उत्तराखंड लोकसभा इलेक्शनः बूथ तक नहीं गए नेताओं से नाराज वोटर
लोकसभा चुनाव के लिए गुरुवार को हुए मतदान के दौरान कई जगह ऐसी तस्वीर भी दिखी कि कई स्थानों पर सियासतदां से नाराज चल रहे वोटरों को सिस्टम मनाने में सफल नहीं हो पाया।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। रोजी-रोटी से लेकर हर मसले का निदान जब सियासत से होकर गुजरता है तो फिर कोई भी इससे दूर कैसे रह सकता है। यह ठीक है कि कहीं सियासत और सिस्टम से नाराजगी हो सकती है, मगर इसका ये मतलब तो कतई नहीं कि हम अपने कर्तव्य से विमुख हो जाएं।
लोकसभा चुनाव के लिए गुरुवार को हुए मतदान के दौरान कई जगह ऐसी तस्वीर भी दिखी। कई स्थानों पर सियासतदां से नाराज चल रहे वोटरों को सिस्टम मनाने में सफल नहीं हो पाया, मगर वोटरों ने भी अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया। अलबत्ता, कुछ जगह सिस्टम को वोटरों का गुस्सा थामने में कामयाबी जरूर मिल गई।
पौड़ी लोकसभा सीट पर चौबट्टाखाल विस क्षेत्र के धोबीघाट, जोगीमढी, पटेलधार, लाछी गांवों के निवासियों ने सड़क न बनने पर लोस चुनाव में भागीदारी न करने की बात कही थी। इस पर खुद पौड़ी के डीएम धीराज सिंह गर्ब्याल ने पहल करते हुए प्रयास किए। सड़क को लेकर वन भूमि से संबंधित मसले के निस्तारण के निर्देश दिए। इसके बाद ग्रामीण मान गए।
अलबत्ता, इसी सीट पर आंसौ पल्ला (आंसौ बाखल) के लोगों को मनाने में प्रशासन कामयाब नहीं हो पाया। पौड़ी सीट के अंतर्गत ही चमोली जिले के कफोली, बमियाला, गंडिक व पोखनी के ग्रामीणों को मनाने में सिस्टम को सफलता नहीं मिली। नतीजतन, इन गांवों के 1057 वोटरों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया।
कुछ ऐसी ही स्थिति टिहरी लोकसभा सीट के अंतर्गत लोदस व दिगोटी गांवों के साथ ही मिसरास पट्टी व चक चौबेवाला में भी नजर आई। उधर, अल्मोड़ा सीट पर बागेश्वर जिले में राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा के गोद लिए आदर्श गांव बाछम के 828 मतदाताओं को भी प्रशासन नहीं मना पाया।
इस दूरस्थ गांव में दो बूथ बनाए गए, मगर मतदान खत्म होने तक वहां कोई मतदाता नहीं पहुंचा। जिला निर्वाचन अधिकारी रंजना के मुताबिक ग्रामीणों को मनाने प्रशासन की टीम भेजी गई थी, मगर मतदाता माने नहीं। वहीं, नैनीताल, अल्मोड़ा, चंपावत व पिथौरागढ़ जिलों में सात बूथों पर भी ऐसी ही स्थिति की सूचना है।
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