पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी बोले, विश्व की सर्वाधिक पारदर्शी विश्वसनीय निर्वाचन प्रणाली भारत में
एसवाई कुरैशी का मानना है कि अब वह समय है कि भारत में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव निश्चित समझा जाता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी का मानना है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र है- यह सर्वविदित है। लेकिन एक बात जो कम ही लोगों को पता है वह यह है कि भारत के हरेक ढांचे में गणतंत्र की आत्मा रची-बसी है। भारत में क्लासिकल एथेंस (508-322 ईपू) तथा रोमन रिपब्लिक (509 ई.-27 ईपू) जैसे विश्व के विख्यात प्राचीनतम गणतंत्रों से पहले भी गणतंत्र की परंपराएं विद्यमान थी। कुरैशी का कहना है कि भारत के बारे में सोचते ही दो शब्द जेहन में आते हैं - प्रजातंत्र तथा गणतंत्र।
2015 में एक वक्तव्य में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा था कि जब से भारतवर्ष एक महान संविधान का अंगीकार करके सार्वभौमिक मताधिकार वाला एक लोकतांत्रिक गणतंत्र बना है, तब से जीवंत निर्वाचन प्रणाली वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था भारत की सर्वाधिक सहनशील एवं भाई-चारे की प्रवृत्ति का परिचायक रही है। विकसित राष्ट्रों द्वारा इसे ‘मूर्खतापूर्ण पहल’ की संज्ञा दी गई। उनकी आशंकाएं उस समय विद्यमान वास्तविकताओं पर आधारित थीं। उस समय यहां असमानता, विभाजित जाति आधारित पदानुक्रमी समाज विद्यमान था, जिसमें 84 प्रतिशत अशिक्षित थे व गरीबी की पराकाष्ठा झेल रहे थे। वे अपना शासन संचालन करने में कहां से समर्थ हो सकते थे?
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भारत ने ऐसे समय में प्रजातंत्र को अपनाया जैसे कोई मछली जल का ही आसरा करती है। कुरैशी मानें तो आजादी तथा प्रजातंत्र के इस नए माहौल में स्वयं को ढालते हुए भारत ने नोबल पुरस्कार विजेता के उस प्रसिद्ध कथन को चरितार्थ किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘कोई भी राष्ट्र प्रजातंत्र के लिए अनुकूल नहीं बनता है, बल्कि प्रजातंत्र के माध्यम से अनुकूल बनता है।’
उनके अनुसार मई, 2014 में संपन्न 16वां आम चुनाव विश्व के इतिहास में सबसे बड़ा चुनाव था। 83 करोड़ वोटरों में से 53 करोड़ ने 18 लाख ईवीएम के माध्यम से मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। आकार की दृष्टि से, भारत में मतदाताओं की संख्या किसी भी महादेश के कुल मतदाताओं की संख्या से अधिक है। वास्तव में इसमें 90 देशों का समावेश है, न सिर्फ संख्या के मामले में वरन विविधताओं के संदर्भ में भी। 2009 की तुलना में 2014 में 11 करोड़ से अधिक मतदाताओं की वृद्धि हुई।
मतदाताओं की संख्या के संदर्भ में यह, यह एक संपूर्ण पाकिस्तान या दक्षिण अफ्रीका तथा दक्षिण कोरिया संयुक्त रूप से, या तीन कनाडा, या चार आस्ट्रेलिया या 10 पुर्तगाल या 20 फिनलैंड को एक साथ शामिल करने के बराबर है। उनका मानना है कि चुनाव निश्चित रूप से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हो सकते हैं, यदि ये समावेशी प्रकृति, सामाजिक रूप से न्यायसंगत तथा सहयोगात्मक हों। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के इतिहास में, मतदाताओं की मतदान केंद्रों पर उपस्थिति लगभग 55 से 60 प्रतिशत के बीच ही रही है, जो निश्चित रूप से भारत के निर्वाचन आयोग की उम्मीदों से काफी कम है। इस समस्या के निराकरण को भारत निर्वाचन आयोग ने ‘व्यवस्थित मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचनीय भागीदारी’ (एसवीईईपी) की स्थापना की।
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भारतीय लोकतंत्र के लिए विलक्षण मशीन:
नवंबर, 1998 से संसद एवं विधान मंडलों के सभी चुनावों में ईवीएम का प्रयोग किया जाता रहा है। इससे मतों की गिनती करने, इसे तेजी से, शांतिपूर्वक निष्पादित करने और अवैध मत मुक्त बनाने के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। मत गिनती के दिन होने वाले झगड़ा झंझटों एवं तनावों से अब निजात मिल गई है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक विलक्षण मशीन साबित हुई है। ईवीएम में नित्य नए अपग्रेडेशेन हो रहे हैं। नवीनतम परिवर्तन वीवीपीएटी को इसमें जोड़ा गया है। यह मतदाता को सत्यापित कराता है कि उसने सही तरीके से अपना मत डाल दिया है तथा यह उसे स्टोर किए गए इलेक्ट्रॉनिक परिणामों की जांच करने का साधन भी प्रदान करता है।
अब हमारे पास विश्व का सर्वाधिक पारदर्शी विश्वसनीय निर्वाचन प्रणाली है। भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा इस विशाल कार्य को निष्पादित करने के तरीके को चार हॉलमार्क परिलक्षित करते हैं -स्वतंत्रता, पारदर्शिता, निष्पक्षता तथा व्यावसायिकता। यह आयोग में जनता के पूर्ण विश्वास को सुनिश्चित करता है। अब वह समय है कि भारत में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव निश्चित समझा जाता है।
भारतीय निर्वाचन आयोग की सफलता के रहस्यों में इसका नए विचारों को अपनाने के लिए इसकी ओर मुखातिब होना और अपनी गलतियों एवं उपलब्धि से सीख लेना है। उत्कृष्ट उपलब्धि प्राप्त करने की दिशा में निर्वाचन आयोग के प्रयास जारी रहने चाहिए। इस बात को महसूस करते हुए विश्व के अनेक महत्वाकांक्षी देश भारतीय निर्वाचन आयोग के निस्तारण पर जानकारी, कौशल एवं विशेषज्ञता को साझा करने की अपेक्षा रखते हैं।
आयोग ने भारतीय अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र तथा चुनाव प्रबंधन संस्थान की स्थापना राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय दोनों भागीदारों के लिए निर्वाचन एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का एक प्रशिक्षण तथा संसाधन केंद्र के रूप में की। इस संस्थान ने मात्र तीन वर्ष की अवधि के दौरान ही हजारों मास्टर घरेलू प्रशिक्षकों के अलावा पचास से अधिक अफ्रीका- एशिया तथा राष्ट्रमंडल देशों के चुनाव प्रबंधकों को प्रशिक्षण प्रदान किया है।