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Lok Sabha Election 2019 : चुनावी चौपाल; गांवों में बिजली तो पहुंच गई, रहती बहुत कम

Lok Sabha Election 2019. पश्चिमी सिंहभूम के कालुंडिया सहित आस-पास के तमाम गांव के 80 प्रतिशत घरों में बिजली पहुंच चुकी है। लेकिन बिजली रहती केवल आठ ही घंटे।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 09:14 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 10:41 AM (IST)
Lok  Sabha Election 2019 : चुनावी चौपाल; गांवों में बिजली तो पहुंच गई, रहती बहुत कम
Lok Sabha Election 2019 : चुनावी चौपाल; गांवों में बिजली तो पहुंच गई, रहती बहुत कम

चाईबासा, जागरण संवाददाता। Lok  Sabha Election 2019 चाईबासा जिला मुख्यालय से लगभग 16 किमी और तांतनगर प्रखंड मुख्यालय से लगभग छह किमी दूर स्थित इलीगड़ा गांव। यहां ईचा डैम का विरोध करते हुए 1982 में सेना से सेवानिवृत्त होकर शहीद हुए गंगाराम कालुंडिया का शहीद दिवस समारोह मनाया जा रहा था। यहां लगभग एक दर्जन गांवों के लोग जुटे हुए थे। शहीद गंगाराम कालुंडिया की शहादत के साथ-साथ चुनाव की भी चर्चा हो रही थी। दैनिक जागरण की टीम गुरुवार दोपहर लगभग डेढ़ बजे वहां पहुंची और चुनावी चौपाल लगा दिया। लोगों से बारी-बारी और सामूहिक रूप से भी चुनाव पर चर्चा हुई। लोगों ने सांसद व विधायक की कार्यशैली के साथ ही कालुंडिया और आसपास के गांवों की तमाम समस्याएं रखीं। कहा कि सांसद बहुत कम ही इधर का रुख करते हैं।

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जब गांव के लोगों से सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर चर्चा हुई तो सामने आया कि कालुंडिया सहित आस-पास के तमाम गांव के 80 प्रतिशत घरों में बिजली पहुंच चुकी है। लेकिन, बिजली रहती केवल आठ ही घंटे। इसके अलावा हल्की सी तेज हवा चलने पर बिजली रानी का जाना तय है और लौटने में चार से पांच दिन लग जाते हैं। लोगों को मोबाइल चार्ज करने के लिए पेट्रोल पम्पों का सहारा लेना पड़ता है। इलाके में पीने के पानी के लिए जलमीनारें तो बनीं, पर एक भी चल नहीं रही है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि ठेकेदार व विभागीय अधिकारियों ने पैसों की बंदरबांट कर ली।

पांच प्रतिशत लोगों ने ही दोबारा सिलेंडर भराया

इन गांवों के 40 प्रतिशत घरों में गैस कनेक्शन मिला है, लेकिन पांच प्रतिशत लोगों में ही दोबारा सिलेंडर भराया। आयुष्मान भारत योजना के तहत बहुत से लोगों का इलाज हुआ है, लेकिन अभी भी इस योजना की जानकारी लोगों तक नहीं पहुंच पाई है। किसान सम्मान योजना की हालत खस्ता है। गांव के जिन किसानों के नाम पर जमीन है वे लोग मर चुके हैं। जो लोग किसानी कर रहे हैं, पंजी-2 में उनका नाम ही नहीं है।इसलिए इन गांवों के लोगों तक इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। किसान सम्मान योजना का लाभ देने के लिए प्रशासन की ओर से जो फॉर्म वितरित किए गए थे, उसमें गलत जानकारी के चलते भी इस योजना का बंटाधार हुआ है। इन गांवों में 2011 के एसएससी डाटा के हिसाब से प्रधानमंत्री आवास आवंटित हुए। इसके कारण तमाम वाजिब हकदार आवासों से वंचित हो गए और सक्षम लोगों को आवास मिल गए।

1500 सौ है कालुंडिया की आबादी

कालुंडिया गांव की आबादी 1500 है। इस गांव में लगभग 800 मतदाता हैं। गांव में कुम्हार, हो, तांती, लोहार, गोप आदि जातियों के लोग निवास करते हैं। जब उनसे लोकसभा चुनाव के मुद्दों की बात की गई तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा कि लोकसभा चुनाव क्षेत्रीय से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दों पर होता है। इस बार वे लोग विकास, अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सुविधा के मुद्दे पर ही मतदान करेंगे।

देशद्रोह की धारा खत्म करने की घोषणा गलत

चुनावी चौपाल में जब ग्रामीणों से कांग्रेस के घोषणा पत्र में देशद्रोह की धारा हटाने के संबंध में पूछा गया तो लोगों ने इसे गलत बताया। वहीं 22 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने बैंक खाते में गरीब को 72 हजार रुपये देने के सवाल पर ग्रामीणों ने कहा कि पहले स्पष्ट किया जाना चाहिए कि कांग्रेस इसे कैसे अमलीजामा पहनाएगी।

चौपाल में ये थे शामिल 

तुइबाना के अमन पूर्ति, गितिलता के फूलचांद सामड, गंजिया के हरिश्चंद्र आल्डा, बरकुंडिया के डोबरो बुडिउली, लोआलांदिर के गणेश बुडिउली, लोआलांदिर के गोङ्क्षवद बिरुली, तुइबाना के भगवान पूर्ति, सीनी के गुरुवारी कुई, सीनी के सपानी बानरा, सुरू कालुंडिया, इलिगड़ा के बसमोती कुमारी, बरकुंडिया के सोमबारी कुई, इलिगड़ा के सुनीता कुई। 

ग्रामीणों की प्रमुख मांगें

- गांव में पीने के साफ पानी की व्यवस्था की जाए।

- सभी गांवों में कम से कम 16 घंटे बिजली मुहैया कराई जाए।

- आयुष्मान योजना के प्रति जागरूकता के लिए गांवों में व्यापक प्रचार हो।

- पंजी-2 में सही किसानों के नामों को शामिल किया जाए।

- गांवों के योग्य लोगों को प्रधानमंत्री आवास आवंटित किया जाए।

चुनावी चौपाल

  • तांतनगर प्रखंड मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर दूर इलीगड़ा गांव में चुनावी चौपाल में खुलकर बोले 
  • मोबाइल चार्ज करने के लिए पेट्रोल पम्प का सहारा लेते हैं लोग
  • ग्रामीणों का आरोप- इलाके में बहुत कम आते हैं सांसद

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