Lok Sabha Election 2019 : सिंहभूम संसदीय सीट : सियासी जमीन सहेजने और काबिज होने की जद्दोजहद; GROUND REPORT
Lok Sabha Election 2019. भाजपा के लिए यहां सियासी जमीन सहेजने की चुनौती है तो महागठबंधन इस जमीन पर काबिज होने को आतुर है।
चाईबासा, आनंद मिश्र। सिंहभूम में सियासी जमीन सहेजकर रखने और उस पर काबिज होने की जद्दोजहद ने चुनाव के तीखेपन को बढ़ा दिया है। भाजपा के लिए यहां सियासी जमीन सहेजने की चुनौती है तो महागठबंधन इस जमीन पर काबिज होने को आतुर है। जंग भी जमीन पर ही छिड़ी है। सरकार की तमाम उपलब्धियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यहां आकर यह कहना पड़ रहा है कोई माई का लाल आदिवासियों से उनकी जमीन नहीं छीन सकता। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यहां जमीन के मुद्दे पर ही सरकार को ललकारा। जमीन की इस लड़ाई में भाजपा और महागठबंधन आमने-सामने हैं। लक्ष्मण गिलुवा और गीता कोड़ा सिंबल के रूप में पिछली कतार में खड़े हैं।
सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में मुद्दे तमाम हैं। लौह अयस्क खदानें बंद पड़ी हैं, जिसका सीधा असर रोजगार पर पड़ा है। सिंचाई योजनाएं अधूरी पड़ी हैं, जिससे खेती प्रभावित हो रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन जैसी तमाम समस्याएं हैं लेकिन इन मुद्दों पर जल, जंगल, जमीन भारी पड़ता दिखाई देता है। झींकपानी की जोड़ापोखर पंचायत के पूर्व मुखिया गार्दी मुंडा से हमारी मुलाकात यहां हाट में होती है। चर्चा छेडऩे पर कहते हैं कि हम लोग जंग, जंगल जमीन की बात करते हैं लेकिन इसकी रक्षा के लिए कुछ नहीं करते। क्षेत्र में जंगल अंधाधुंध काटे जा रहे हैं, इन्हें बचाने की जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा है। हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाएंगे। हाईकुइयम के पास डैम बनना है, लेकिन गांव वाले वहां पर जमीन नहीं दे रहे हैं। डैम नहीं बना तो सिंचाई कहां से होगी। जमीन तो बचेगी लेकिन पानी नहीं होगा। गार्दी मुंडा हमें यह सवाल थमा कर चले गए। लेकिन सब लोग गार्दी मुंडा जैसा नहीं सोचते हैं। खूंटपानी लतरसिका गांव के पूर्व सैनिक लॉरेंस सुंडी जैसे लोग भी कहते हैं कि आदिवासियों की जमीन छीनकर पूंजीपतियों को दी जाएगी, इससे लोग डरे हुए हैं। किसको अब तक जमीन छीनकर दी गई इस सवाल का जवाब उनके पास भी नहीं है। जाहिर है, यह मुद्दा वास्तविक कम और चुनावी ज्यादा है।
मोदी फैक्टर प्रभावी लेकिन आसान नहीं गिलुवा की राह
सिंहभूम संसदीय सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा खुद चुनाव मैदान में हैं। जाहिर है इस सीट से भाजपा की प्रतिष्ठा जुड़ी है। यहां भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विजय संकल्प रैली से बने मूड-माहौल को भुनाने में जुटी है। आखिरी दौर में पार्टी ने पूरी ताकत भी झोंक दी है। मोदी फैक्टर यहां भी प्रभावी है बावजूद इसके गिलुवा की राह बहुत आसान नहीं दिखती। महागठबंधन के दलों के एक साथ आने से भाजपा की मुश्किले बढ़ी हैं। सिंहभूम की छह में से पांच विधानसभा सीटों पर झामुमो काबिज है और एक से गीता कोड़ा खुद विधायक हैं। हालांकि, यहां महागठबंधन में अभी भी गांठे हैं और भाजपा को इन्हीं गांठों से आस।
चुनावी समीकरण : विधानसभावार किलेबंदी
सरायकेला : सरायकेला में भाजपा की किलेबंदी मजबूत दिखती है। पिछले संसदीय चुनाव में भी यहां से भाजपा को बढ़त मिली थी। भाजपा का तंत्र यहां खासा सक्रिय है। लेकिन महागठबंधन इस किलेबंदी में सेंध लगाने में जुटा है। हालांकि यहां से झामुमो विधायक चंपई सोरेन के जमशेदपुर से चुनाव लडऩे के कारण झामुमो की टीम टाटा शिफ्ट हो गई है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोड़ा ने खुद मोर्चा संभाल रखा है।
चक्रधरपुर : भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा का गृहक्षेत्र है। यहां जनता से उनका रिश्ता टूटा नहीं है। चक्रधरपुर में गिलुवा की पहल से कई बड़े काम भी हुए हैं। ओवरब्रिज जैसी बरसों पुरानी मांग उनके कार्यकाल में ही पूरी हुई है। यहां महागठबंधन का कुनबा बड़ा है लेकिन गीता कोड़ा अपने कुनबे को पूरी तरह सहेज नहीं पा रही हैं।
मनोहरपुर : मनोहरपुर विधानसभा में गीता कोड़ा को झामुमो विधायक जोबा मांझी का पूरा साथ मिल रहा है। जोबा मांझी की क्षेत्र में पकड़ है, जिसका लाभ महागठबंधन को मिल सकता है। यहां भाजपा ने अपनी कोर टीम को कमान सौंपी है, टीम पसीना भी बहा रही है।
मझगांव : यहां से झामुमो विधायक निरल पूर्ति विधायक हैं लेकिन उनकी सक्रियता अपेक्षाकृत उतनी नहीं दिख रही जितनी गठबंधन को उम्मीद थी। मधु कोड़ा पिछले चुनाव मे इसी विधानसभा से चुनाव लड़े थे और वे इसी क्षेत्र में अपने बूते सियासी समीकरण दुरुस्त कर रहे हैं। भाजपा यहां प्रचार के मामले में महागठबंधन से आगे दिख रही है।
जगन्नाथपुर : जगन्नाथपुर में मधुकोड़ा का काफी प्रभाव है। गीता कोड़ा यहीं से विधायक हैं। यहां मधुकोड़ा के करीबियों ने कमान संभाल रखी है। इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का प्रभाव नोवामुंडी व कुछ अन्य सीमित क्षेत्र तक सीमित है।
चाईबासा : चाईबासा के शहरी क्षेत्रों में मोदी फैक्टर प्रभावी है। तीन दिनों पूर्व नमो ने यहां विशाल जनसभा भी की थी जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। आसपास के ग्रामीण इलाकों में भाजपा कार्यकर्ता खासा सक्रिय भी दिखाई देते हैं। महागठबंधन यहां एकजुट है। झंडे भी साथ दिखते हैं लेकिन पूरी टीम के सक्रियता में समन्वय का अभाव साफ दिखता है।
जीत के पांच मंत्र
1 खनन क्षेत्र : लंबे समय से लौह अयस्क खदानें बंद हैं, जिसका असर रोजगार पर पड़ा है। खदान के मामले में लोगों का विश्वास जीतना महत्वपूर्ण होगा।
2. ग्रामीण क्षेत्र : महागठबंधन के सामने झामुमो के परंपरागत वोटरों का वोट पंजा छाप पर गिराना चुनौती है। वहीं भाजपा बूथ मैनेजमेंट के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश में।
3. शहरी क्षेत्र : मोदी फैक्टर प्रभावी होने से भाजपा को बढ़त मिली हुई है। इस फासले को ज्यादा करने की कोशिश में है। महागठबंधन में अभी भी गांठे हैं, जिससे भाजपा को आस है।
4. भू-अधिग्रहण महत्वपूर्ण : जमीन अधिग्रहण कानून को लेकर दुविधा है। मोदी ने यहां आकर जमीन से बेदखल नहीं करने का विश्वास दिलाया। अगले दिन राहुल डर पैदा कर गए।
5. बूथ मैनेजमेंट : मौसम विभाग के अनुसार मतदान के दिन सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में तापमान 42-43 डिग्री होगा। ऐसे में वोटरों को घर से निकाल बूथ तक लाना बड़ी चुनौती होगी।
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