2014 के आम चुनाव में यूपी की इस सीट पर पहली बार खिला था कमल, सपा के लिए भी साख का सवाल
भाजपा ने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल को मैदान में उतारा है। सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में है।
फूलपुर, अवधेश पाण्डेय। प्रयागराज, उप्र का फूलपुर क्षेत्र। तीन बार पं. जवाहरलाल नेहरू ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। उपचुनाव को छोड़ दें तो छह बार कांग्रेस के खाते में यह सीट रही। सपा की दाल भी चार बार गली। बसपा के भी भाग्य का सितारा एक बार चमका। भाजपा के लिए हमेशा दूर की कौड़ी रही इस सीट पर 2014 के आम चुनाव में पहली बार कमल खिला। मोदी लहर पर सवार भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य ने रिकॉर्ड वोट से जीत दर्ज की, लेकिन 2017 के उपचुनाव में सीट सपा की झोली में चली गई। अब जहां सपा के सामने सीट बचाने की चुनौती है तो वहीं भाजपा के पास हार का बदला लेने का मौका। इन्हीं समीकरणों में कांग्रेस ने भी नया गुल खिलाने के लिए नए पासे फेंके हैं।
भाजपा ने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल को मैदान में उतारा है। सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में है। सपा ने उपचुनाव में जीते नागेंद्र सिंह पटेल का टिकट काटकर पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष रहे पंधारी यादव पर दाव लगाया है। कांग्रेस ने अपना दल (कृष्णा गुट) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल के दामाद पंकज निरंजन को प्रत्याशी बनाया है। वोटरों के बीच जाने पर कुछ स्थानों पर विकास की बात सुनाई जरूर देती है, लेकिन ज्यादातर स्थानों पर जातियों का ही हिसाब किताब लग रहा है। इसी समीकरण को देखते हुए कुर्मी बहुल इस सीट पर भाजपा ने केशरी देवी पटेल को उतारा तो कांग्रेस ने कृष्णा पटेल से हाथ मिलाकर उनके दामाद को उम्मीदवार बनाकर पेंच फंसा दिया। ऐसे में पटेल वोटों में बिखराव तय माना जा रहा है।
उधर, सपा ने कुर्मी बिरादरी का वोट बंटते देख नया दाव खेल दिया। उपचुनाव में जीते अपने सांसद नागेंद्र सिंह पटेल को टिकट न देकर पंधारी यादव को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया। संसदीय क्षेत्र के दौरे में मिलता है कि यहां वोटर चुप नहीं है। वह खुलकर बोल रहा है कि सियासी हवा का रुख क्या है। मऊआइमा कस्बे में संतोष कुमार मौर्य की चाय की दुकान पर बैठकी में जीत हार का गणित लग रहा है, लेकिन उनकी चर्चा के केंद्र में जाति ही हावी है। संतोष का मानना है कि हवा मोदी की चल रही है। पटेल वोट के बिखराव की कमी तीन लाख ब्राह्मण वोटर पूरा करेंगे। आखिर वे और जाएंगे कहां। इसकी पुष्टि शिवकुमार करते भी हैं।
उपचुनाव में भाजपा की हार पर संतोष बताते हैं कि साल भर के लिए ही था वह चुनाव। मुहम्मद रफीक और रामधन महज सड़क बन जाने को विकास नहीं मानते। हार जीत में जाति फैक्टर को वे प्रमुख मानते हैं। कहते हैं कि याद कीजिए 2014 के आम चुनाव और 2017 के उपचुनाव के परिणाम को। केशव तीन लाख वोटों से जीते थे, लेकिन उपचुनाव में भाजपा हार गई न। रफीक कहते हैं कि भाजपा सबके साथ सबके विकास की बात करती है, लेकिन कितने मुसलमानों को टिकट दिया है। कहते हैं कि गठबंधन मजूबत लड़ रहा है। मजबूती का आधार सीधे तौर पर करीब ढाई लाख मुस्लिम और तीन लाख यादव वोटर को बताते हैं। मोनू मौर्या कहते हैं- राष्ट्र की सुरक्षा के लिए मोदी ने बड़े काम किए हैं। पढ़ा नहीं क्या अखबार में- क्या हुआ अजहर मसूद का। इसीलिए सब मोदी से ही लड़ रहे हैं।
संसदीय सीट के उत्तर में जिले के बार्डर से सटा गांव है घीनपुर। यहां विकास कार्यों की चर्चा तो है, लेकिन बताते हैं कि चुनाव जातीय समीकरण पर टिका है। रामकुमार पाण्डेय, बद्रीप्रसाद मौर्य विकास के नाम पर बनी नई सड़क और खंबे पर जल रही लाइट दिखाते हैं, लेकिन कहते हैं जातिवादी वोटरों को यह नहीं दिखाई देता।
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