच साल तक विकास की गंगा बही। 2019 के चुनाव में विकास के पांच साल बनाम जातीय समीकरण होती दिख रही है।
यहां से कांग्रेस यहां से चार बार, सीपीआइ दो बार, भाजपा और सपा तीन-तीन बार जीत चुकी हैं। अब तक बसपा एक बार भी यहां का चुनाव नहीं जीत सकी है। भाजपा ने इस सीट से मनोज सिन्हा को उम्मीदवार घोषित किया है। जब कि सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट बसपा के खाते में गई है। माना जाता है कि बसपा यहां से अफजल अंसारी को चुनाव लड़ा सकती है।
परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की धरती गाजीपुर को सेना को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला जिला माना जाता है। पहली लोकसभा चुनाव से लेकर 2014 तक अपने तेवरों को लेकर विख्यात नेताओं ने ही सांसद के रूप में गाजीपुर का प्रतिनिधित्व किया है। गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद रहे विश्वनाथ सिंह गहमरी का तेवर इतिहास में दर्ज हुआ तो मनोज सिन्हा ने तीन बार जीतने के साथ गाजीपुर को देश के चर्चित जिले में उसे स्थापित किया और उसको पहचान दिलाई। 1962 में विश्वनाथ सिंह गहमरी देश की संसद में गाय के गोबर से छानकर गेहूं लेकर पहुंचे थे। इससे गाजीपुर का पिछड़ापन और गरीबी को भारत ने देखा था और पूरा देश रोया। कभी गन्ने की खेती के रूप में मशहूर रहा गाजीपुर नंदगंज में चीनी की मिल बंद होने के बाद किसानों को इस फसल का सहारा नहीं रहा। उद्योग के रूप में यह जिला सिर्फ अफीम की फैक्ट्री से जाना जाता था।
कम्युनिष्ठों का गढ़ माने जाने वाला कब समाजवादी हो गया पता ही नहीं चला। फिर समाजवादी लहर में कई साल तक साइकिल रफ्तार में चलती रही। हालांकि बीच में दो बार मनोज सिन्हा भगवा दल से चुनाव जीते और 2014 में मोदी लहर में सवार होकर तीसरी बार सदन पहुंचे। मनोज सिन्हा से पहले सपा के राधे मोहन सिंह, अफजाल अंसारी, पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सिंह गाजीपुर से चुने गए। जगदीश कुशवाहा निर्दलीय लड़कर संसद पहुंचे। जैनुल बशीर को भी जनता ने दो बार मौका दिया और संसद भेजा। भाकपा से दो बार सांसद बने सरजू पांडे ने सदन में धाक जमाई। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह रही कि 1990 के बाद कभी कम्युनिष्ट पार्टी और 1984 के बाद कभी कांग्रेस पार्टी इस सीट को नहीं जीत सकी।
ऐसा रहा राजनेताओं का चुनावी सफर
आजादी के बाद 1951 के पहले लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के हर प्रसाद सिंह ने विश्वनाथ सिंह गहमरी को हराया और वह 3376 मतों से चुनाव जीते थे। 1957 में कांग्रेस के हर प्रसाद दोबारा चुनाव जीते। लगातार दूसरी बार विश्वनाथ सिंह गहमरी को हार का मुंह देखना पड़ा। 1962 के चुनाव में इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विश्वनाथ सिंह गहमरी उतरे और सीपीआई के उम्मीदवार के रूप में हर प्रसाद सिंह उतरे। इस मुकाबले में 36863 मतों के अंतर से गहमरी विजयी रहे।
सबसे रोचक चुनाव 1967 के चुनावी अखाड़े में देखने को मिला। सरजू पांडेय ने पहली दफा सीपीआई के उम्मीदवार के रूप में जीते और पूर्व सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी के मुकाबले वह 3240 मतों के अंतर से विजयी रहे। 1971 में दूसरी बार भी सीपीआई ही विजयी रही। इस चुनाव में सीपीआर्इ नेता सरजू पांडेय को 135703 तथा श्रीनारायण सिंह को 70210 मत प्राप्त हुआ। 1977 में भारतीय लोकदल से गौरी शंकर राय सांसद चुने गए। गौरीशंकर राय कांग्रेस के जैनुल बशर को हराकर 94355 मतों से विजयी रहे। 1980 और 1984 में कांग्रेस के जैनुल बशर चुनाव जीतने में सफल रहे।
1991 में सीपीआई के विश्वनाथ शास्त्री 32294 मतों के अंतर से चुनाव हासिल की। उन्हें 191339 तथा भाजपा के मनोज सिन्हा को 159045 मत मिले। 1996 में भाजपा के मनोज सिन्हा ने पहली बार इस सीट से जीत हासिल की। उन्होंने बसपा उम्मीदवार युनूस को हराया।
1998 में समाजवादी पार्टी से ओमप्रकाश सिंह 17173 मतों के अंतर से विजयी रहे। 1999 में हुए चुनाव में भाजपा के मनोज सिन्हा फिर इस सीट पर जीत हासिल की। इस बार वह 11033 मतों के अंतर से चुनाव जीते। वर्ष 2004 के चुनाव में अफजाल अंसारी ने मनोज सिन्हा को करारी शिकस्त देते हुए 226777 मतों से पराजित किया था। यह रिकार्ड बन गया और अब तक कोई इसे तोड़ नहीं सका।
2009 में सपा से राधेमोहन सिंह तथा सपा छोड़कर बसपा प्रत्याशी पूर्व सांसद अफजाल अंसारी के बीच मुकाबला हुआ। इसमें सपा के राधेमोहन सिंह 69309 मतों के अंतर से बाजी मार गए। 2014 में भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा फिर जीते। मोदी लहर होने के बावजूद यहां पर जीत का अंतर कम रहा।
तीन बार जीत चुके हैं मनोज सिन्हा
वर्तमान में गाजीपुर लोकसभा सीट से मनोज सिन्हा सांसद हैं और वह केंद्र सरकार में राज्य मंत्री हैं। मनोज सिन्हा केंद्र सरकार में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने और उनके मंत्रिमंडल के ऐलान होने के बाद से ही मंत्री हैं। छह बार चुनावी समर में उतर चुके मनोज सिन्हा यहां से तीन बार यहां से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। 60 साल के मनोज सिन्हा ने बीएचयू सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की है।
2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज सिन्हा ने सपा की प्रत्याशी शिवकन्या कुशवाहा को 32,452 मतों के अंतर से हराया था। मनोज सिन्हा को 3,06,929 वोट मिले जबकि दूसरे स्थान पर रहीं शिवकन्या को 2,74,477 (27.82 फीसदी) वोट मिले। वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा के राधे मोहन सिंह ने बसपा के अफजल अंसारी को हराया था। अफजल अंसारी ने 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और विजयी रहे थे।
अब तक गाजीपुर का इन्होंने किया प्रतिनिधित्व
वर्ष उम्मीदवार पार्टी
2014 मनोज सिन्हा भाजपा
2009 राधे मोहन सिंह सपा
2004 अफज़ल अंसारी सपा
1999 मनोज सिन्हा भाजपा
1998 ओमप्रकाश सिंह सपा
1996 मनोज सिन्हा भाजपा
1991 विश्वनाथ शास्त्री सीपीआइ
1989 जगदीश कुशवाहा निर्दलीय
1984 ज़ैनुल बशीर कांग्रेस
1980 जैनुल बशर कांग्रेस
1977 गौरी शंकर राय लोक दल
1971 सरजू पांडे सीपीआइ
1967 सरजू पांडेय सीपीआइ
1957 हर प्रसाद सिंह कांग्रेस
1952 हर प्रसाद सिंह कांग्रेस