Election 2019: जातिगत आधार पर वोटों का बिखराव, रेल और पानी वागड़ के बड़े मुद्दे
Election 2019 लोकसभा चुनाव में जहां राष्ट्रीय मुद्दे अहम होते हैं लेकिन इसके विपरीत मेवाड़-वागड़ के आदिवासी इलाके में स्थिति एकदम विपरीत है।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। लोकसभा चुनाव में जहां राष्ट्रीय मुद्दे अहम होते हैं लेकिन इसके विपरीत मेवाड़-वागड़ के आदिवासी इलाके में स्थिति एकदम विपरीत है। मेवाड़-वागड़ की आदिवासी बहुल बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर जीत का आधार जातिगत है। इसके अलावा जो मुद्दे अहम हैं, वह पानी और रेल। यही मुद्दे प्रत्याशी की जीत और हार तय करेंगे।
दोनों जिलों की सबसे बड़ी मांग है रेल और पानी। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने आठ सौ करोड़ रुपये की लागत से पेयजल योजना की घोषणा की थी लेकिन यह योजना प्रगति नहीं ले सकी। इसके अलावा बांसवाड़ा जिले की सबसे अहम मांग रेल की है। जिसे आजादी के बाद से उठाया जा रहा है लेकिन आज तक उनकी मांग पूरी नहीं हो पाई।
हालांकि यूपीए सरकार ने जिले में रेल लाइन की घोषणा की थी लेकिन सरकार बदलने के साथ ही यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। एनडीए सरकार ने रेलवे के बांसवाड़ा मुख्यालय स्थित कार्यालय पर भी ताले लगा दिए। इसी तरह रतलाम से डूंगरपुर रेलवे लाइन के विस्तार का शिलान्यास किया गया था। डूंगरपुर में रेलवे संचालित हैं, लेकिन उदयपुर-डूंगरपुर- अहमदाबाद रेलवे का काम धीमी गति से चल रहा है, जिसके तीन साल हो गए हैं। इस कारण दो साल से रेलवे का संचालन बंद पड़ा हुआ है। काम में देरी की वजह समय पर बजट नहीं मिला है। अब फिर से लोकसभा चुनाव में दोनों ही राजनीतिक दल इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएंगे।
बांसवाड़ा में माही बांध का अथाह पानी होने के बाद भी कुशलगढ़, सज्जनगढ़ और घाटोल के क्षेत्र नॉन कमांड क्षेत्र हैं। जहां सिंचाई के पानी के साथ-साथ पेयजल की भी काफी किल्लत है। वहीं डूंगरपुर में तो पानी ही सबसे बड़ा मुद्दा है। चौरासी क्षेत्र के दो सौ से अधिक गांवों की पेयजल आपूर्ति के लिए कडाणा बेक वाटर से पानी लेने के प्रोजेक्ट अटके हुए हैं। वहां ओपनवेल और ट्यूबवेल से पानी पहुंचाया जाता है।
70 ग्राम पंचायतों में पानी का जरिया हैंडपंप ही हैं। कडाणा बेक वाटर के प्रस्ताव जलदाय विभाग के पूर्व मंत्री सुशील कटारा ने भेजे थे, मामला केंद्र की जल समिति के पास अटका हुआ है। इसमें गुजरात और राजस्थान सरकार की जल समझौता नीति के तहत फंसा हुआ है। पिछले 20 वर्ष से भीखाभाई नहर का काम चल रहा है। हर पांच वर्ष मांग का 10 प्रतिशत बजट मिलने से काम आज तक पूरा नहीं हुआ है। सागवाड़ा और सीमलवाड़ा(चौरासी) क्षेत्र की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है।
ग्रामीण क्षेत्रों जारी है पलायन लोकसभा क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग नहीं होने से यहां ग्रामीणों का पलायन सबसे ज्यादा है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा में रोजगार के पर्याप्त साधन नहीं होने के कारण यहां के लोग गुजरात और महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के शहरों पर रोजगार के लिए निर्भर हैं और हर साल इनका पलायन बढ़ रहा है। यहां के बहुसंख्यक लोग सूरत की कपड़ा और डायमंड इंडस्ट्रीज में कार्यरत हैं।रेलवे के अभाव में यहां उद्योग धंधे भी स्थापित नहीं हो रहे हैं। बांसवाड़ा में प्रस्तावित 3 पावर प्लांट भी निरस्त कर दिए गए। वहीं डूंगरपुर में राज्य सरकार की ओर से नेशनल हाई वे आठ पर नया औद्योगिक क्षेत्र 20 साल कागजों में चल रहा है। यहां पर रियायती दर में कोई भी बड़ा उद्योग नहीं लगा सके। यही से 50 किलोमीटर दूर गुजरात के हिम्मतनगर में टाइल्स उद्योग की 8 बड़ी फैक्ट्री और 20 छोटी फैक्ट्री चल रही हैं।
जिसका कच्चा मटेरियल डूंगरपुर से जाता है। बीटीपी के चलते जातिवाद को बढ़ावा मिला अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट होने के बावजूद यहां बीटीपी के उदय के साथ जातिवाद को ज्यादा हवा मिली है। बीटीपी इस बार जनसंख्या के अनुपात से आरक्षण के मुद्दे को उठा रही है। बीटीपी नेताओं का तर्क है कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात के अनुसार ही सरकारी सेवाओं में आरक्षण लागू किया जाए।