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Lok Sabha Elections 2019 : हवा का रुख बदलने का माद्दा रखते थे चुनावी नारे

90 के दशक तक चुनाव का रुख बदलने में चुनावी नारों का काफी योगदान रहता था। विशेष बात यह रही कि सामयिक नारे देने की परंपरा रही है। अब ऐसा कुछ नजर नहीं आता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 05:26 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 05:26 PM (IST)
Lok Sabha Elections 2019 : हवा का रुख बदलने का माद्दा रखते थे चुनावी नारे
Lok Sabha Elections 2019 : हवा का रुख बदलने का माद्दा रखते थे चुनावी नारे

विजय सक्सेना, प्रयागराज : लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा, एक समय वह भी था जब राजनीतिक दलों के नारों मेें आकर्षण रहा करता था। आजादी के बाद से लेकर 90 के दशक तक राजनीतिक दलों के नारे ऐसे हुआ करते थे जो मतदाताओं के दिलों को छू जाते थे। इसका नतीजा यह होता था कि देश में सत्ता परिवर्तन हो जाता था। फिर चाहे इंदिरा गांधी रही हों या मोरार जी भाई देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी या विश्वनाथ प्रताप सिंह, चुनावी नारों का सहारा लेकर ही ये नेता सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे। हालांकि अब परिस्थितियां बदल गई हैैं। अब चुनावी नारे कहीं खो से गए हैैं और राजनीति क्षेत्रवाद, जातिवाद जैसे मुद्दों पर आकर टिक गई है।

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इंदिरा गांधी का 'गरीबी हटाओ देश बचाओ' नारा दिलों को छू गया था

आजाद हिंदुस्तान में पहला लोकसभा चुनाव 1951-52  में हुआ, जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार बनी। करीब दो दशक बाद 1971 में लोकसभा चुनाव के पहले उस समय सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में जबरदस्त विवाद हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस में विभाजन हो गया। उस दौरान देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने नारा दिया 'गरीबी हटाओ देश बचाओ।' यह नारा लोगों के दिलों को छू गया और प्रचंड बहुमत के साथ इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बनी। वर्ष 1974 में जेपी आंदोलन के चलते कांग्रेस की हुकूमत हिल गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी।

ये नारे भी हवा के रुख को पलट दिए थे

इमरजेंसी के दौरान जेल में रहे वरिष्ठ समाजवादी नेता केके श्रीवास्तव बताते हैैं कि जनवरी 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। विपक्षी नेताओं ने इंदिरा के नारे 'गरीबी हटाओ देश बचाओ' के उलट नारा दिया 'इंदिरा हटाओ देश बचाओ।' कुछ और भी नारे आए। 'यह देखो इंदिरा का खेल खा गई राशन पी गई तेल', 'नरक से नेहरू कहे पुकार अबकी बिटिया जाबू हार', 'रोटी रोजी दे न सके जो वह सरकार निकम्मी है जो सरकार निकम्मी है वह सरकार बदलनी है', 'खेत गया हदबंदी में बाप गया नसबंदी में।' यह नारे कांग्र्रेस के लिए घातक हुए और देश में सत्ता परिवर्तन हो गया। कांग्रेस को कुर्सी गंवानी पड़ी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। हालांकि आंतरिक कलह के कारण यह सरकार 19 माह बाद ही गिर गई।

नए तेवर के साथ फिर उतरी कांग्रेस

1980 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नए तेवर के साथ मैदान में उतरी और पार्टी की ओर से दिल को छू लेने वाला नारा दिया गया 'जात पर ना पात पर इंदिराजी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर', 'आधी रोटी खाएंगे इंदिरा को वापस लाएंगे।' यह नारे मतदाताओं को ऐसे भाए कि देश में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में फिर कांग्रेस की सरकार बनी।

लोस चुनाव में सामयिक नारे देने की रही है परंपरा

लोकसभा चुनाव में राजनीति दलों की तरफ से सामायिक नारे देने की परंपरा रही है। जनसंघ ने 60 के दशक में अपने चुनाव चिह्न दीपक को लेकर नारा दिया 'हर हाथ को काम हर खेत को पानी, घर-घर दीपक जनसंघ की निशानी।' इंदिरा के नारे 'जात पर ना पात पर इंदिराजी बात पर मुहर लगेगी हाथ पर' को जार्ज फर्नाडिस ने पलट दिया 'जात पर ना पात पर चीनी मिलेगी सात पर जल्दी पहुंचोगे घाट पर इंदिराजी की बात पर।'

जब तक सूरज चांद रहेगा...के दम पर छा गए राजीव गांधी

वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया 'जब तक सूरज चांद रहेगा इंदिरा तेरा नाम रहेगा।' इस नारे के दम पर राजीव गांधी के नेतृत्व में देश में कांग्रेस की सरकार बनी।

लोकप्रियता और नारे की बदौलत सांसद बने अमिताभ बच्चन

वर्ष 1984 में लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद संसदीय सीट से सुपरस्टार अभिनेता अमिताभ बच्चन और उस दौरान हरदिल अजीज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के बीच मुकाबला हुआ। बहुगुणा ने नारा दिया 'नाम बहुगुणा काम सौ गुणा', इसके जवाब में अमिताभ समर्थकों ने भी नारा दिया। वहीं कांग्रेसी प्रत्याशी होने के नाते पार्टी की ओर से नारा दिया गया 'लोटे का पानी लोटे में बहुगुणा रह गया धोखे में', 'रसगुल्ला में छेदै-छेद बहुगुणा भागे खेतै-खेत', अमिताभ की लोकप्रियता और इन नारे का असर यह हुआ कि बहुगुणा भारी अंतर से चुनाव में हारे और इस हार का उन्हें गहरा सदमा लगा।

बच्चा-बच्चा अटल बिहारी...

वर्ष 1996 में भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव पडऩे का निर्णय लिया। उस दौरान पार्टी की ओर से नारा दिया गया 'उज्ज्वल भविष्य की है तैयारी बच्चा-बच्चा अटल बिहारीÓ, 'अंधकार  में एक चिंगारी अटल बिहारी-अटल बिहारी।' इस चुनाव के बाद  केंद्र में कुछ दिनों के लिए भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी।

मिले मुलायम कांशी राम...

वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले सपा और बसपा का गठबंधन हुआ। उस दौरान अयोध्या में श्रीराम मंदिर का मुद्दा गरमाया हुआ था सो इस गठबंधन ने नारा दिया 'मिले मुलायम कांशी राम हवा में उड़ गए जय श्रीराम।' यह असरकारक रहा और प्रदेश में सपा-बसपा की सरकार बनी।


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