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Loksabha Election पर बोले अरुण जेटली, यह चुनाव सबल नेतृत्व और अराजकता के बीच है

दैनिक जागरण के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र और राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से बातचीत में अरुण जेटली ने कहा कि यह सबल नेतृत्व और अराजकता के बीच का चुनाव है

By TaniskEdited By: Published: Sun, 10 Mar 2019 12:03 PM (IST)Updated: Sun, 10 Mar 2019 12:03 PM (IST)
Loksabha Election पर बोले अरुण जेटली, यह चुनाव सबल नेतृत्व और अराजकता के बीच है
Loksabha Election पर बोले अरुण जेटली, यह चुनाव सबल नेतृत्व और अराजकता के बीच है

नई दिल्ली। कृष्णामेनन मार्ग स्थित अरुण जेटली के बंगले पर खास लोगों की भीड़ है। अधिकतर उनसे वर्तमान राजनीति पर राय मशविरा करने आए हैं, कुछ मार्गदर्शन लेने आए हैं। उनसे फुर्सत पाने के बाद वह हमसे रूबरू होते हैं तो बात यहीं से शुरू होती है कि राजनीति बहुत गर्म है। विभिन्न दलों के बीच ही नहीं, आम जनता में भी अटकलों का तेज दौर चल रहा है कि अबकी बार क्या..।

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क्या एक बार फिर मोदी सरकार या फिर विपक्ष की बारी आने वाली है? तीन दशक बाद भारतीय इतिहास में जो बहुमत आया था क्या वह फिर से होगा या फिर गठबंधन में छोटे और क्षेत्रीय दलों का बोलबाला होगा? गठबंधन भारतीय राजनीति में मजबूरी बनने वाला है या फिर ऐसा विकल्प जिसमें हर क्षेत्र के विकास का रास्ता खुले लेकिन दबाव न हो? भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है और विपक्ष की ओर से भाजपा की हार का दावा ठोका जा रहा है।

ऐसे में भाजपा के शीर्ष नेता व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ऐसी बहस का सीधा जवाब देते हैं, ‘देश में माहौल मोदी के पक्ष में है। जनता नेतृत्व को देख रही है और विपक्ष में न तो चेहरा है और न ही नीयत।’दैनिक जागरण के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र और राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से बातचीत में वह साफ साफ कहते हैं, ‘यह सबल नेतृत्व और अराजकता के बीच का चुनाव है और हम बहुमत से आएंगे।’ प्रस्तुत है उनके साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश: 

लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है। भाजपा कितनी तैयार है? 
भारतीय जनता पार्टी पूर्ण रूप से चुनाव के लिए तैयार है। हम तो यह मानकर चुनाव में उतर रहे हैं कि जनता को सबल नेतृत्व चाहिए, ऐसी सरकार चाहिए जो उनके लिए काम करे। उनकी सोच को प्रशासन का आधार बनाए। प्रधानममंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने यह सब कर दिखाया है। अपने वादों को पूरा किया है और भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर समानता के साथ खड़ा होने लायक बनाया है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए नेतृत्व ही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है?
बहुत बड़ा मुद्दा है। आखिर जनता को यह तो तय करना ही है कि कौन उनकी और देश की रक्षा कर सकता है। इस चुनाव को कई विषय प्रभावित करेंगे। पहला  विषय है नेतृत्व। मोदी जी का नेतृत्व, उनका प्रदर्शन, उनकी विश्वसनीयता में जनता को कितना भरोसा है, यह चुनाव इसकी स्वीकृति होगा। एक ऐसा नेतृत्व जिसमें  फैसले लेने की क्षमता हो, क्रियान्वयन दुरुस्त करवाने की योग्यता हो और ईमानदारी हो। सबल नेतृत्व के लिए ये तीनों गुण जरूरी होते हैं। गुजरात में 14 वर्ष मुख्यमंत्री के रूप में, पांच वर्ष एक परफॉरमिंग प्रधानमंत्री के रूप में जनता ने उनके इस गुण को देखा है।

मैं मानता हूं कि इस देश ने सत्ता विरोधी लहर तो बहुत देखी हैं, पहली बार प्रो इंकमबेंसी यानी सत्ता के पक्ष में लहर का नमूना देखेगी। पांच साल के कार्यकाल के बाद नेतृत्व और सरकार की लोकप्रियता घटती है और विपक्ष कई बार डिफॉल्ट से जीत जाता है। लेकिन आज पांच साल बाद विपक्ष चिंता में है। उन्हें पता है कि सभी अंतर्विरोधी दल इकट्ठे भी हो जाएं तो भी नरेंद्र मोदी का सामना नहीं कर सकते। उनकी घबराहट देखिए। पूरा देश देख रहा है कि किस तरह ये दल छटपटा रहे हैं। अपनी मजबूती दिखाने का खम ठोकते हैं।

फ्रंट  फुट पर खेलने का दिखावा करते हैं और फिर घबराकर एक दूसरे का हाथ थाम कर खड़े हो जाते हैं।इसलिए यह प्रो इंकमबेंसी कैंपेन होगा।  दूसरा, पांच वर्षों का मोदी जी का प्रदर्शन। हमने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। दुनिया की सबसे तेज गति से चलने वाली अर्थव्यवस्था बनाई, सरकार का राजस्व बढ़ाया। कांग्रेस ने आज तक केवल नारे दिए थे। गरीब को साधन देने का काम इस सरकार ने किया है और भारत की पहचान विश्व में बनी है। एक बड़ा  विषय जो हमेशा इस देश के लिए प्रमुख था वह राष्ट्रीय सुरक्षा था। मोदी सरकार ने पुरानी पारंपरिक विचारधारा ‘आतंक से लड़ना है तो रक्षात्मक रहो को त्याग दिया।

आतंकवादी जब मारने की कोशिश करें तो अपनी इंटेलिजेंस एजेंसी के माध्यम से उसकी पहचान करो और उसको खत्म करो। मोदी जी ने पुरानी, अप्रासंगिक सोच को त्यागकर नई सोच दिखाई और देश ने उसका समर्थन किया। आप सौ बार आतंकी को ढूंढ लोगे और देश को बचा लोगे। विचारधारा से मतांध होकर आतंकी तो कफन बांधकर निकले हैं और एकाध बार वह भी सफल हो सकते हैं। तो क्या ऐसे ही चले चलेंगे। हमने इस सोच को बदला और तय किया कि जहां आतंक की जड़ है हम वहां पहुंचेंगे और आतंक को वहां जाकर मारेंगे। आतंकी या कोई दूसरी शक्ति रोज एलओसी तोड़ेंगे, रोज इंटरनेशनल बॉर्डर की पवित्रता को तोड़ेंगे और हम बस रक्षात्मक रहें यह पुरातन सोच थी। भारत में वही क्षमता है जो इजराइल में दिखती है और अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के खात्मे के समय पर दिखाई थी। भारत ने खुद को साबित किया है। 

2014 के मुकाबले 2019 का चुनाव कितना अलग होगा?
देखिए 2014 का चुनाव एक आक्रोश का चुनाव था, एक भ्रष्ट शासन के खिलाफ, एक कमजोर नेतृत्व के खिलाफ एक भ्रष्ट शासक के खिलाफ। जनता को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उम्मीद थी और लोग सकारात्मक बदला के लिए सामने आए थे। लेकिन 2019 का चुनाव सकारात्मक सोच का है। इसमें नकारात्मकता नहीं है। जनता ने पांच साल एक ईमानदार, प्रदर्शन करने वाली सरकार को देखा है।

मोदी जी ने और भारतीय जनता पार्टी ने यह साबित कर दिया कि इस देश में ईमानदारी  के साथ सरकारें चल सकती हैं। यह कहा जाना कि भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग सकती, गलत है। इच्छाशक्ति हो तो लगाम लगाई जा सकती है। जनता ने यह जाना है कि गरीबी की दशा से बाहर निकालकर एक सरकार देश को आगे ले जा रही है। इस चुनाव में कहीं गुस्सा नहीं है।

यह उम्मीद का चुनाव है। हां, जनता के दिमाग में यह भी है कि सरकार पांच वर्ष के लिए चुन रहे हैं या छह महीने की सरकार चुन रहे हैं? यह जो अंतर्विरोधी गठबंधन होते हैं ये कभी छह महीने से ज्यादा चले नहीं। देश में चौधरी चरण सिंह जी, चंद्रशेखर जी, वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा और आइके गुजराल, पांचों अनुभव ऐसे हैं जहां अंतर्विरोध और लीडरशिप को  लेकर झगड़ा और संघर्ष रहा। लोगों ने इसे देखा है और जाना है कि अस्थाई सरकार का क्या परिणाम होता है। लिहाजा 2019 का चुनाव सबल नेतृत्व और  अराजकता के बीच चुनाव का भी काल है। जनता सकारात्मक है।


आप हमेशा से भाजपा का चुनाव प्रचार देखते रहे हैं। इस बार भी कैंपेन कमेटी के अध्यक्ष हैं। विपक्ष में रहते हुए चुनाव सामग्री तैयार करना आसान होता है या सरकार में रहते हुए?
सामान्यतया विपक्ष में रहते हुए यह सरल होता है अगर सत्ता में अलोकप्रिय सरकार हो। क्योंकि फिर तो बस जो जनभावना है उसे उभारना होता है। जो गुस्सा है उसे हवा देना होता है। सरकार गिर जाएगी और आप बाइ डिफाल्ट जीत जाएंगे। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हम अभी सत्ता में हैं तो हमारे लिए कोई मुश्किल है या विपक्ष के लिए आसान है।

अगर सरकार लोकप्रिय है, वह जनता की भावनाओं के अनुसार काम कर रही है, एक प्रो इंकमबैंसी (सत्ता के पक्ष में लहर) है तो उसे ही याद दिलाना पड़ता है। नेतृत्व के गुण सामने रखने होते हैं। मैंने कहा कि यह सकारात्मकता का चुनाव है। छोटे में कहें तो जनता को नेतृत्व पर भरोसा होना चाहिए, एक अपनत्व होना चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि नेतृत्व उनकी भावना को समझ रहा है।

नेतृत्व का कामकाज जनता की भावना और जरूरत के अनुरूप होना चाहिए। और सबसे बड़ी बात कि जनता को भरोसा होना चाहिए कि उक्त नेतृत्व की छाया में भविष्य सुरक्षित है। भाजपा के वर्तमान नेतृत्व पर ये बातें खरी उतरती हैं। दूसरी तरफ नेतृत्व को लेकर ही संशय है। ऐसे में हमारे लिए आज भी कोई परेशानी नहीं है।


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