Lok Sabha Elections 2019 : पुत्र के मोह ने बढ़ाई श्यामाचरण की भाजपा से खटास
सांसद श्यामाचरण गुप्त ने 2017 में बेटे को शहर दक्षिणी से विधानसभा का टिकट फिर महापौर का टिकट दिलाना चाहते थे। नहीं मिला तो उनकी भाजपा से दूरियां बढ़ने लगी थी।
प्रयागराज : बीते लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचने वाले श्यामाचरण गुप्त लंबे समय से पार्टी से नाराज थे। वह समय-समय पर केंद्र व प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर निशाना साधते हुए बगावती तेवर दिखाते रहे हैं। इधर भाजपा के कार्यक्रमों से भी उन्होंने पूरी तरह से कन्नी काट रखी थी, इससे उनके सपा में जाने की चर्चा गर्म थी। उनकी नाराजगी का प्रमुख कारण उनका पुत्रमोह माना जा रहा है। वह 2017 के विधानसभा चुनाव में बेटे विदुप अग्रहरि को टिकट दिलाना चाह रहे थे, पर सफल नहीं हो सके।
2014 लोस चुनाव में कद्दावर नेता रेवतीरमण सिंह को हराया था
भाजपा के टिकट से 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा के कद्दावर नेता कुंवर रेवतीरमण सिंह को हराकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे श्यामाचरण की सक्रियता धीरे-धीरे कम होने लगी। कहा जाता है कि श्यामा चरण पार्टी में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे, इसलिए सक्रिय नहीं थे। विधानसभा चुनाव 2017 में वह शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र से अपने बेटे विदुप अग्रहरि को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने नंदगोपाल गुप्त 'नंदी' को प्रत्याशी बना दिया। फिर महापौर का चुनाव हुआ तो उसमें भी बेटे विदुप को टिकट दिलाने के लिए सक्रिय हुए पर नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता प्रत्याशी बना दी गईं। इस पर श्यामाचरण ने पार्टी पर उन्हें धोखा देने तक का आरोप लगा दिया था। यहां तक कहा था कि 'भाजपा ने बेटे को टिकट न देकर उनके घर में कलह पैदा करा दी है'।
बगावती तेवर अपनाया, सपा से बढ़ी करीबी
इसके बाद उन्होंने खुलकर बगावती तेवर अख्तियार कर लिया। वह सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे। भ्रष्टाचार व अधिकारियों पर सरकार का अंकुश न होने की बात मंच से करते रहे। इससे भाजपाइयों ने उनसे दूरी बना ली, जबकि सपा नेताओं से उनकी करीबी बढ़ती गई। भाजपा के हर कार्यक्रम से श्यामा चरण नदारत रहे। हालांकि कुंभ मेला के समापन समारोह में वह गंगा पंडाल में मंच पर मौजूद थे लेकिन वहां भी उन्हें सीएम योगी आदित्यनाथ ने खास तवज्जो नहीं दी।
निष्क्रियता के चलते टिकट कटने की चर्चा होने लगी
श्यामाचरण की निष्क्रियता के चलते उनके टिकट कटने की चर्चा होने लगी। इस बीच उन्होंने इलाहाबाद के बजाय बांदा संसदीय क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी थी। वहां के कार्यक्रमों में उनका आना-जाना ज्यादा हो गया। कुछ दिन पहले उनके बेटे विदुप ने पत्रकारवार्ता में खुलकर कह दिया था कि उनके पिता को भाजपा टिकट नहीं देगी। तभी यह अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि श्यामाचरण का भाजपा से पत्ता कटना तय है।
श्यामाचरण का राजनीति सफर
-1984 में मेनका गांधी की पार्टी संजय विचार मंच से बांदा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े, लेकिन पराजय का सामना करना पड़ा।
-1988 में निर्दलीय चुनाव लड़कर इलाहाबाद नगर निगम के मेयर बने। उन्हें जनता दल व भाजपा का समर्थन मिला था। मेयर बनने के बाद भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
-1991 में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। तब जनता दल की सरोज दुबे से पांच हजार वोट से चुनाव हार गए।
-1998 में सपा के टिकट से भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े। दूसरे नंबर पर रहे।
-1999 में उनकी पत्नी जमनोत्री गुप्ता सपा के टिकट से शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थीं। इस चुनाव में केशरीनाथ त्रिपाठी जीते।
-2004 में सपा ने उन्हें बांदा संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया, जिसमें जीत हासिल हुई।
-2009 में सपा के टिकट से फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े, जिसमें बसपा के कपिलमुनि करवरिया जीते, श्यामाचरण दूसरे स्थान पर रहे।
-2014 में सपा ने श्यामाचरण को पहले बांदा से टिकट दिया, फिर काट दिया था। इसके बाद उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली और इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनकर चुनाव जीते।