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LokSabha Election 2019: चेले की चुनाैती से गुरुजी चिंतित, बेटे को पराजित कर दिखा चुका है चमत्कार

2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा से प्रत्याशी सुनील सोरेन 2005 में जामा से पहली बार विधायक बने। उन्होंने अपने गुरु के सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन को हराकर पहली बार विधायक बने थे।

By Edited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 03:11 PM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 01:46 PM (IST)
LokSabha Election 2019: चेले की चुनाैती से गुरुजी चिंतित, बेटे को पराजित कर दिखा चुका है चमत्कार
LokSabha Election 2019: चेले की चुनाैती से गुरुजी चिंतित, बेटे को पराजित कर दिखा चुका है चमत्कार

दुमका, जेएनएन। झारखंड की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट दुमका पर कब्जे को लेकर अबकी दिलचस्प लड़ाई होगी। दिशोम गुरु के नाम से मशहूर झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख शिबू सोरेन को चुनाैती देने के लिए भाजपा ने एक बार फिर चुनावी अखाड़ में सुनील सोरेन को उतारा है। इससे झामुमो खेमे में बेचैनी है। दरअसल, सुनील सोरेन ने राजनीतिक यात्रा झामुमो में रहकर ही शुरू की थी। वह झामुमो के दर दांव-पेंच को जानते हैं। 2005 के विधानसभा चुनाव में झामुमो प्रमुख सोरेन के बेटे दुर्गा सोरेन को जामा विधानसभा क्षेत्र में पराजित कर राजनीतिक चमत्कार कर डाला था। अब सुनील सोरेन अपने राजनीतिक गुरु शिबू सोरेन को चुनाैती दे रहे हैं। 

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दुमका लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन कभी गुरुजी शिबू सोरेन के शार्गिद हुआ करते थे। वे 2005 में जामा से पहली बार विधायक बने। उन्होंने अपने गुरु के सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन को हराकर पहली बार विधायक बने थे। अब लोकसभा चुनाव में तीसरी बार वे अपने ही गुरु शिबू सोरेन को मात देने की तैयारी में हैं। शिबू भी चेले को तीसरी बार मात देने के लिए तैयार हैं। झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अगुवा रहे शिबू सोरेन के संघर्ष ने सुनील के दिल में राज्य के लिए कुछ अलग करने की तमन्ना संजोयी और वही गुरुजी सानिध्य में झामुमो में शामिल हो गए।

सुनील को गुरुजी के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन ने अपनी कोर टीम का सदस्य बनाया। 2000 के विधानसभा चुनाव में दुर्गा सोरेन को जामा से विधायक बनाने के लिए अहम भूमिका ही निभाई उन्हें विधायक तक बनवा दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में दुर्गा से मतभेद के बाद उन्होंने झामुमो से किनारा कर लिया। 2005 में भाजपा ने उन्हें भाजपा का टिकट दुर्गा सोरेन के खिलाफ मैदान में उतारा। दुर्गा को 6630 वोट से हराकर जामा के विधायक बने। इसके बाद सुनील भाजपा के होकर ही रह गए। वर्ष 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव में अपने ही गुरु शिबू सोरेन के खिलाफ मैदान में उतरे और कड़ी टक्कर दी, लेकिन सांसद बनने का सपना सच नहीं हो सका। अब तीसरी बार गुरु को हराने के लिए मैदान में उतर गए।

अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित यह सीट झामुमो का गढ़ माना जाता है। इस सीट से लगातार शिबू सोरेन जीतते रहे है। संताल में झामुमो की जमीनी पकड़ काफी मजबूत है। भाजपा समेत कई राजनीतिक दल इस गढ़ में सेंधमारी के लिए पिछले कई वर्षो से जुटे हुए हैं, लेकिन अभी तक इसमें कामयाब नहीं हो सके। यहां बता दें कि सुनील सोरेन भाजपा के संताल में ऐसे पहले चेहरा हैं जो परिवार के गढ़ जामा में 2005 के विधानसभा चुनाव में दुर्गा सोरेन को पराजित कर विधायक बने थे।

दुर्गा सोरेन झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरन के बड़े पुत्र थे। 2009 के चुनाव में सुनील सोरेन महज 18, 812 मतों से शिबू सोरेन से चुनाव हार गए थे। जबकि 2014 में मोदी लहर के बावजूद महज लगभग 39 हजार मतों से पराजित हुए थे। दोनों चुनाव में अपने से बड़े कद के नेता माने जाने वाले शिबू सोरेन को कड़ी टक्कर दी थी। पार्टी के भितरघात की वजह से ही सुनील को 2009 व 2014 में शिकस्त का सामना करना पड़ा। इस बार अगर भाजपा संगठन पूरे जोर शोर से इनके पक्ष में अडिग रहा तो तस्वीर बदल सकती है। हालांकि सुनील शिबू सोरेन की बजाय स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी को ही अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं।

नए वोटर विकास को दे रहे तरजीह दुमका संसदीय सीट पर इस बार काफी नए वोटर जुड़े हैं। युवाओं में विकास को लेकर बेचैनी दिख रही है। वे अपने क्षेत्र के सर्वागीण विकास को लेकर उत्साहित है। वे चाहते है कि परम्परा से हटकर नए प्रत्याशी को मौका दिया जाना चाहिए। वहीं परंपरागत वोटरों का मानना है कि पुराने प्रत्याशी ने पूरे सूबे को प्रतिष्ठा दिलायी है। अलग राज्य के निर्माण में उनका सर्वाधिक योगदान है। इसलिए ताउम्र उन्हें सम्मान मिलना चाहिए।

सारठ व जामताड़ा में सबसे अधिक मतदाता दुमका संसदीय सीट में छह विधानसभा शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, नाला, जामताड़ा व सारठ है। इन छह विधानसभा क्षेत्रों में तीन अजजा के लिए सुरक्षित है अन्य तीन सामान्य विधानसभा क्षेत्र है। इन संसदीय सीट में कुल 13,65, 256 मतदाता हैं। जिसमें पुरूष 7,01, 511 व महिला मतदाता 6,63, 742 है। इसमें सर्वाधिक मतदाता जामताड़ा व सारठ विधानसभा क्षेत्र में हैं। माना जाता है कि यही दो विधानसभा क्षेत्र हार व जीत तय करेगी।


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