LokSabha Election 2019: गमछा और राजनीति का साथ बरकरार
मौसम और वैरायटी के मुताबिक गमछे के कलेवर बदले लेकिन तेवर पहले जैसे ही जलवेदार हैं।
बाराबंकी, [जगदीप शुक्ल]। चुनाव की बात हो और गमछे का जिक्रन हो तो राजनीति अधूरी रह जाती है। हो भी क्यों न सियासत में आए तमाम बदलावों बावजूद जिसका अब तक साथ कायम है वह गमछा ही है। कुर्ते पायजामे भले ही सफेद हों, लेकिन गले में पड़े गमछे का रंग ही नेताजी की पार्टी का पता बताता है। गांव की पंचायत चुननी हो या फिर सूबे और देश की पंचायत के रहनुमाओं का चुनाव हो, गमछे का क्रेज अब तक बरकरार है। यह बात अलग है कि सियासी बदलाव के लिहाज से सफेद गमछे में हरा, तिरंगा और अन्य रंग की किनारी रही है और कभी पूरा गमछा ही भगवा रंग में ही रंगा नजर आया, लेकिन गमछे की पसंद में साल दर साल बढ़ोतरी ही हुई। मौसम और वैरायटी के मुताबिक गमछे के कलेवर बदले, लेकिन तेवर पहले जैसे ही जलवेदार हैं।
इस बार शॉल वाले गमछे की मांग
बाराबंकी में गमछा बनाए जाने का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। यहां के गमछे की आपूर्ति सूबे के विभिन्न जनपदों के अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली और उत्तराखंड सहित कई अन्य राज्यों को की जाती है। इसका कारोबार करने वाले जुनैद अंसारी बताते हैं कि इस बार जिले में कांग्रेस और सपा की किनारी वाले व भगवा की मांग है। इसमें सबसे ज्यादा बिक्री भगवा गमछे की हुई है। मप्र और राजस्थान से करीब 40 हजार सिल्क के गमछों का आर्डर मिला है। इसे महिलाएं भी प्रयोग में लाती हैं। बुनकर गुलाम हुसैन और उस्मान बताते हैं कि इस समय चार-पांच गुना ज्यादा बिक्री हो रही है।
खादी, ऊनी और सिल्क का क्रेज
सियासत में गमछों की वैरायटी की मौसम के मुताबिक पसंद बदलती रही है। जाड़े के दौरान चुनाव होने पर जहां खादी और ऊनी गमछे प्रचार टीम की पसंद बने, वहीं गर्मी और अन्य मौसम में सूती, खादी व सिल्क की बहार रही।
क्या कहते हैं वर्कर
- केसी श्रीवास्तव का कहना है कि ऊनी गमछा जहां ठंडक से बचाव करने के काम आता वहीं गर्मी में सूती, खादी और सिल्क का गमछा रहता देता है।
- कमल भल्ला का कहना है कि यह रास्ते में नहाने और आराम करने में भी मददगार साबित होता है। इसलिए यह हर मौसम का साथी है।