Election 2019: राजस्थान में इस बार भाजपा के लिए कुछ बेहतर दिख रहे है जातिगत समीकरण
LokSabhaElections2019 राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अपने मूल वोट बैंकों की नाराजगी झेल चुकी भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में स्थिति कुछ बेहतर हुई दिख रही है।
जयपुर, मनीष गोधा। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अपने मूल वोट बैंकों की नाराजगी झेल चुकी भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में स्थिति कुछ बेहतर हुई दिख रही है। पार्टी के मूल वोट बैंक माने जाने वाले ब्राहम्ण, राजपूत, गुर्जर और सामन्य वर्ग की अन्य जातियों की कोई बडी नाराजगी अभी तक सामने नहीं आई है। ऐसे में पार्टी जातिगत समीकरणों के लिहाज से इस चुनाव में कुछ राहत महसूस कर रही है।
राजस्थान के चुनाव में जातिगत समीकरणा बहुत अहमियत रखते है और ज्यादातर सीटों का चुनाव इन समीकरणों से प्रभावित होता है। राजस्थान में प्रमुख रूप से जाट, राजपूत, मीणा और गुर्जर प्रमुख जातियां है। इनके अलावा ब्राहमण, वैश्य और मुस्लिम समुदाय तथा 51 प्रतिशत ओबीसी, 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 13 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का है। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मूल वोट बैंक माने जाने वाले ब्राहम्ण, राजपूत और गुर्जर समुदाय की बडी नाराजगी सामने आई थी। इनके अपने-अपने कारण थे और इसका बडा खामियाजा पार्टी को अपनी सरकार गंवा कर उठाना पडा। इनमें से ज्यादातर स्थितियों में अब बदलाव आया है। इनके पीछे कुछ तो सरकार के निर्णय है और कुछ राजनीतिक परिस्थितियां भी ऐसी बनी है कि लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए जातिगत समीकरण पहले से बेहतर हुए हैं और पार्टी को उम्मीद है कि इसका फायदा इस चुनाव में मिलेगा।
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आर्थिक पिछडों को आरक्षण ने दूर की सामन्य वर्ग की नाराजगी-
विधानसभा चुनाव के समय ब्राहम्ण और अन्य सामान्य वर्ग में एससी एसटी एक्ट में किए गए बदलाव को लेकर गहरी नाराजगी थी। जयपुर सहित पूरे राजस्थान में इसके विरोध में सामान्य वर्ग ने बिना किसी संगठन की अगुवाई के शांतिपूर्ण सफल बंद हुए थे। लेकिन केंंद्र सरकार के आथिक पिछडों को आरक्षण देने के निर्णय के बाद यह नाराजगी कुछ हद तक कम हुई है। अभी तक ब्राहम्ण या सामन्य वर्ग के किसी भी संगठन की भाजपा के खिलफ नाराजगी का कोई बयान सामने नहीं आया है। राजस्थान में सामन्य वर्ग के आरक्षण की लडाई लड रहे समता आंदोलन के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा का कहना है कि अब स्थितियों मे काफी बदलाव आया है। केंंद्र सरकार ने आर्थिक पिछडों के आरक्षण, ओबीसी आयोग के गठन जैसे जो निर्णय किए है, वो बहुत हद तक समतावादी है और इस बार हम पूरी तरह भाजपा का साथ देंगे।
राजपूतो की नाराजगी कांग्रेस नही भुना पाई-
विधानसभा चुनाव से पहले फिल्म् पदमावत प्रकरण, आनंदपाल प्रकरण तथा अन्य कइ कारणों से राजपूत समाज भजपा के पूरी तरह खिलाफ था और कमल केे फूल हमारी भूल जैसे नारे बुलंद किए गए थे। पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह स्वाभिमान की लडाई की बात कहते हुए कांग्रेस में चले गए थे, लेकिन खुद काग्रेंंस राजपूतोंं की इस नाराजगी को बहुत ज्यादा भुना नही पाई। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में राजपूतों को सिर्फ 12 टिकट दिए, जबकि भाजपा ने 26 टिकट दिए।
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वहीं मानवेन्द्र सिंह को झालावाड में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने चुनाव लड़ने भेज दिया गया, जहां उन्हें हार का सामना करना पडा। इन कारणों के चलते विधानसभा चुनाव में मतदान से पहले ही राजपूत बहुत हद तक भाजपा के खेमे में लौट गए थे और इस बार अब तक राजपूत समुदाय की ओर से भाजपा के खिलाफ कोई बयान या नाराजगी जैसी बात सामने नहीं आई है।
कांग्रेस से पूरी नहीं हुई गुर्जरेों की उम्मीद-
राजस्थान मेंं गुर्जर जाति समुदाय के लिहाज से तीसरा बड़ा समुदाय है और गुर्जर नेताओ की मानें तो करीब 11 लोकसभा क्षेत्रों को प्रभावित करते है। गुर्जर अब तक भाजपा के साथ ही रहे है, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद के चलते गुर्जरों के एकतरफा वोट कांग्रेस को गए थे।
चुनाव के बाद सचिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाएऔर उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पडा। गुर्जर समुदाय में इसे लेकर नाराजगी है हालांकि गुर्जर आरक्षण के मामले में सरकार ने जो कुछ किया है, उससे गुर्जर बहुत हद तक संतुष्ट है, लेकिन समाज के नेतााअे की मानें तो विधानसभा चुनाव जैसी एकतरफा स्थिति इस बार नहीं रहेगी, क्योकि आरक्षण के लिए तो पूरा समाज वर्षों से लड़ रहा है पर सचिन मुख्यमंत्री बनते तो बात अलग ही होती। गुर्जर आरक्षण समिति के प्रक्क्ता शैलेन्द्र सिंह कहते हैं कि हमारी जितनी संख्या है, उस हिसाब से हमें तीन तीन टिकट मिलने चाहिए थे, जबकि टिकट एक-एक ही मिला है, इसलिए समाज का एकतरफा समर्थन किसी को मिल जाएगा, इसकी उम्मीद कम ही है।
बेनीवाल के आने से जाटों के समर्थन की उम्मीद-
राजस्थान में आमतौर पर जाट मतदाता कांग्रेस के साथ ही रहा है। विधानसभा चुनाव में भी जाटों के अच्छे वोट कांग्रेस को मिले। जाटों के वोटों एक बडा हिस्सा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल भी ले गए थे। अब भाजपा ने उनसे गठबंधन कर लिया है और नागौर की सीट उन्हें दे दी है। एक बड़ा जाट चेहरा पार्टी के साथ जुड़ने के बाद पार्टी जाट वोटों में सेंधमारी की उम्मीद भी कर रही है।