Election Bond: सिरे नहीं चढ़ पा रहा चुनावी पारदर्शिता का फंडा
लोकसभा चुनावों में इस बार अब तक 1407.13 करोड़ रुपये के चुनावी बांड की बिक्री हुई है। इसके पहले जुलाई 2018 में बांड की बिक्री केवल 32.5 करोड़ रुपये तक ही सिमट गई थी।
नितिन प्रधान, नई दिल्ली। आम चुनावों का एलान हो चुका है, लेकिन चुनाव खर्च के लिए फंड जुटाने में पारदर्शिता की कोशिश परवान नहीं चढ़ पा रही है। इसके लिए पिछले साल लाए गए चुनावी बांड राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले बड़े दानदाताओं को आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाए हैं। बीते एक साल में सात चरणों में हुई चुनावी बांड की बिक्री के आंकड़े तो कम से कम यही बयां कर रहे हैं।
सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ-सुथरा बनाने के लिए 2017-18 के बजट में चुनावी बांड स्कीम की घोषणा की थी। मार्च में पहले चरण में बांड की बिक्री शुरू हुई और अब तक इसके सात चरण हो चुके हैं। चुनावी बांड की पहले सात चरणों की बिक्री के उपलब्ध आंकड़ों ने स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले बांड के जरिये यह काम करने में इच्छुक नहीं हैं।
सातवें चरण तक कुल 1407.13 करोड़ रुपये के बांड की बिक्री की गई। छठे चरण तक 1045.53 करोड़ रुपये के बांड विभिन्न राजनीतिक दल भुना चुके थे। चुनावी बांड की अब तक की बिक्री से किसी स्पष्ट रुख का संकेत नहीं मिलता। सातों चरणों की बिक्री में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है।
जुलाई 2018 में तो बांड की बिक्री केवल 32.5 करोड़ रुपये तक ही सिमट गई। इस चरण में मात्र 82 बांड की बिक्री हुई। चुनावी बांड की बिक्री का मकसद राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए एक संस्थागत तंत्र विकसित करना था। लेकिन संभवत: इसे लेकर उपजी आशंका और इसमें सरकार की भागीदारी लोगों में इसको लेकर आकर्षण पैदा नहीं कर पाई।
यही वजह है कि आज जब देश में आम चुनावों की बिसात बिछ चुकी है, राजनीतिक दल एक साल में 1400 करोड़ रुपये से कुछ अधिक की राशि ही चुनावी बांड के जरिये एकत्र कर पाये हैं। यानी अभी ये दल और इनकी फंडिंग करने वाले लोग चुनावी फंडिंग के अन्य विकल्पों को अधिक बेहतर मान रहे हैं।
सरकार ने चुनावी बांड की बिक्री की जिम्मेदारी देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक को सौंपी थी। देश में बैंक की 53 शाखाओं को इसकी बिक्री के लिए चुना गया था। बांड की बिक्री को लेकर सरकार ने संसद में कुल राशि का विवरण तो दिया है, लेकिन कितनी राशि किस दल को मिली, इसकी तस्वीर अभी भी स्पष्ट नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि जितने बांडों की बिक्री अभी तक हुई है, उनमें ज्यादातर बड़ी राशि वाले बांड शामिल हैं। यानी खरीदे गए बांड में से अधिकांश दस लाख रुपये अथवा एक करोड़ रुपये की राशि वाले हैं। जबकि एक हजार और दस हजार रुपये की कीमत वाले बांड की बिक्री की संख्या नगण्य है। सबसे ज्यादा बांडों की बिक्री मुंबई और दिल्ली की शाखाओं से हुई है।
चुनावी बांड के अधिक लोकप्रिय न होने की एक वजह यह भी बतायी जा रही है कि इनके जरिए केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है जो चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं और पिछले लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में जिनका वोट प्रतिशत कम से कम एक फीसद रहा हो। इन बांड को जारी होने की तारीख के 15 दिन के भीतर राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत बैंकों की शाखाओं में जमा कराना होता है। यदि ये पार्टियां ऐसा नहीं करती हैं तो उन बांड की राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा दी जाती है। अब तक इस मद में 11.20 करोड़ रुपये की बांड राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करायी जा चुकी है।
- भारत का कोई भी नागरिक या संस्था या कोई कंपनी चुनावी चंदे के लिए बांड खरीद सकती है।
- दानकर्ता चुनाव आयोग में पंजीकृत किसी भी उस पार्टी को यह दान दे सकता है, जिस पार्टी ने पिछले चुनावों में कुल वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया है।
- बांड के लिए दानकर्ता को अपनी सारी जानकारी (केवाईसी) बैंक को देनी होती है।
- चुनावी बांड खरीदने वाले का नाम गोपनीय रखा जाता है।
- इन बांड पर बैंक कोई ब्याज नहीं देता है।
- बांड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही खरीदा जा सकता है।
- बांड खरीदने वाले को उसका जिक्र अपनी बैलेंस शीट में भी करना होगा।
- बांड खरीदे जाने के दिन से लेकर अगले 15 दिन तक मान्य रहते हैं।
- दलों को आयोग को बताना होता है कि उन्हें कितना धन चुनावी बांड से मिला है।
यह है चुनावी बांड
चुनावी बांड पर एक करंसी (मुद्रा) नोट की तरह उसका मूल्य लिखा होता है। यह बांड व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा राजनीतिक दलों को पैसा दान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट के दौरान इसे शुरू करने की घोषणा की थी। ये चुनावी बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के मूल्य में उपलब्ध हैं। इसे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है।