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Lok Sabha Election 2019: दुमका की लड़ाई... झामुमो प्रमुख शिबू से जीते तो सुनील का बढ़ेगा मान, हार पर भी कम नहीं होगा सम्मान

Battle of Dumka अगर झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन चुनाव जीत गए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। और अगर भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन के हाथों हार गए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।

By mritunjayEdited By: Published: Wed, 22 May 2019 03:58 PM (IST)Updated: Wed, 22 May 2019 03:58 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: दुमका की लड़ाई... झामुमो प्रमुख शिबू से जीते तो सुनील का बढ़ेगा मान, हार पर भी कम नहीं होगा सम्मान
Lok Sabha Election 2019: दुमका की लड़ाई... झामुमो प्रमुख शिबू से जीते तो सुनील का बढ़ेगा मान, हार पर भी कम नहीं होगा सम्मान

दुमका, जेएनएन। यूं तो झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं लेकिन असली लड़ाई दुमका में है। झारखंड की राजनीति की निगाह दुमका पर टिकी है। झामुमो प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का जो दुमका राजनीतिक गढ़ ठहरा। 23 मई को मतगणना होगी। अगर शिबू सोरेन जीत गए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।और अगर भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन के हाथों हार गए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। इस हार-जीत के कारणों का लंबे समय तक राजनीतिक पंडित पोस्टमार्टम करेंगे।

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आदिवासियों के लिए आरक्षित दुमका लोकसभा सीट पर झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन 8 दफा चुनाव जीत चुके हैं। वह झारखंड की राजनीति में सबसे बड़ा आदिवासी नेतृत्व का चेहरा हैं। नाैवीं जीत के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव प्रचार और मतदान के दाैरान भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन से उन्हें तगड़ी चुनाैती मिली। वह भी तब जब सोरेन को झाविमो, कांग्रेस और राजद का समर्थन प्राप्त था। सोरेन को दुमका में 1980 और 2014 के बीच सिर्फ दो बार हार हाथ लगी है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में उपजी सहानुभूति लहर के दाैरान और 1998 में भाजपा लहर के दाैरान। 1999 का चुनाव शिबू सोरेन ने खुद न लड़ अपनी पत्नी रूपी सोरेन को लड़वाया। हालांकि उन्हें तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 1998 में मरांडी ने ही शिबू को पराजित किया था।

सुनील जीते तो झारखंड की राजनीति में एक नया आदिवासी चेहरा का होगा उदयः 19 मई को चुनाव और एग्जिट पोल के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राजमहल को छोड़कर झारखंड की सभी सीटों पर जीत का दावा किया है। गुरुवार को मतगणना के दाैरान अगर ऐसा होता तो बाबूलाल मरांडी की तरह न सिर्फ झारखंड बल्कि देश में भी एक नए आदिवासी चेहरे का उदय होगा। 21 साल पहले बाबूलाल मरांडी की देश की राजनीति में कोई पहचान नहीं थी। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में 1998 के लोकसभा चुनाव में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को उनके ही गढ़ दुमका में शिकस्त देकर छा गए। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार बनी तो वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाए गए। 15 नवंबर 2000 को बिहार को विभाजित कर नए झारखंड राज्य का सृजन हुआ तो भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया। उनकी गिनती देश के प्रमुख आदिवासी नेताओं में होने लगी। यह अलग बात है कि बाद में ( 2006) बाबूलाल ने भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा नामक पार्टी बना ली। और लोकसभा चुनाव- 2019 की लड़ाई में वह दुमका में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन का बेड़ा पार लगाने के लिए उनके साथ खड़े हैं।

तीसरी लड़ाई में बाबूलाल को मिली थी विजयः अगल झारखंड राज्य निर्माण में भाजपा की महती भूमिका रही है। झारखंड इलाके में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए भाजपा ने बिहार के जमाने में ही पार्टी की वनांचल प्रदेश कमेटी गठित कर रखी थी। अध्यक्ष थे बाबूलाल मरांडी। उन्होंने पहली बार 1991 में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के खिलाफ दुमका से चुनाव लड़ा। सफलता नहीं मिली। दूसरी बार 1996 में शिबू को चुनाैती दी। इस बार भी सफलता नहीं मिली। बाबूलाल ने हिम्मत नहीं हारी। तीसरी बार 1998 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल ने शिबू सोरेन को शिकस्त दी। संयोग से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन भी तीसरी बार शिबू सोरेन को चुनाैती दे रहे हैं। इससे पहले वह दुमका के अखाड़े में शिबू के सामने 2009 और 2014 के चुनाव में भी ताल ठोक चुके हैं। हालांकि सफलता नहीं मिली। थोड़े-थोड़े मतों के अंतर से हारते रहे। सुनील अगर चुनाव जीतते हैं तो केंद्र में भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में वह मंत्री भी बन सकते हैं। इससे उनका सम्मान बढ़ेगा। चुनाव हार भी गए तो कोई बात नहीं। क्योंकि मुकाबला झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन से जो है।

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